आदि शक्ति स्वरूपा पांच देवियां यहां पूरी करतीं मनोकामना, जानिए मंदिरों की मान्यता और इतिहास

कानपुर और कानपुर देहात में आदि शक्ति की स्वरूप पांच देवियों के प्रमुख मंदिर में नवरात्र की अष्टमी व नवमी को भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

By AbhishekEdited By: Publish:Sun, 06 Oct 2019 04:29 PM (IST) Updated:Mon, 07 Oct 2019 09:53 AM (IST)
आदि शक्ति स्वरूपा पांच देवियां यहां पूरी करतीं मनोकामना, जानिए मंदिरों की मान्यता और इतिहास
आदि शक्ति स्वरूपा पांच देवियां यहां पूरी करतीं मनोकामना, जानिए मंदिरों की मान्यता और इतिहास

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। नवरात्र पर आदि शक्ति का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और अष्टमी व नवमी को पूजन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। कानपुर और कानपुर देहात में भी आदिशक्ति की विशेष कृपा है, यहां पांच आदि देवियों के प्राचीन मंदिर हैं। घाटमपुर स्थित मां कुष्मांडा देवी का मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। मां के चौथे स्वरूप का यह मंदिर पूरे उत्तर भारत में इकलौता माना जाता है। इसके अलावा बिरहाना रोड स्थित मां तपेश्वरी देवी, कानपुर देहात के डेरापुर स्थित मां कात्यायनी देवी, मूसानगर स्थित मां मुक्तेश्वरी देवी और बक्सर में मां चंडिका देवी मंदिर भी आस्था के बड़े केंद्र हैं। इन मंदिरों से जुड़े ऐतिहासिक व अध्यात्मिक पक्ष से जुड़ी रिपोर्ट...।

पूरे उत्तर भारत में यहीं होते हैं मां कुष्मांडा के दर्शन

घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर बेहद प्राचीन है। इतिहासकार लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी एवं नारायण प्रसाद अरोरा की पुस्तक 'कानपुर के इतिहास' में भी इसका उल्लेख है। वर्ष 1783 में कवि उम्मेद राव खरे द्वारा फारसी में लिखी पुस्तक ऐश-आफ्जा में उल्लेख है कि वर्ष 1380 में राजा घाटमदेव ने यहां कुष्मांडा देवी के दर्शन कर घाटमपुर नगर बसाया। किवदंती है कि 200 साल पहले यहां घना जंगल था। कुड़हा नामक ग्वाला जब यहां गाय लेकर आता था तो एक गाय उस स्थान पर आती थी जिसके थन से स्वत: दूध गिरने लगता था। खोदाई हुई तो यहां मां कुष्मांडा की प्रतिमा निकली। नगर के चंदीदीन भुर्जी ने वर्ष 1890 में यहां भव्य मंदिर बनवाया। कार्तिक अमावस्या पर यहां मेला भी लगता है।

त्रेतायुगीन है मां मुक्तेश्वरी देवी का मंदिर

मूसानगर कस्बे के निकट यमुना किनारे मां मुक्तेश्वरी मंदिर त्रेतायुगीन माना जाता है। बीहड़ पट्टी के इस मंदिर में यमुना के उत्तरगामिनी होने पर पूजन का विशेष महत्व है। यहां कभी बीहड़ पट्टी के दस्यु मन्नत मानने व चढ़ौका चढ़ाने आते थे, उनकी यह आराध्य देवी थीं। दैत्यराज बलि की राजधानी के रूप में चर्चित मूसानगर कस्बे के निकट कालिंद्री तट पर स्थित पौराणिक मुक्तेश्वरी मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। सदियों पुराने इस मुक्तेश्वरी मंदिर के कारण कस्बे का नाम मुक्तानगर पड़ा था। जो अपभ्रंश रूप में अब मूसानगर के नाम से जाना जाता है। किवदंती के अनुसार दैत्यराज बलि ने यहां 99 यज्ञों के साथ ही एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। यहां देव यक्ष व किन्नरों का निवास होने से एक समय इसको देवलोक के समान स्थान प्राप्त था। नवरात्र में यहां मूर्ति का विशेष शृंगार होता है। बच्चों के मुंडन संस्कार भी होते हैं और मेला लगता है।

सीता के तप से हुआ तपेश्वरी देवी का प्राकट्य

बिरहाना रोड स्थित माता तपेश्वरी देवी का मंदिर भी आस्था का बड़ा केंद्र है। किवदंती है कि भगवान राम ने जब सीता जी का त्याग कर दिया तो वे ब्रह्मावर्त (बिठूर) स्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगीं और यहीं उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया, जिससे तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ। मान्यता है कि यहीं लव और कुश का मुंडन हुआ था। इसलिए इस मंदिर में अखंड ज्योति जलाने और बच्चों का मुंडन कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

आस्था का केंद्र है कालिंदी तीरे मां कात्यायनी का दरबार

जिले के अमरौधा ब्लाक के कथरी गांव में आदि शक्ति के कात्यायनी अवतार का मंदिर है। इटावा रोड पर शाहजहांपुर गांव से छह किलोमीटर दूर यमुना तट पर बना यह मंदिर बेहद प्राचीन माना जाता है, हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। यह मंदिर बीहड़ के डाकुओं का आस्था का बड़ा केंद्र रहा है। पुलिस की कड़ी चौकसी के बीच यहां सबसे पहले ध्वज चढ़ाने की डाकुओं की कई कहानियां प्रचलित हैं। सांसद बनने के बाद फूलनदेवी भी यहां पूजन करने आईं थीं। मंदिर के महंत बाबू भट्ट के अनुसार गांव के राजाराम यादव ने सुनाव नाले से देवी मूर्ति लाकर ऊंचे टीले पर स्थापित की थी। कालांतर में शाहजहांपुर के तत्कालीन राजा गजाधर दुबे ने पुत्र-प्राप्ति की मन्नत पूरी होने पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था।

पुराण में वर्णित हैं सिद्धपीठ चंडिकादेवी धाम की महिमा

सुमेरपुर ब्लाक से 18 किलोमीटर दूर बक्सर में गंगा तट पर स्थित सिद्धपीठ चंडिकादेवी धाम को द्वापर युग का माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहीं पर मेधा ऋषि ने राजा सुरथ और समाधि वैश्य को मां दुर्गा के महात्म्य सुनाया था। जो दुर्गा सप्तशती के नाम से विख्यात हैं। महाभारत काल में बलराम ने इस क्षेत्र की यात्रा की थी यहां पर परम तपस्वी वक्र ऋषि का आश्रम था। इसीलिए यह स्थान बक्सर कहलाया, यहां मां की मूर्ति का प्राकट्य अकस्मात होना बताया जाता है। मंदिर में चंडिका व अंबिका देवी के दो विग्रह हैं। धाम की सीढिय़ों से सटकर हमेशा गंगा का प्रवाह होता है। यहां कई जिलों से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पूजन करने आते हैं।

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