कोरोना किट बिल समायोजन में पंचायत सचिव मुश्किल में

इंफ्रारेड थर्मामीटर व पल्स ऑक्सीमीटर खरीद में हो हल्ला के बाद पंचायतों के खाते में 5300 रुपये धनराशि तो वापस कर दिए गए है लेकिन अब मामला यह फंसा है कि उसे कैशबुक में समायोजित कैसे करेंगे।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Sep 2020 11:24 PM (IST) Updated:Sun, 13 Sep 2020 11:24 PM (IST)
कोरोना किट बिल समायोजन में पंचायत सचिव मुश्किल में
कोरोना किट बिल समायोजन में पंचायत सचिव मुश्किल में

इंफ्रारेड थर्मामीटर व पल्स ऑक्सीमीटर खरीद में हो हल्ला के बाद पंचायतों के खाते में 5300 रुपये धनराशि तो वापस कर दिए गए है, लेकिन अब मामला यह फंसा है कि उसे कैशबुक में समायोजित कैसे करेंगे। खाते में वापस आए रुपयों के समायोजन में पंचायत सचिवों की परेशानी बढ़ गई है। उनकी इस हालत पर कोई मददगार नही मिल रहा है।

शासन ने महानगरों से लौटे संदिग्ध प्रवासियों की जांच के लिए इंफ्रारेड थर्मामीटर और पल्स ऑक्सीमीटर प्रत्येक ग्राम पंचायतों को खरीदने का निर्देश दिया था। इसके लिए जिला पंचायतराज अधिकारी को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था। विभाग ने आनन फानन 476 ग्राम पंचायतों में तैनात आशा बहुओं के लिए अर्श इंटरप्राइजेज, वैष्णवी इंटरप्राइजेज और प्रशांत ब्रदर फर्म से इंफ्रारेड थर्मामीटर व पल्स ऑक्सीमीटर खरीदने के साथ 8100-8100 रुपये बिल पंचायतों को भिजवा दिया। उपकरण आपूर्ति के बाद 70 प्रतिशत ग्राम सचिवों और प्रधानों ने उसका भुगतान भी कर दिया। कुछ ग्राम प्रधानों ने उपकरण के वास्तविक कीमत से अधिक बिल भेजने पर रोष जताकर भुगतान करने से मना कर दिया तो मामला फंस गया। इसी बीच उपकरण खरीद घोटाला उजागर होने पर शासन ने जांच कमेटी गठित कर दी। इसके बाद विभाग ने 8100 रुपये के बिल वापसी का निर्देश जारी कर 2800 रुपये का नया बिल भेज 5300 रुपये ग्राम पंचायतों के खाते में किसी प्रकार वापस भी करवा दिया। अब पंचायतों के कैशबुक में धनराशि समायोजन में सचिवों के सामने परेशानी खड़ी हो गई है। नाम न छापने की शर्त पर एक ग्राम सचिव ने बताया कि उपकरण खरीद की हेराफेरी में जबरन उनको बलि का बकरा बनाया जा रहा है। जिम्मेदार अधिकारी की मनमानी से भुगतना करना पड़ रहा है। कोरोना किट ख्ररीद में बेहद बुरा फंस गए हैं। उनका कहना है कि उपकरण आपूर्तिकर्ता फर्म की जांच होने पर हेराफेरी में संलिप्त लोगों का राजफाश हो जाएगा। उपकरण आपूर्तिकर्ता फर्म को कितना भुगतान किया गया है, इसकी जांच वाणिज्य कर विभाग के दायरे में आती है। अब पूरे प्रकरण की जांच एसआईटी कर रही है।

गोपालजी ओझा, डीपीआरओ, कौशांबी

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