मेरे कानपुर को किसी की नजर लग गई...श्मशान घाट पर शवों की बेकदरी पर रो रहे स्वजन
कैंट निवासी पवन कुमार की बड़ी मां का निधन कोरोना से हो गया। पहले वह अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए परेशान रहे लेकिन जब बड़ी मां को नहीं बचा पाए तो फिर उनके अंत्येष्टि को लेकर शमशान घाट पर परेशान रहे।
कानपुर, जेएनएन। शहर में कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। मरीजों की मृत्यु के आंकड़े न केवल ध्वस्त स्वास्थ्य व्यवस्था अपितु अस्पतालों में फैली अव्यवस्था की भी पोल खाेल रहे हैं। स्वजन की असामयिक मौत के आगे लोग बेबस नजर आ रहे हैं। कानपुर महानगर के सभी श्मशान घाट पर वर्तमान समय में शवों का अंबार लगता जा रहा है। वहीं रोते बिलखते स्वजन खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
अव्यवस्था पर बिलख कर राेए पवन: कैंट निवासी पवन कुमार की बड़ी मां का निधन कोरोना से हो गया। पहले वह अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए परेशान रहे, लेकिन जब बड़ी मां को नहीं बचा पाए तो फिर उनके अंत्येष्टि को लेकर शमशान घाट पर परेशान रहे। सुबह दस बजे एंबुलेंस से शव भैरवघाट लेकर गए। दोपहर करीब दो बजे उन्हें टोकन दिया गया। समय किस कदर खराब है, उन्हें अपनी बड़ी मां के शव का अंतिम क्रियाकर्म तक करने के लिए सिफारिश करनी पड़ी। वे इंतजार ही कर रहे थे कि कोई चिता सजाएगा, लेकिन हालात ऐसे हैं कि उन्हें खुद ही चिता बनानी पड़ी। परिवार के शव के साथ चार लोग ही गए थे ऐसे में लकड़ी को तय जगह पर ले जाना और चिता बनाना भी काफी मुश्किल था। चूंकि घाट पर क्रियाकर्म कराने वाले पंडे संक्रमितों शवों को नहीं छूते इसलिए चिता बनाने के बाद पैक शव को उठाकर भी उन्हें चिता पर रखना पड़ा। पवन बताते हैं कि यह सब इतना अजीब था कि बता नहीं सकते। वह सब कुछ करना पड़ा जिसके लिए सपने में भी नहीं सोचा था। शवों कि गिनती की तो 47 शव थे। सभी पैक थे इसलिए कह सकते हैं संक्रमित रहे होंगे। उनके शव का नंबर 21 था। यह सब बताते बताते पवन रो पड़े। बोले, मेरे कानपुर को न जाने किसकी नजर लग गई है।