68500 शिक्षक भर्ती परीक्षा में योगी सरकार को बड़ी राहत, हाई कोर्ट ने कटऑफ अंक घटाने की मांग ठुकराई

68500 शिक्षक भर्ती इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कम कटऑफ अंक वाले शासनादेश के अनुसार सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2018 का परिणाम घोषित करने की मांग वाली याचिकाएं खारिज कर दीं।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Tue, 07 Jan 2020 09:38 PM (IST) Updated:Wed, 08 Jan 2020 08:45 AM (IST)
68500 शिक्षक भर्ती परीक्षा में योगी सरकार को बड़ी राहत, हाई कोर्ट ने कटऑफ अंक घटाने की मांग ठुकराई
68500 शिक्षक भर्ती परीक्षा में योगी सरकार को बड़ी राहत, हाई कोर्ट ने कटऑफ अंक घटाने की मांग ठुकराई

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 68000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले में राज्य सरकार को बड़ी राहत देते हुए कम कटऑफ अंक वाले शासनादेश के अनुसार सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2018 का परिणाम घोषित करने की मांग वाली याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दीं। यह आदेश जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2018 के सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल पांच दर्जन याचिकाओं को खारिज करते हुए पारित किया।

हाई कोर्ट में इस केस की लंबी सुनवाई चली और 29 नवंबर 2018 को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया गया था, जिसे मंगलवार को सुनाया गया। कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से पेश अपर महाधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी के तर्कों से सहमति जताते हुए आदेश पारित किया कि जब किसी मानदंड के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो उसे बीच में बदलना विधि सम्मत नहीं है। 21 मई, 2018 का शासनादेश परीक्षा के मात्र छह दिन पहले पारित किया गया था जो उचित नहीं था।

दरअसल, विभिन्न याचिकाएं दायर कहा गया था कि प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों की 68500 भर्ती के लिए 21 मई, 2018 को शासनादेश जारी करते हुए कटऑफ अंक को घटाकर सामान्य के लिए 33 व एससी-एसटी के लिए 30 प्रतिशत कर दिया गया, जबकि इससे पहले 9 जनवरी, 2018 के शासनादेश के मुताबिक सामान्य व ओबीसी के लिए 45 व अन्य आरक्षित वर्ग के लिए 40 प्रतिशत तय किया गया था। कुछ अभ्यर्थियों ने 21 मई, 2018 के शासनादेश को हाई कोर्ट के समक्ष यह कहते हुए चुनौती दी कि परीक्षा के मात्र छह दिन पहले परीक्षा का मानदंड परिवर्तित करना विधि सम्मत नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 27 मई, 2018 को परीक्षा होनी थी। कोर्ट ने तब अंतरिम आदेश पारित करते हुए 21 मई, 2018 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी और 9 जनवरी, 2018 के शासनादेश के मुताबिक ही प्रक्रिया आगे बढ़ाने को कहा था, जिसके बाद राज्य सरकार ने 20 फरवरी, 2019 को नया शासनादेश पारित कर 21 मई 2018 के शासनादेश को निष्प्रभावी घोषित किया।

याचियों की दलील थी कि 68 हजार 500 पदों की रिक्तियों के सापेक्ष मात्र 41 हजार 556 अभ्यर्थी ही क्वालीफाई कर सके। यदि 21 मई, 2018 के शासनादेश के अनुसार परिणाम घोषित किया जाए तो याचियों समेत तमाम अभ्यर्थियों के क्वालीफाई करने के कारण सभी 68,500 रिक्तियां भर सकती हैं। कोर्ट ने याचियों की दलीलों को अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी की बहस को स्वीकार करते हुए कहा कि जब किसी मानदंड के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो उसे बीच में बदलना विधि सम्मत नहीं है, 21 मई 2018 का शासनादेश परीक्षा के मात्र छह दिन पहले पारित किया गया था जो उचित नहीं था। त्रिपाठी की यह भी दलील थी कि योग्य अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के लिए ही कटऑफ अंक को बढ़ाया गया था।

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