Ayodhya Controversial Structure : विवाद से विमुख हो मौलिक पहचान के साथ रोशन हुई रामनगरी

Ayodhya Controversial Structure Demolition 28th Anniversary विवादित ढांचा ढहाये जाने की 28वीं बरसी पर भी रामनगरी विवाद से विमुख हो मौलिक पहचान के साथ रोशन हुई।सद्भाव के नाम रहा इस बार का छह दिसंबर। मंदिर निर्माण की तैयारियों के बीच विवाद की तल्खी बनी संवाद।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Mon, 07 Dec 2020 06:45 AM (IST) Updated:Mon, 07 Dec 2020 12:07 PM (IST)
Ayodhya Controversial Structure : विवाद से विमुख हो मौलिक पहचान के साथ रोशन हुई रामनगरी
Ayodhya Controversial Structure Demolition 28th Anniversary: सद्भाव के नाम रहा इस बार का छह दिसंबर।

अयोध्या [रघुवरशरण]। Ayodhya Controversial Structure Demolition 28th Anniversary: अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, जो युद्ध से मुक्त हो या जिसे जीता न जा सके। इस विरासत पर रामनगरी रविवार को खरी उतरी। गत वर्ष नौ नवंबर को सबसे बड़े विवाद का फैसला आने और मंदिर निर्माण की तैयारियों के साथ अयोध्या अपने दायरे में ही नहीं पूरे देश में 'अयुद्ध' की अपनी विरासत के साथ चमकी और रविवार को विवादित ढांचा ढहाये जाने की 28वीं बरसी पर भी रामनगरी विवाद से विमुख हो मौलिक पहचान के साथ रोशन हुई।

जिस कारसेवकपुरम में ध्वंस के बाद प्रत्येक वर्ष शौर्य दिवस का आयोजन कर ढांचा ढहाने की याद ताजा की जाती थी, वहां सन्नाटा था। सरगर्मी को पीछे छोड़ विहिप प्रवक्ता शरद शर्मा कारसेवकपुरम के कुछ ही फासले पर मणिरामदासजी की छावनी के सामने मिलते हैं। शर्मा कहते हैं, सुप्रीम फैसला आने के बाद मंदिर निर्माण ही असली शौर्य है। ढांचा ढहाये जाने की बरसी से उपजने वाली सरगर्मी से बेफिक्र पड़ोस के टांडा कस्बे के निवासी अनिल गुप्त मय परिवार के न्यास कार्यशाला में मंदिर निर्माण की संभावनाएं परख रहे होते हैं। कानून-व्यवस्था की दृष्टि से संवेदनशील इस तारीख को परिवार सहित अयोध्या आने में डर नहीं लगा। 

इस उत्सुकता के जवाब में गुप्त बोल पड़ते हैं, जब विवाद खत्म हो गया, तो डर कैसा। सरयू तट से लेकर रामजन्मभूमि की ओर मार्ग पर श्रद्धालुओं का जत्था आगे बढ़ रहा होता है। श्रद्धालुओं के साथ आगे बढ़ते संवाददाता के पांव रामकथा के अमर गायक गोस्वामी तुलसीदास के नयनाभिराम स्मारक तुलसी उद्यान के सामने जाकर ठिठक जाते हैं। बायीं ओर स्थित तिवारी मंदिर के महंत गिरीशपति त्रिपाठी अपने पूर्वाचार्य पं. उमापति त्रिपाठी की याद दिलाते प्रतीत होते हैं। 

 

पं.उमापति के बारे में मान्यता है कि उन्हें प्रभु राम का साक्षात्कार होता रहा और वे श्रीराम के प्रति गुरु के वात्सल्य से परिपूर्ण थे। आराध्य से आत्मीयता का ऐसा ही प्रवाह दशरथ महल के सामने परिलक्षित होता है, जिसके संस्थापक रामप्रसादाचार्य के बारे में मान्यता है कि उनकी साधना से मां सीता की मृण्मय मूर्ति विगलित हो चिन्मय-चैतन्य विग्रह में तब्दील हो उठी थी। कोटिया मुहल्ला स्थित आवास पर बाबरी मस्जिद के मुद्दई रहे मो. इकबाल कहते हैं, हिंदुओं को मंदिर की जमीन मिल गयी-मुस्लिमों को मस्जिद की जमीन मिल गयी, अब किस बात का विवाद। अब तो विकास की बात होनी चाहिए। 

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