'झोले' में उलझी जिंदगी

By Edited By: Publish:Sat, 04 Jan 2014 10:51 PM (IST) Updated:Sat, 04 Jan 2014 10:51 PM (IST)
'झोले' में उलझी जिंदगी

अमरोहा। नोटिस दो, अखबारों में छपवाओं, कार्यालय बुलाओ और मामला खत्म या फिर थाने में रिपोर्ट कराकर शांत बैठ जाओ। झोलाछापों के खिलाफ कार्रवाई में सालों से यही चल रहा है, इसलिए अब जनता ने चिकित्सा विभाग पर भरोसा करना लगभग बंद कर दिया है। पूरे जिले में लगभग 400 झोलाछाप सक्रिय हैं, लेकिन उनपर कार्रवाई नहीं होती। यह कारण है कि झोलाछापों के यहां मौत नसीब होने के बाद भी पीड़ित उनके खिलाफ कार्रवाई को तैयार नहीं हो, जांच को पहुंचने वाली चिकित्सा टीमों को ही बैरंग लौटा रहे हैं।

औद्योगिक नगरी ही नहीं पूरे जिले में झोलाछाप चिकित्सकों का राज चल रहा है। सच्चाई यह है कि शहर कोई हिस्सा व गांव ऐसा नहीं है, जहां झोलाछाप मेज कुर्सी डाले प्रैक्टिस नहीं कर रहे हों। इनकी प्रैक्टिस से रोगियों की हालत बिगड़ने व मौत होने पर हंगामा होना भी आम है। हाल में ही ग्राम सुल्तानठेर की महिला की मौत होने और टीचर कालोनी में प्रसव के बाद सिहाली गौसाई की एक महिला की मौत होने का मामला खासा तूल पकड़ा। इसकी भनक लगने पर जिला मुख्यालय से आए नोडल अधिकारी डा. इदरीश टीम के साथ जांच को भी पहुंचे। जिन चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए थी, उनके लिए नोडल अधिकारी को पीड़ित पक्षों की शिकायत लिखित में मिलनी चाहिए थी। इसके लिए नोडल अधिकारी ने पीड़ितों से कहा तो उन्होंने लिखकर देने से साफ इंकार कर दिया। नोडल अधिकारी के मुताबिक सुल्तानठेर की महिला के परिजनों ने महिला की मौत रास्ते में होना बताते हुए चिकित्सक को क्लीनचिट दे दी। सिहाली गौसाई की महिला के परिजनों ने भी कार्रवाई के लिए कुछ भी लिखकर देने से इंकार कर दिया। ऐसे में नोडल अधिकारी को बैरंग लौटना पड़ गया। उनका कहना है कि यदि पीड़ित पक्ष लिखकर देते तो चिकित्सकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की कार्रवाई की जा सकती थी। इसका मतलब साफ हुआ कि चिकित्सा विभाग पर अब पीड़ितों को यकीन नहीं है कि वह कार्रवाई कर सकेंगे। इसी कारण हंगामे के बाद पीड़ित स्वयं शांत पड़ जाते हैं। दूसरी तरफ चिकित्सा महकमा झोलाछापों के यहां छापे भी मारता है, मौजूद नहीं मिलने पर उनके खिलाफ नोटिस जारी कर उन्हें सीएमओ आफिस भी तलब किया जाता है, ताकि उनके कागजात चैक किए जा सके। इसके बाद क्या होता है कि मामला ठंडा बस्ते में पहुंच जाता है। इसी कारण झोलाछापों की तादात घटने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। हाल के अक्टूबर व नवंबर माह में बुखार का प्रकोप फैलने पर किस तरह पीड़ितों को डेंगू बताकर मेरठ, दिल्ली, गाजियाबाद भेजकर उनका शोषण किया गया, यह बात जगजाहिर है।

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पीड़ित लिखकर दें तो होगी कार्रवाई: डा. इदरीश

गजरौला: चिकित्सा महकमा के नोडल अधिकारी डा. इदरीश का दावा है कि ग्रामीणों ने आरोपी चिकित्सकों से समझौता होने के कारण ही कार्रवाई के लिए लिखकर नहीं दिया। यदि वह झोलाछाप के उपचार होने से मौत होने की बात लिखकर देते हैं तो कार्रवाई की जाएगी।

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