गर्मी में जुताई करने से मृदा में बढ़ जाती है जलधारण क्षमता
खेती में कीट व रोग नियंत्रण कार्य हेतु एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कार्यक्रम द्वारा जागरूक किए जाने का अभियान चलाया जा रहा है। आईपीएम का प्रमुख उद्देश्य रसायनों कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करके प्रदूषण रहित पर्यावरण तथा विषरहित फसलोत्पादन प्राप्त करना है।
जागरण संवाददाता, जौनपुर: खेती में कीट व रोग नियंत्रण कार्य हेतु एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कार्यक्रम द्वारा जागरूक किए जाने का अभियान चलाया जा रहा है। आईपीएम का प्रमुख उद्देश्य रसायनों, कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करके प्रदूषण रहित पर्यावरण तथा विषरहित फसलोत्पादन प्राप्त करना है। जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश कुमार राय ने किसानों को सलाह दी कि खाली खेतों की जुताई कर दें, क्योंकि जुताई से मृदा की संरचना में सुधार के साथ ही जल धारण की क्षमता बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा कि खेतों की ग्रीष्मकालीन जुताई से मृदा के अंदर छिपे हुए हानिकारक कीड़े- मकोड़े और उनके अण्डों, सूडियों, लार्वा, प्यूपा सूर्य की तेज किरणों के संपर्क में आने से नष्ट हो जाते हैं। सलाह दिया कि फसलों में कीटों व रोगों का प्रकोप होने पर सर्व प्रथम बायोपेस्टीसाइड्स- जैसे नीम आयल, ट्राइकोडरमा, ट्राइको कार्ड, ब्यूवेरिया बेसियाना, बीटी आदि का प्रयोग करें। इस विधि में फसल की बुवाई से पूर्व तथा कटाई तक विभिन्न उपायों को अपनाकर कृषि की अन्य शस्य, जैविक और यांत्रिक विधियों द्वारा फसलों में कीटों व रोगों का नियंत्रित किया जाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जायद में प्रमुख रूप से उगाई जाने वाली उर्द व मूंग की फसल में पीला चित्रवर्ण (येलोमोजैक) रोग की वाहक सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी रसायन अथवा मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 प्रतिशत ईसी रसायन को एक लीटर मात्रा या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में आठ से दस दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
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