साप्‍ताहिक कालम: पोखरा खोदा नहीं, 'प्यासे पहुंच गए Gorakhpur News

गोरखपुर के साप्‍ताहिक कालम में इस बार नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों पर फोकस किया गया है। उनके कार्य व्‍यवहार और दिनचर्या पर आधारित रिपोर्ट है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से दुर्गेश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कालम हाल बेहाल।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 27 Mar 2021 04:09 PM (IST) Updated:Sat, 27 Mar 2021 04:09 PM (IST)
साप्‍ताहिक कालम: पोखरा खोदा नहीं, 'प्यासे पहुंच गए Gorakhpur News
गोरखपुर नगर निगम के महापौर सीताराम जायसवाल का फाइल फोटो, जेएनएन।

 गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। शहर के छोटे माननीयों में 30 लाख का क्रेज इतना बढ़ गया है कि वह न जाने कितने वादे कर चुके हैं। विकास कार्यों के लिए इन रुपयों को छोटे माननीयों की वरीयता के माध्यम से खर्च किए जाने का बाऊ जी ने वादा किया है। जब छोटे माननीय बाऊ जी के सामने होते हैं तो 30 लाख की चर्चा जरूर करते हैं। पिछले साल कोरोना शुरू होने के पहले चुने गए एक छोटे माननीय की पहचान व्यापारियों के नेता के रूप में भी है। कई छोटे माननीय बाऊ जी के दरबार में थे। चुने गए माननीय भी पहुंचे। बात-बात में 30 लाख का मामला उठा दिया। चाहते थे कि होली से पहले टेंडर हो जाए तो रंग खेलने का मजा बढ़ जाएगा। बाऊ जी कहां किसी को छोडऩे वाले। छोटे माननीय की ओर मुखातिब होकर बोले, पोखरा खोदा नहीं, 'प्यासेÓ पहुंच गए। यह सुनते ही चुने गए माननीय चुप हो गए।

अब दरबार नहीं लगता, दरबारी परेशान

सफाई महकमे में अच्छे दिन अब बीते दिनों की बात हो गई है। वह भी क्या दिन थे जब बड़े साहब के कमरे में घंटों गप-शप करने का मौका मिलता था। सब अपनी-अपनी हांकने में जुटे रहते थे। एक के पीछे एक कर धीरे-धीरे सभी साहब बड़े साहब के कमरे में पहुंच जाते थे। सुबह, दोपहर और रात तक काम की कम देश-दुनिया की ज्यादा चर्चा चलती थी। लेकिन अब नजारा बदल गया है। नए वाले साहब पर महकमे के साथ ही विकास से जुड़े दूसरे महकमे के विकास का भी जिम्मा है। साहब थोड़ा रिजर्व रहते हैं इसलिए काम की ही बात करते हैं। ऐसी स्थिति में दरबार के आदतियों को आदत बदलने में दिक्कत हो रही है। कुछ दिनों तक तो दरबार दोबारा लगाने की कोशिश हुई लेकिन साहब काम से काम रखने वाले निकले तो धीरे-धीरे सभी गायब हो गए। अब काम करना पड़ रहा है।

लगाते गुहार, इतना काम न करो साहब

कर्नल साहब कभी काम से भागते नहीं हैं। जो काम सौंप दिया गया, उसे इतनी जिम्मेदारी से पूरा कराते हैं कि सभी साहबों के चहेते बन गए हैं। साहब भी जानते हैं कि कर्नल साहब मौके पर हैं तो कोई टेंशन नहीं। कर्नल साहब पर तो काम का जुनून सवार है लेकिन मातहतों के साथ ऐसा नहीं हैं। सभी सेना से ही सेवानिवृत्त होने के बाद कर्नल साहब के साथ हैं लेकिन इतना काम करने की कभी सोची नहीं थी। सुबह से शाम की कौन कहे आधी रात तक कर्नल खुद बिना चाय-पानी खड़े रहते हैं और मातहतों को भी काम में तल्लीन रहने का जोश भरते रहते हैं। सुस्ती के शिकार मातहतों के साथ महकमे के वह कर्मचारी भी परेशान हैं जो बार-बार घड़ी देखकर आठ घंटे पूरे होने का इंतजार करते हैं। कर्नल साहब बीमार हुए तो सभी सीख देने में जुटे हैं, 'साहब इतनी मेहनत न करो।Ó

पानी पिलाने वाले के रिश्तेदार हैं

महकमे में नौकरी को लेकर कभी विवाद नहीं होता है। घरै-घराना वाली कहावत यहां खूब सच होती है। दिखाने के लिए नौकरी दिलाने वाला एक काउंटर भी खोला गया है। लेकिन जब नौकरी देने की बारी आती है तो जुगाड़ सिस्टम एक्टिव हो जाता है। अब महकमे से जुड़े पानी पिलाने वालों की बात ले लें। पुराने वाले साहब के सामने एक फाइल रखी गई। जुगाड़ उन साहब का था जो खुद जुगाड़ लगाकर महकमे में वापस लौटे हैं। लेकिन न जाने कौन सा अनुरोध था, पुराने वाले साहब ने कलम चला दी। कुछ कहते हैं कि साहब को एहसास हुआ तो दूसरी बार कलम से अपने आदेश को रद कर दिया पर मामला बढ़ गया। अब पानी पिलाने वाले साहब आगे आ गए हैं। पहले आदेश को सही बता पैरवी करने लगे। चर्चा है कि नौकरी पाने के लिए लाइन में लगने वाला इन साहब का रिश्तेदार है।

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