आइआइटी में ऑप्टिक्स पर सेमिनार, वैज्ञानिकों ने साझा की अपनी खोज
देहरादून से आए निदेशक प्रो. बेंजामिन ने सेमिनार का शुभारंभ किया। यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया आदि देशों से आए विशेषज्ञों ने नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी।
कानपुर (जागरण संवाददाता)। आइआइटी में गुरुवार को ऑप्टिक्स पर आयोजित सेमिनार में दुनिया भर से आए वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण शोध पर चर्चा की। वैज्ञानिकों ने अपनी खोज साझा की और तकनीक पर काम करने को प्रेरित किया। सेमिनार का उद्घाटन देहरादून के इंस्ट्रूमेंट्स रिसर्च एंड डेवलेपमेंट इस्टेबलिशमेंट के निदेशक प्रो. बेंजामिन लॉयनल ने किया। आइआइटी कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर, प्रो. जे. रामकुमार समेत अन्य फैकल्टी के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। इंस्टीट्यूट फ्रेसनेल फ्रांस के निदेशक प्रो. स्टीफन इनॉक ने बताया कि ऑप्टिक्स, फोटॉनिक्स पर इंस्टीट्यूट फ्रेसनेल और आइआइटी काम कर रहे हैं, जल्द नया प्रोजेक्ट किया जाएगा।क्वांटम किस्ट्रोग्राफी से सुरक्षित रहेगा डाटा
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से आए प्रो. फराज अहमद इनाम ने क्वांटम किस्ट्रो्रग्राफी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह क्वांटम मैकेनिक्स पर आधारित है। इसमें संचार तंत्र मजबूत और उसकी सुरक्षा बढ़ जाती है। इस तकनीक से डाटा लीक नहीं होता है। चीन और यूरोपीय देश इसपर काम कर रहे हैं। अपने यहां अभी प्रारंभिक चरण है।
आइआइटी भुवनेश्वर ने बनाया हाईड्रोफोन
आइआइटी भुवनेश्वर के प्रो. रंजन झा के मुताबिक संस्थान ने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) के सहयोग से हाईड्रोफोन बनाया है। यह पानी के नीचे सैकड़ों फिट गहराई में आवाज की फ्रीक्वेंसी रिकार्ड कर डिजिटल सिग्नल देता है। इसकी सहायता से पनडुब्बी, व्हेल और अन्य समुद्री जीवों का पता लगाया जा सकता है। यह ऑप्टिकल फाइबर सिस्टम पर आधारित है। इसकी रिकार्डिंग और डाटा सिस्टम ऑनलाइन होता है।
नजर न आने वाले जीवाणु, कीटाणुओं की तलाश
आइआइटी दिल्ली के प्रो. पी शांति. कुमारन ने बताया कि संस्थान में ऐसा माइक्रोस्कोप तैयार किया जा रहा है, जिससे अबतक नजर नहीं आए अत्याधिक छोटे जीवाणु और कीटाणुओं का पता लग सकेगा। इससे कई बीमारियों के बारे में जानकारी मिल सकेगी।
ग्रीन नैनो टेक्नोलॉजी की खोज
आइआइटी कानपुर के प्रो. एस अनंत रामाकृष्णन ने ग्रीन नैनो टेक्नोलॉजी की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि छत को मैटामेटेरियल्स की कोटिंग की जाती है, जिससे यह अल्ट्रावायलेट और इनफ्रारेड तकनीक को कमरे के अंदर आने नहीं देता है। इसकी वजह से कमरे के अंदर का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक कम रहता है। उन्होंने बताया कि आइआइटी ने यह तकनीक विकसित कर ली है। साथ ही ऐसे स्टीकर बनाए हैं, जिससे शरीर की गर्मी का पता नहीं चलती है। इसे सेना के जवानों के लिए चश्मे और वर्दी बनाने के लिए प्रयोग करने की तैयारी चल रही है।
ऑप्टिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की बैठक
सेमिनार के दौरान ही ऑप्टिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की बैठक हुई। इसमें प्लासमॉनिक्स, फोटोकेमिस्ट्री, ऑप्टीकल इमेजिंग तकनीक पर विचार विर्मश हुआ। सेमिनार में यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, फ्रंास के तकनीकी संस्थानों से आए विशेषज्ञों ने नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी।