Kanpur Dakhil Daftar Column: साहब का शहर से मोह.., महंगी पड़ेगी आपकी मिठाई
कानपुर नगर के प्रशासनिक दफ्तरों की चर्चाओं के दाखिल दफ्तर कालम में इस बार सड़कों की खोदाई करने वाले विभाग के अभियंता एक नेता जी की कार्यप्रणाली से परेशान हैं। वहीं भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग के एक साहब अब एक कमरे में फाइलें निपटा रहे हैं।
कानपुर, दिग्विजय सिंह। कानपुर नगर में प्रशासनिक दफ्तरों में हलचल बनी रहती है और ज्यादातर चर्चाएं सुर्खियां बनने से रह जाती हैं। ऐसी ही चर्चाओं को चुटीले अंदाज में लेकर फिर लेकर आया है दाखिल दफ्तर कालम...।
आपकी मिठाई महंगी पड़ेगी
सड़कों की खोदाई करने वाले विभाग के अभियंता एक नेता जी की कार्यप्रणाली से परेशान हैं। नेता जी ठेकेदारी भी करते हैं। पिछले कई महीनों से उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा है। इससे वह परेशान हैं तो उन्होंने अब विभिन्न सड़कों के निर्माण कार्य की गुणवत्ता जांच की रिपोर्ट मांगनी शुरू कर दी है। इसके लिए वह दूसरों के नाम से सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाएं भी मांग रहे हैं। दीपावली से दो दिन पहले नेता जी आफिस पहुंचे और एक अधिकारी को मिठाई देना चाहा, मगर अधिकारी ने मना कर दिया। नेता जी बोले- काम नहीं देते हो न दो, मगर मिठाई तो खा लो। अधिकारी ने कहा, आपकी मिठाई बड़ी महंगी पड़ेगी नेता जी। आपने तो दिन का चैन और रात की नींद हराम कर रखी है। आखिर रोज-रोज शिकायतों और सूचनाएं क्यों मांगते हैं। नेता जी बोले, ठेका नहीं देंगे तो कुछ तो करूंगा।
वीआरएस कब ले रहो हो
भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग के एक साहब पिछले कई वर्षों से किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं। वर्षों तक उन्होंने अच्छी कुर्सी पर रहकर मलाई काटी, लेकिन अब एक कमरे में बैठे फाइलें निपटाते रहते हैं। वहां उनका साबका सिर्फ विभाग के अधिकारियों और लिपिकों से होता है। इससे वह दुखी हैं। चार माह पहले उन्होंने एक कैबिनेट मंत्री से ऊंची कुर्सी पाने का जुगाड़ लगाया। मंत्री जी ने आश्वासन दे दिया, लेकिन बाद में जुगाड़ काम नहीं आया। बड़े साहब ने उनसे साफ कह दिया कि चाहे जितना जोर लगा लें, अब कहीं अच्छी जगह और महत्वपूर्ण पद पर तैनाती नहीं मिलेगी। इससे दुखी वह लोगों से कहते घूम रहे हैं कि मन करता है कि अब वीआरएस लेकर घर बैठ जाऊं। यह बात बड़े साहब तक पहुंची तो उन्होंने पूछ लिया कि वीआरएस कब ले रहे हो। साहब के पूछते ही महोदय का चेहरा लटक गया।
साहब का शहर से मोह
गांवों का विकास कराने वाले विभाग के एक बड़े साहब को कानपुर से बड़ा मोह है। साहब का एक बार तबादला हुआ तो जुगाड़ से उसे रद करा लिया और यहीं डटे रहे। दो माह पहले उन्हें निलंबित कर दिया गया तो भी मोह शहर से बना रहा। हाईकोर्ट से जब निलंबन के आदेश पर रोक लग गई तो साहब फिर जुगाड़ लगाया और शहर में ही तैनाती करा ली। अब साथी अधिकारी भी उनके कानपुर मोह को लेकर परेशान हैं और जानने में लगे हैं कि साहब को आखिर कानपुर क्यों अच्छा लगा जो यहीं डटे रहना चाहते हैं। कुछ अधिकारी तो अब यह भी जानने में जुट गए हैं कि आखिर साहब का कौन सा ऐसा जुगाड़ है जो उन्हें मन मुताबिक कानपुर में ही तैनाती मिल जाती है। एक अधिकारी ने एक विधायक जी से यही सवाल पूछ लिया। विधायक बोले, मैं भी यही जानना चाहता हूं।
साहब महंगा पड़ेगा
गांवों का विकास कराने वाले विभाग के अधिकारी अपने विभाग के रिटायर कर्मचारी नेता से बहुत परेशान हैं। नेता जी अपने संगठन में प्रदेश स्तर के पदाधिकारी रहे, इसलिए उन्होंने कभी कुछ किया नहीं बल्कि अधिकारियों पर रौब कुछ ज्यादा ही गांठते रहे। अब वह रिटायर हो गए हैं, लेकिन उनके भाई अब भी विभाग में हैं। बड़े भई कर्मचारी नेता थे तो छोटे भाई काम कैसे करते, इसलिए वह भी मनमाफिक काम करते हैं, लेकिन बड़े साहब को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने उन्हें निपटाने का फैसला कर लिया और पहले उनके काले कारनामों की रिपोर्ट तैयार की और फिर एक दिन उन पर कार्रवाई कर दी। छोटे भाई को बचाने बड़े भाई साहब भी आ गए, लेकिन साहब ने उनकी एक न सुनी बल्कि इतना जरूर कह दिया कि अब आपकी नेतागिरी यहां नहीं चलने वाली। इतना सुन नेता जी को गुस्सा आ गया। बोले- साहब महंगा पड़ेगा।