Anticipatory bail: आपातकाल में खत्म की गई अग्रिम जमानत व्यवस्था होगी बहाल

आपातकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया था। अब 42 वर्ष बाद नये संशोधन के साथ यह व्यवस्था बहाल होने जा रही है।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Tue, 21 Aug 2018 08:11 PM (IST) Updated:Wed, 22 Aug 2018 12:15 PM (IST)
Anticipatory bail: आपातकाल में खत्म की गई अग्रिम जमानत व्यवस्था होगी बहाल
Anticipatory bail: आपातकाल में खत्म की गई अग्रिम जमानत व्यवस्था होगी बहाल

लखनऊ (जेएनएन)। आपातकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में दंड प्रक्रिया संहिता (उप्र संशोधन) अधिनियम, 1976 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया था। अब 42 वर्ष बाद फिर नये संशोधन के साथ यह व्यवस्था बहाल होने जा रही है। योगी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है। अब इसके लिए विधान मंडल सत्र में दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक-2018 पेश होगा। यह विधेयक कुछ शर्तों के अधीन होगा। इसके चलते गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी। इसे कानूनी रूप देने के लिए विधान मंडल से विधेयक पारित होने के बाद केंद्र सरकार की भी मंजूरी जरूरी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने किया था निर्देशित

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-438 (अग्रिम जमानत का प्रावधान जिसमें व्यक्ति गिरफ्तारी की आशंका में पहले ही न्यायालय से जमानत ले लेता है) में अग्रिम जमानत की व्यवस्था का प्रावधान है। नियमित जमानत के लिए लोगों को पहले जेल जाना पड़ता है, चाहे बाद में उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा भले झूठा साबित हो। खास बात यह है कि देश भर में अग्रिम जमानत का प्रावधान है लेकिन सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में यह व्यवस्था नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों उप्र सरकार से कहा था कि अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म करने वाले कानून को वापस लिया जाये। 

जमानत के लिए अभियुक्त की मौजूदगी जरूरी नहीं 

प्रस्तावित विधेयक में अभियुक्त का अग्रिम जमानत की सुनवाई के समय उपस्थित रहना आवश्यक नहीं है। न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत दिये जाने पर केंद्रीय प्रारूप में जो शर्तें न्यायालय के विवेक पर छोड़ी गई हैं, उन्हें प्रस्तावित विधेयक में अनिवार्यत: शामिल किये जाने की व्यवस्था की गई है। इसका प्रस्तावित धारा 438 (दो) में उल्लेख किया गया है।

जब चाहे पूछताछ के लिए बुला सकता पुलिस अधिकारी 

अग्रिम जमानत के दौरान मुकदमे की विवेचना करने वाले पुलिस अधिकारी के बुलाने पर अभियुक्त को हाजिर होना होगा। विवेचक संबंधित को पूछताछ के लिए जब चाहे बुला सकता है। जमानत के दौरान अगर अभियुक्त ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी गवाह को धमकाने, तथ्यों से छेड़छाड़, धमकी, प्रलोभन या किसी भी तरह का वादा किया तो विवेचक न्यायालय को अवगत करायेगा। ऐसा करने पर जमानत निरस्त हो जाएगी। 

अनुमति के बिना देश छोडऩे की मनाही 

अग्रिम जमानत लेने वाले व्यक्ति को न्यायालय की अनुमति के बिना देश छोडऩे की मनाही रहेगी। न्यायालय अग्रिम जमानत पर विचार करते समय अभियोग की प्रवृत्ति, अभियुक्त के पूर्व के आचरण, उसके फरार होने की आशंका या उसे अपमानित करने के इरादे से लगाये गये आरोपों पर विचार कर सकती है। 

गंभीर अपराधों में नहीं मिलेगी जमानत 

गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। इसके लिए प्रस्ताव में गाइड लाइन निर्धारित की गई है। विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम 1967, स्वापक औषधि और मन : प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985, शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923, उप्र गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 (गैंगस्टर एक्ट) से जुड़े मामलों में यह व्यवस्था लागू नहीं होगी। इसके अलावा जिन अपराधों में मृत्युदंड का आदेश तय हैं, उनमें भी अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। 

तीस दिन के भीतर निस्तारण जरूरी

अग्रिम जमानत की अंतिम सुनवाई के समय न्यायालय द्वारा लोक अभियोजक को सुनवाई के लिए नियत तिथि के कम से कम सात दिन पहले नोटिस भेजे जाने का प्रावधान किया गया है। अग्रिम जमानत के संबंध में आवेदन पत्र का निस्तारण आवेदन किये जाने की तिथि से तीस दिन के भीतर अंतिम रूप से निस्तारित किया जाना अनिवार्य किया गया है। 

प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता वाली समिति के प्रस्ताव

अग्रिम जमानत की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने के लिए प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। दरअसल, 2006 से ही यह व्यवस्था लागू करने की पहल चल रही है लेकिन, 2010 में भारत सरकार ने कुछ त्रुटियों की वजह से इस प्रस्ताव को रोक दिया था। इस बार प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में बनी समिति ने इसके प्रस्ताव तैयार किये और त्रुटियों को दूर किया है। 

अभी तक गिरफ्तारी के भय से लिये जाते थे स्थगनादेश 

सेशन और हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत का प्रावधान न होने से गिरफ्तारी के भय से लोग सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट दायर करते हैं। इसके तहत अरेस्ट स्टे (स्थगनादेश) मिलता है। स्थगनादेश लेकर ही लोगों को राहत मिलती है। हालांकि स्थगनादेश के लिए दायर रिट से हाईकोर्ट पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है। 

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