सहयोग से समाधान: वैश्विक महामारी में कैशलेस व्यवस्था से बदल गया ट्रांसपोर्ट कारोबार का स्वरूप

लाॅकडाउन के दौरान जब सब हर प्रकार का व्यापार बंद हुआ तो कुछ समय के लिए ट्रांसपोर्ट के पहिए भी थम गए लेकिन उसके बाद जब केंद्र ने इसके लिए अनुमति दी तो बिल्कुल नए अंदाज में ट्रांसपोर्ट सेक्टर उभर कर सामने आया।

By ShaswatgEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 12:32 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 12:32 AM (IST)
सहयोग से समाधान: वैश्विक महामारी में कैशलेस व्यवस्था से बदल गया ट्रांसपोर्ट कारोबार का स्वरूप
ट्रक से माल उतारते हुूए मजदूरों की प्रतीकात्मक फोटो।

कानपुर, जेएनएन। इस बात में तो काेई संदेह नहीं कि जिस डिजिटल आैर कैशलेस ट्रांजेक्शन को रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाने के लिए सरकार प्रयास कर रही थी वो प्रयास लॉकडाउन में सार्थक सिद्ध हुआ। लाॅकडाउन के दौरान जब सब हर प्रकार का व्यापार बंद हुआ तो कुछ समय के लिए ट्रांसपोर्ट के पहिए भी थम गए लेकिन उसके बाद जब केंद्र ने इसके लिए अनुमति दी तो बिल्कुल नए अंदाज में ट्रांसपोर्ट सेक्टर उभर कर सामने आया। लोगों ने अपने कारोबार के तरीकों को पूरी तरह बदल दिया था। जिस ट्रांसपोर्ट सेक्टर में कैश पर ज्यादा काम होता था, वहां लोग डिजिटल पर खुद को ले आए। खुद यूपी मोटर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश गांधी के मुताबिक उन्होंने अब बैंक से नकदी निकालना बंद कर दिया है। ऐसा इसलिए किया ताकि सब कुछ आॅनलाइन और नेटबैंकिंग के जरिए हो।

समाधान 1: ट्रक चालकों को ऑनलाइलन भेजी धनराशि 

यूपी मोटर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश गांधी के मुताबिक ट्रांसपोर्ट के कारोबार में वह शुरू से ही आॅनलाइन बैंकिंग के समर्थक थे लेकिन कर्मचारी नकदी ही मांगते थे लेकिन जब कोरोना काल आया और कर्मचारियों ने खुद डिजिटल होने का लाभ देखे तो उन्होंने भी खुद को डिजिटल करने की ओर मोड़ लिया। पूरे देश में करीब दो दर्जन आॅफिस हैं। ये आॅफिस सूरत, अहमदाबाद, बालोत्रा, पाली, लखनऊ, प्रयागराज, दिल्ली, बाराबंकी आदि स्थानों पर हैं और सभी जगह काफी स्टाफ भी है। लाॅकडाउन के दौरान जो भी चालक ट्रक लेकर निकले थे। उन्हें डिजिटल माध्यमों से धन भेजा गया ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो। इन सभी आॅफिस का खर्च भी पूरी तरह आॅनलाइन पेमेंट से किया जाता है। ग्राहक जो कैश लेकर आते हैं, उन्हें तो बैंक में जमा किया जाता है लेकिन वह धन बैंक से नकदी के रूप में नहीं निकाला जाता। आज पूरे कारोबार का 70 से 80 फीसद हिस्सा आॅनलाइन के जरिए ही है। इसकी वजह से अब काम करने में बहुत अच्छा लग रहा है। मिनटों में भुगतान भी हो जाता है और रुपये आ भी जाते हैं, पहले लोगों के पास भुगतान लेने के लिए कर्मचारी को भेजना होता था या किसी को भुगतान देना होता था तो किसी को भेजना पड़ता था।  

समाधान 2: कोरोना संकट में ऑनलाइन मीटिंग से हुई धन और समय की बचत

 कोरोना काल से सबक लेकर जो कर्मचारी पहले आॅनलाइन भुगतान से मना करते थे, वे भी अब नेटबैंकिंग को प्रमुखता देते हैं। पूरा प्रयास है कि सरकार ने कैशलेस व्यवस्था करने का जो सपना देखा है, उसमें सहयोग कर सकें। इस दौरान सबसे अच्छी बात यह रही कि इंटरनेट सेवा बाधित नहीं हुई। साथ ही इंटरनेट सेवा की सुविधाएं भी बहुत तेजी से बढ़ीं। मोबाइल के जरिए सबसे संपर्क था। अब तो पहले की तरह दूसरे शहरों में मीटिंग के लिए भी नहीं जाना पड़ता। कोरोना ने डिजिटल को जो बढ़ावा दिया, अब दूसरे आॅफिस के साथ जब बैठक करनी होती है, तुरंत सभी आॅनलाइन हो जाते हैं। इससे समय और धन दोनों की बचत हुई। पहले बैठक करने के लिए सभी आॅफिस के लोगों को किसी एक शहर में बुलाना पड़ता था। वहां कहीं होटल में रहने का खर्च भी होता था। साथ ही आने जाने का समय भी लगता था। अब ये सभी चीजें खत्म हो गई हैं। अपने आॅफिस में ही कार्य करते करते सभी लोग मीटिंग कर लेते हैं। मीटिंग खत्म होते ही फिर सभी अपने कार्यों में जुट जाते हैं। इससे यात्रा की थकान भी नहीं होती है।  

समाधान 3: वाट्सएप पर बिलिंग से कम हुआ पेपर वर्क का लोड 

सिर्फ हम ही नहीं और भी लोग डिजिटली काम करने लगे हैं। अब लोग वाट्सएप पर भेजे गए पत्रों को भी मान लेते हैं। इसके अलावा लोग वाट्सएप पर बिल भेज देते हैं तो उसे भी स्वीकार कर लिया जाता है। उसके आधार पर भुगतान भी हो जाते हैं जबकि पहले कभी बिल कहीं रास्ते में फंसा होता था तो कभी कोई फाइल अटक जाती थी। अब यह सब कुछ नहीं होता है। बिल्टी, ई-वे बिल सबकुछ चालक को आॅनलाइन भेज दी जाती है। पहले की तरह उसके हाथ में कागज थमाने की जरूरत नहीं होती। रास्ते में अधिकारी भी मोबाइल पर इन कागजों को देखकर उसे मान्यता देते हैं। यह डिजिटल के दौर में आगे बढ़ते हुए कदम हैं।

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