12 अरब खर्च फिर भी बिगड़ी शहर की सूरत
शहर के विकास के नाम पर 12 अरब रुपये खर्च कर दिए गए लेकिन समस्याएं हैं कि मुंह बाए खड़ी हुई हैं।
जागरण संवाददाता, कानपुर : शहर के विकास के नाम पर 12 अरब रुपये खर्च कर दिए गए लेकिन समस्याएं हैं कि मुंह बाए खड़ी हुई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ये धनराशि आखिर कहां खर्च की गई। शहरवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं और जिम्मेदार शहर को चमकाने का ढिंढोरा पीट रहे हैं। हकीकत में देखें तो पग-पग पर घटिया कामों की पोल खोलती तस्वीर नजर आती है। सरकारी धन से खिलवाड़ करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकती क्योंकि ये अफसरों ने जो किया है। सारे नियम व कानून सिर्फ आम लोगों के लिए होते हैं, तभी तो कार्रवाई होने के अलावा जुर्माना भी उन्हीं को देना पड़ता है।
अफसरों के भ्रष्टाचार की पोल खोलने के लिए एक ही योजना बहुत है। जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) में पेयजल योजना के नाम पर अरबों रुपये बह गए लेकिन पानी घरों में अब तक नहीं पहुंच सका है। उल्टे लीकेज ठीक करने में करोड़ों रुपये और खर्च कर दिए।
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टंकी बना दी, कनेक्शन जोड़ा नहीं
सरकारी अफसरों की इंजीनिय¨रग समझ से परे है। जेएनएनयूआरएम की साढ़े आठ अरब रुपये की पेयजल योजना 12 साल बाद भी नहीं चालू हो पाई है। अफसरों ने टंकी व जलाशय पहले बना दिए। पाइप लाइन बिछा डाली पर पाइपों की टेस्टिंग नहीं की। अब टेस्टिंग हो रही है तो पाइप उखड़ रहे हैं। पांच सौ से ज्यादा लीकेज हो चुके हैं लेकिन आज तक लाइन चालू नहीं हुई है। काम को देखते हुए अभी चालू होते हुए नजर भी नहीं आ रही है।
आइटीएमएस के सिग्नल भी खराब
32 करोड़ रुपये की आइटीएमएस (इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम) योजना चालू हुए दो माह हो चुका है लेकिन सभी सिग्नल काम नहीं कर रहे हैं। नगर निगम के अफसरों ने भी दबाव में बिना जांचे ही कैमरे लगवा दिए।
न्यू ट्रांसपोर्ट नगर योजना बेहाल
ट्रांसपोर्ट नगर के कारण लगने वाले जाम से निजात के लिए भाऊसिंह पनकी में तीन अरब रुपये की न्यू ट्रांसपोर्ट नगर योजना बनी थी लेकिन अभी चालू नहीं हो पाई है। घटिया कामों के चलते यहां बनाई गई सड़कें व इंटरलाकिंग उखड़ने लगी है।
50 करोड़ का कूड़ा प्लांट दिखावा
50 करोड़ रुपये से भाऊसिंह पनकी में बना कूड़ा निस्तारण प्लांट दिखावा बन गया है। एक साल हो गया पर कूड़े से बिजली का प्लांट नहीं चालू हो पाया। घर-घर से कूड़ा उठाने की योजना भी फ्लाप हो गई है। जगह-जगह एकत्र गंदगी खुद पोल खोल रही है।
लाखों खर्च, नहीं हटा अतिक्रमण
हर साल अतिक्रमण हटाने को लेकर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। दस्ते के लौटते ही फिर कब्जे हो जाते हैं। आज तक ठोस कारगार योजना नहीं बन पाई है।
बनने के साथ उखड़ने लगीं सड़कें
करोड़ों रुपये की बनी सड़कें उखड़ गई हैं। यहीं नहीं गढ्डों को भरने के लिए 30 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन न गढ्डे खत्म हुए न सड़क बन पाई है। जनता रोज टूटी सड़कों में फंसकर चुटहिल हो रही है।