भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से सियासी हलकों में छाया शोक

भाजपा के कैराना सांसद हुकुम सिंह का आज शाम निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। उनके निधन से सियासी हल्कों में शोक छा गया।प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय समेत दिग्गज नेता अस्पताल पहुंचे।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Sat, 03 Feb 2018 09:03 PM (IST) Updated:Sun, 04 Feb 2018 06:20 PM (IST)
भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से सियासी हलकों में छाया शोक
भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से सियासी हलकों में छाया शोक

लखनऊ (जेएनएन)।  भाजपा सांसद व जिले के दिग्गज नेता हुकुम सिंह का आज  देर शाम नोएडा के जेपी अस्पताल में निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। उनके निधन से सियासी हल्के में शोक छा गया। भाजपा सांसद बीते साल कैराना में रंगदारी और वहां से व्यापारियों के पलायन प्रकरण को लेकर काफी चर्चाओं में आए थे। वह प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की सरकारों में संसदीय कार्य मंत्री समेत अहम पदों पर रह चुके थे। भाजपा सांसद हुकुम सिंह पिछले माह फेफड़े में संक्रमण के कारण जेपी अस्पताल में भर्ती किए थे। वह काफी दिनों से वेंटिलेटर पर थे। हुकुम सिंह के निधन की खबर सुनकर प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय तत्काल जेपी अस्पताल पहुंच गए। हुकुम सिंह की गिनती पश्चिमी उत्तर के दिग्गज नेताओं में थी। इस खबर से मुजफ्फरनगर और शामली के सियासी हल्के में शोक छा गया। 

वकालत को बनाया शुरुआती पेशा 

वह मुजफ्फरनगर जिले के कैराना में ही रहते हैं। उनका जन्म 5 अप्रैल 1938 को हुआ था। बचपन से ही वह पढ़ाई में काफी होशियार थे। कैराना में इंटर की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा गया। वहां पर हुकुमसिंह ने बीए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। इस बीच 13 जून 1958 को उनकी शादी रेवती सिंह से हो गई। उन्होंने वकालत का पेशा अपना लिया और प्रैक्टिस करने लगे। इसी दौरान हुकुम सिंह ने जज बनने की परीक्षा पीसीएस (जे) भी पास की। जज की नौकरी शुरू करते, इससे पहले चीन ने भारत पर हमला कर दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने युवाओं से देशसेवा के लिए सेना में भर्ती होने के आह्वान पर वह सेना में चले गए। 1963 में वह भारतीय सेना में अधिकारी हो गए। हुकुमसिंह ने सैन्य अधिकारी 1965 में पाकिस्तान के हमले के समय अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना का सामना किया। इस समय कैप्टन हुकुमसिंह राजौरी के पूंछ सेक्टर में तैनात थे। जब सब सामान्य होने पर 1969 में उन्होंने सेना से इस्तीफा दे दिया और फिर वकालत करने लगे।

बार चुनाव से राजनीति में कदम

वकीलों के बीच काफी लोकप्रिय होने पर उन्होंने बार अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और 1970 में चुनाव जीत भी गए। यहीं से उनकी राजनीति की शुरुआत हो गई। 1974 तक उन्होंने इलाके के जनआंदलनों में हिस्सा लिया और लोकप्रिय होते चले गए। हालत ऐसे हो गए थे कांग्रेस और लोकदल दोनों बड़े राजनीतिक दलों ने टिकट देने की बात कही। वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और चुनाव जीत भी गए। हुकुमसिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बन चुके थे। 1980 में उन्होंने पार्टी बदली और लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और इस पार्टी से भी चुनाव जीत गए। तीसरी बार 1985 में भी उन्होंने लोकदल के टिकट पर ही चुनाव जीता और इस बार वीर बहादुरसिंह सरकार में मंत्री बनाए गए। बाद में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हुकुमसिंह को राज्यमंत्री के दर्जे से उठाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया।

कांग्रेस से भाजपा की अभूतपूर्व सफलता तक

हुकुम सिंह को 1981-82 में लोकलेखा समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया। 1975 में उत्तरप्रदेश कांग्रेस समिति के महामंत्री भी बने। 1980 में लोकदल के अध्यक्ष भी बने। और 1984 में वे विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रहे। 1995 में हुकुमसिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बने। कल्याणसिंह और रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में वे मंत्री रहे। 2007 चुनाव में भी विधानसभा पहुंचे। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के आरोप भी उन पर लगे। 2014 में भाजपा टिकट पर गुर्जर समाज के हुकुमसिंह ने कैराना सीट पर पार्टी को विजय दिलाई। पार्टी को उत्तरप्रदेश में अभूतपूर्व सफलता मिली। 

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