साप्‍ताहिक कालम जैसा देखा सुना : सजल बाजार, सजनी हमहूं उम्मीदवार Gorakhpur News

गोरखपुर से साप्‍ताहिक कालम में इस बार पंचायत को आधार बनाया गया है। पंचायत चुनाव में गांव के माहौल गांव के दबंग लोग और उनकी कारस्‍तानी को फोकस किया गया है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से रजनीश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कालम जैसा देखा सुना---

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 08 Apr 2021 04:03 PM (IST) Updated:Thu, 08 Apr 2021 04:03 PM (IST)
साप्‍ताहिक कालम जैसा देखा सुना : सजल बाजार, सजनी हमहूं उम्मीदवार Gorakhpur News
चुनाव प्रचार सामग्री की दुकान का दृश्‍य, जागरण।

गोरखपुर, रजनीश त्रिपाठी। पिछले साल कोरोना के चलते मुंबई से लौटे 'परदेसी को गांव की आबोहवा इतनी रास आई कि दोबारा लौटकर ही नहीं गया। पहले वहां पेंट-पालिश का ठीका लेता था, अब अपने शहर में काम कर रहा है। इस बीच गांव में चुनावी बयार बहनी शुरू हुई तो गंवई राजनीति में उसका मन लगने लगा। तय किया कि बहुत हुआ पेंट-पालिश का ठीका, अब तो गांव की सरकार चलानी है। दोस्तों से सलाह ली तो उन्होंने बैंक बैलेंस का हिसाब मांगा। जोड़-घटाना करने के बाद तय किया कि मैदान में उतर लिया जाए। खर्चा करने भर का माल तो अपने पास है ही। फिर क्या था परदेसी पहुंच गए ब्लाक और खरीद लिया प्रधान पद का पर्चा। गाजे-बाजे के साथ पर्चा लेकर घर पहुंचे तो पत्नी और मां-बाप नजारा देखकर दंग रह गए। सोचा, का हुआ। घर वालों के पूछने पर बताया कि चुनाव के सजल बा बाजार, सजनी हमहूं उम्मीदवार।

दगे 'कारतूस को चुभ रहे 'छर्रे

नई उम्र के लड़कों को गुंडई के किस्से सुनाकर कट्टा, दारू से परिचित कराने वाले 'कारतूस बाबा परेशान हैं। प्रधानी का माल बटोरने के लिए ताल तो ठोंक दी, लेकिन समझ नहीं पा रहे कि जीतें तो कैसे। दरअसल दस साल पहले जिन छर्रों (नई उम्र के लड़के) को हीरो बनाने का सपना दिखाकर पीछे-पीछे घुमाया था, वह अब बुलेट बन गए हैं। जान गए हैं कि 'बाबा दगा कारतूस है। जरूरत पडऩे पर तहसील, थाना, पुलिस तो दूर सिपाही-चौकीदार से भी नहीं बतिया सकता है। डरता है कहीं हिस्ट्रीशीट न खुल जाए। छर्रे चुनावी मैदान में उतरे तो बाबा ने संदेशा भिजवाया कि बचपना मत करो, बैठ जाओ। हम बताएंगे कि आगे क्या करना है। लड़कों ने कहा कि जब जरूरत पर उन्हें काम ही नहीं आना तो फिर हमे भी रिश्ता क्या निभाना। हम तो नहीं हटने वाले बाबा को बोल दो कि वही मान जाएं इस बार।

अब नहीं चलेगा, तुम पंत और मैं निराला

सुनसान गली में निवर्तमान और पूर्व प्रधान की बातचीत सुनकर बंदे को यकीन नहीं हुआ तो खिड़की से झांककर तस्दीक करने लगा कि कहीं कान धोखा तो नहीं दे रहे। दरअसल बात ही ऐसी थी। एक-दूसरे से कट्टर दुश्मनी दर्शाने वाले पूर्व प्रधान ने निवर्तमान से कहा-भाई, पांच साल तो कट गए पर अब नहीं चलेगा। समर्थकवा सब रोज ललकार रहे हैं कि हमला बोलिये प्रधान पर। जब तक पोल पट्टी नहीं खुलेगी, लोग कइसे जानेंगे कि पांच साल में प्रधान ने कितना 'काम किया। तुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हें निराला की नीति अब नहीं चलने वाली। प्रधान का जवाब भी चौंकाने वाला था। कहा- कहने दो इन सबको, बहंटिया जाओ। और नहीं तो हम भी रखे हैं तुम्हारे कार्यकाल का चिट्ठा निकालकर। तुम हमारा दिखाओ, हम तुम्हारा दिखाते हैं। फिर दारू-मुर्गे का आर्डर कैंसिल कर देते हैं। जो जनता को समझा ले गया, वह करेगा राज पांच साल।

लोकतंत्र के पर्व में मतदाता निराश

पर्व जब भी आता है, तो उत्साह और उमंग लेकर आता है। बात यदि लोकतंत्र और पंचायत चुनाव की हो तो क्या कहने। इसमें लोगों की पूछ बढ़ जाती है। दावतों का दौर शुरू हो जाता है। तमाम प्रतिबंध और रोक के बावजूद लोग खाने तो उम्मीदवार खिलाने को तैयार रहते हैं। इस बार के पंचायत चुनाव में भी लोग कम उत्साहित नहीं थे, लेकिन पिछले दिनों घोषित हुई मतदान की तिथि ने यहां के खाने-पीने के शौकीनों को निराश कर दिया। जिले में पहले चरण में ही मतदान होना है। शौकीनों को यही बात अखर रही है। वे अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। बातचीत में उनका दर्द भी छलक पड़ता है। बोल पड़ते हैं कि उन जिलों के लोगों की किस्मत देखिए, जहां आखिरी चरण में मतदान होना है। पूरे महीने भर उनकी आवभगत होगी। एक हमारी किस्मत है। 15 अप्रैल को मतदान खत्म होते ही सब खत्म।

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