तीसरी नजर : तब कहां थे जंगल के निगहबान Gorakhpur News

वन विभाग की कार्य प्रणाली भी अजीब है। अब वह पानी में लकड़ी तलाश रहे हैं। दर असल लकड़ी तस्‍करों पर अंकुश लगा पाने में नाकाम वन विभाग केवल हवा में तीर चला रहा है। पढ़े गोरखपुर से नवनीत प्रकाश त्रिपाठी का साप्‍ताहिक कॉलम तीसरी नजर---

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 05:43 PM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 05:43 PM (IST)
तीसरी नजर : तब कहां थे जंगल के निगहबान Gorakhpur News
जमीन के अंदर मिट्टी में दबाकर रखा गया लकड़ी का बोटा।

नवनीत प्रकाश त्रिपाठी, गोरखपुर। जंगलों की निगहबानी करने वाला महकमा इन दिनों 'थल के साथ 'नभ और 'जल पर भी पहरेदारी की जुगत में है। जंगल में गश्त का दावा है तो वनक्षेत्र स्थित ताल में स्टीमर से लकडी तलाशी जा रही है। आगे ड्रोन से भी निगरानी होगी। विभाग ने दस दिन स्टीमर से सर्च ऑपरेशन चलाया तो कैंपियरगंज और फरेंदा जंगल से साखू और सागौन के पेड़ काटकर सरुआताल में छिपाए गए 70 बोटे बरामद हुए। लकडिय़ों की बरामदगी के बाद विभाग ने सरुआताल में मछली पालन करने वाली समिति के सचिव के खिलाफ केस भी ठोंक दिया है। इससे पहले इसी जंगल से काटे गए साखू और सागौन के 179 बोटे संतकबीरनगर जिले से बरामद किए गए थे। बड़े पैमाने पर कटान होती रही, लेकिन वन सुरक्षाकर्मियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। ऐसे में सवाल तो लाजिमी है कि जब कटान हो रही थी, तब कहां थे जंगल के निगहबान?

अब फोन से डर लगता है

पुलिस चाहे जितने डंडे भांज ले, लेकिन डग्गामार वाहन अपनी वाली करने से बाज नहीं आते। कहीं भी गाड़ी खड़ी कर सवारी भरने लगते हैं। जाम लगे तो लगे, डग्गामार वाहन चालक इसकी परवाह नहीं करते। वैसे जानकार, इस मनमानी की वजह वाहन चालकों और पुलिस के बीच पर्दे के पीछे चलने वाला समझौता बताते हैं। हां, जाम लगने पर दिखावे के लिए ही सही, पुलिस वाले डंडा भांजने लगते हैं और वाहन चालक अपना काम करते रहते हैं। जाम से निजात दिलाने को अधिकारियों ने सख्ती दिखानी शुरू की तो पुलिस वालों ने डंडा भांजना तेज किया, लेकिन वाहन चालक परवाह नहीं करते। अलबत्ता पुलिस वाले के मोबाइल फोन निकालते ही गाड़ी लेकर फरार हो जाते हैं। एक चालक से इसकी वजह पूछी तो बताया फोटो खींचकर ऑनलाइन चालान कर देते हैं। जुर्माने के तौर पर बड़ी रकम जमा करनी पड़ती है, इसलिए मोबाइल फोन से डर लगता है।

अब भेज रहे बर्बादी की रिपोर्ट

गोरखपुर मंडल में 13 हजार हेक्टेयर गन्ने की फसल बर्बाद हो गई है। सबसे अधिक नुकसान गन्ने का कैंसर कहे जाने वाली बीमारी रेड राट की वजह से हुई है। हालांकि गन्ने की बहुत सी ऐसी प्रजातियां हैं, जिसमें यह रोग लगने की आशंका न के बराबर होती है। शासन ने गन्ना विभाग को अभियान चलाकर किसानों को रेड राट रोग से मुक्त गन्ने की प्रजातियों के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया था। बुआई का सीजन खत्म होने के बाद विभाग ने शासन को जागरूकता अभियान की रिपोर्ट भी भेजी थी, लेकिन बड़े पैमाने पर गन्ने की फसल रेड राट रोग की चपेट में आने बर्बाद हो गई। गन्ना विभाग पहले तो इस बर्बादी को छिपाने की कोशिश करता रहा, लेकिन फसल का नुकसान इतना अधिक हुआ था कि इसमें सफल नहीं हो पाया। बेमन से ही सही, अब बर्बादी की रिपोर्ट शासन को भेजी जा रही है।

सिर पर केतना बार, समनवे आई

जाते-जाते मानसून ने सड़क बनवाने वाले सबसे प्रमुख महकमे की कार्यशैली का नीर-क्षीर आकलन कर दिया। इस महकमे ने शहर के उत्तरी छोर के कुछ गांवों को गोरखपुर-महराजगंज फोरलेन से जोडऩे की पहल की। आठ माह पहले बरगदही से चख्खान मोहम्मद होते हुए फुलवरिया गांव के बीच करीब पांच किलोमीटर लंबी सड़क भी बन गई। बनी तो इसकी चमक देख महकमे के लोग निर्माण कार्य में सभी मानकों का कड़ाई से पालन करने का दावा करते नहीं थक रहे थे। इस अंचल में एक देसी कहावत है, '... भाई सिर पर केतना बार, समनवे आई।Ó यानी सिर पर कितने बाल हैं यह कटने पर पता चल जाएगा। कुछ ऐसा ही हुआ महकमे के गुणवत्ता वाले दावे पर। बरसात शुरू होने के साथ दावे भाप बनकर उडऩे लगे। दो दिन की बारिश ने रही-सही कसर पूरी कर दी सड़क की चमक उस पर बने गड्ढों में कीचड़ ने ले ली है।

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