किसान को 28 साल बाद मिलेगा तय हुआ मुआवजा, 47 साल पहले हुआ था भूमि अधिग्रहण
अवमानना में आवास विकास के कमिश्नर व अधिशासी अभियंता तलब मुआवजा देने पर नहीं होना होगा पेश।
कानपुर, [आलोक शर्मा]। दीवानी मुकदमों में सजा का प्रावधान नहीं है, लेकिन लंबी चलने वाली प्रक्रिया पीडि़त के लिए किसी सजा से कम नहीं होती। शहर से जुड़ा ऐसा ही एक मामला है जो 47 साल तक चला और 55 रुपये गज की दर से मुआवजा देने के आदेश हुए हैं। यह मुआवजा भी नहीं देने पर हाईकोर्ट ने आदेश की अवमानना में आवास विकास परिषद के कमिश्नर और अधिशासी अभियंता को व्यक्तिगत रूप से तलब किया है। अधिकारियों को 14 सितंबर तक हाईकोर्ट में पेश होना है। इस दौरान आवास विकास मुआवजा देता है तो अफसरों को हाईकोर्ट में पेश होने की जरूरत नहीं है, उनको हलफनामा देना होगा।
यह है मामला
शहर के बूढ़पुर मछरिया में आवास विकास परिषद ने वर्ष 1973 में रामरतन ङ्क्षसह के परिवार की 18 बीघा, धनंजय प्रताप ङ्क्षसह व अन्य की 16 बीघा जमीन का अधिग्रहण किया था। वर्ष 1980 में आवास विकास ने कब्जा ले लिया। 23 सितंबर 1986 को आवास विकास ने जो मुआवजा तय किया, काफी कम था। मुआवजा बढ़ाने के लिए जिला जज के यहां वाद दाखिल किया गया। तत्कालीन जिला जज ने वर्ष 1992 में आदेश करते हुए मुआवजा बढ़ा दिया। रामरतन को 55 रुपये प्रति वर्ग गज और धनंजय को 45 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से मुआवजा देने के आदेश हुए।
आवास विकास ने आदेश को चुनौती दी
जिला जज के आदेश को आवास विकास ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। तर्क दिया कि उन्हें नहीं सुना गया है। हाईकोर्ट ने वर्ष 2004 में रामरतन और वर्ष 2010 में धनंजय का मामला पुन: सुनवाई के लिए जिला न्यायालय भेज दिया। तत्कालीन अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तृतीय ने वर्ष 2018 में मुआवजे की पूर्व दर को यथावत रखते हुए तीन माह में मुआवजा देने के आदेश दिए।
दो साल में नहीं दिया मुआवजा, दाखिल की अवमानना
हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता लालमणि ङ्क्षसह, अधिवक्ता रघुवीर शरन ङ्क्षसह ने बताया कि दो साल इंतजार के बाद 17 फरवरी 2020 इलाहाबाद हाईकोर्ट में अवमानना वाद दाखिल किया। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मामले में आवास एवं विकास परिषद के कमिश्नर अजय चौहान और अधिशासी अभियंता निर्माण विभाग योजना दो हंसपुरम आफताब आलम को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने के आदेश दिए हैं। आवास विकास ने अपील नहीं की है इसलिए अब मुआवजा देना ही एक मार्ग है।