छह दशक में पहली बार ऐसा क्यों? छोटी काशी की गुलाबी कोठी में नहीं चुनावी हलचल; यहां से तो मिले हैं तीन सांसद

Lok Sabha Election 2024 संसदीय चुनाव के इतिहास में तकरीबन छह दशक बाद ये पहला अवसर है जब गोलागोकर्णनाथ की ‘गुलाबी कोठी’ पर चुनावी हलचल थमी है। ये वही गुलाबी कोठी है जिसने जिले को एक-दो नहीं बल्कि तीन सांसद दिए। अब तक सांसद के तौर पर जिले में हैट्रिक लगाने वाले इसी कोठी के रहने वाले रहे वो भी तीनों लोग।

By punesh verma Edited By: Aysha Sheikh Publish:Fri, 05 Apr 2024 01:57 PM (IST) Updated:Fri, 05 Apr 2024 01:57 PM (IST)
छह दशक में पहली बार ऐसा क्यों? छोटी काशी की गुलाबी कोठी में नहीं चुनावी हलचल; यहां से तो मिले हैं तीन सांसद
छह दशक में पहली बार ऐसा क्यों? छोटी काशी की गुलाबी कोठी में नहीं चुनावी हलचल

पूर्णेश वर्मा, लखीमपुर। संसदीय चुनाव के इतिहास में तकरीबन छह दशक बाद ये पहला अवसर है जब गोलागोकर्णनाथ की ‘गुलाबी कोठी’ पर चुनावी हलचल थमी है। ये वही गुलाबी कोठी है, जिसने जिले को एक-दो नहीं, बल्कि तीन सांसद दिए। अब तक सांसद के तौर पर जिले में हैट्रिक लगाने वाले इसी कोठी के रहने वाले रहे, वो भी तीनों लोग।

बात पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. बाल गोविंद वर्मा के परिवार की है, जो खुद चार बार (तीन बार लगातार और एक अन्य बार), उनकी पत्नी ऊषा वर्मा लगातार तीन बार और पुत्र रवि प्रकाश वर्मा भी तीन बार लगातार खीरी के सांसद रहे। वर्ष 1962 में गुलाबी कोठी का संसदीय चुनाव का सफर तब शुरू हुआ, जब बाल गोविंद वर्मा ने पहला चुनाव लड़ा था।

उसके बाद से हर चुनाव में इस कोठी से प्रतिनिधित्व रहा, पर इस बार ऐसा नहीं है। चार बार खीरी से सांसद रहने वाले स्व. बाल गोविंद वर्मा ने कुल पांच चुनाव लड़े थे, जिसमें एक वे हार गए थे। सांसद रहने के दौरान बाल गोविंद वर्मा का निधन होने पर वर्ष 1980 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी खीरी से एमपी बनीं।

उपचुनाव समेत ऊषा वर्मा ने भी कुल पांच लाेकसभा चुनाव लड़े, जिसमें वे शुरुआत में लगातार तीन बार जीतीें और बाद में लगातार दो बार हार गईं। उसके बाद परिवार की राजनीतिक विरासत को बाल गोविंद वर्मा और ऊषा वर्मा के पुत्र रवि प्रकाश वर्मा ने आगे बढ़ाया।

वर्ष 1998 और उसके बाद हुए चार चुनाव रवि प्रकाश वर्मा ने लड़े, जिसमें पहले तीन चुनाव उन्होंने जीते और बाद के दो चुनाव हार गए। वर्ष 2019 के चुनाव में रवि प्रकाश वर्मा की पुत्री डा. पूर्वी वर्मा मैदान में उतरीं, पर हार गईं। इस बार के चुनाव से पहले रवि वर्मा व उनकी पुत्री सपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए।

उनकी पुत्री डा. पूर्वी वर्मा ने कांग्रेस से टिकट की दावेदारी भी की, पर गठबंधन में खीरी सीट सपा के खाते में जाने के कारण वर्ष 1962 के बाद ये पहला चुनाव है जब गुलाबी कोठी पर राजनीतिक हलचल थमी है।

गुलाबी कोठी से उम्मीदवार 

1962                      बाल गोविंद वर्मा                जीते 1967                      बाल गोविंद वर्मा                जीते 1972                      बाल गोविंद वर्मा                जीते 1977                      बाल गोविंद वर्मा                हारे 1980                      बाल गोविंद वर्मा                जीते 1980 (उपचुनाव)      ऊषा वर्मा                         जीतीं 1984                      ऊषा वर्मा                         जीतीं 1989                      ऊषा वर्मा                        जीतीं 1991                      ऊषा वर्मा                        हारीं 1996                      ऊषा वर्मा                        हारीं 1998                      रवि प्रकाश वर्मा                जीते 1999                      रवि प्रकाश वर्मा                जीते 2004                      रवि प्रकाश वर्मा                जीते 2009                      रवि प्रकाश वर्मा                हारे 2014                      रवि प्रकाश वर्मा                हारे 2019                      डा. पूर्वी वर्मा                    हारीं
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