Top Gorakhpur News Of The Day, 29 May 2020, 40 साल बाद लौटे हैं घर, संकल्प से तलाश लिया दिल्ली जैसी कमाई का विकल्प Gorakhpur News

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By Satish ShuklaEdited By: Publish:Fri, 29 May 2020 08:30 PM (IST) Updated:Fri, 29 May 2020 08:30 PM (IST)
Top Gorakhpur News Of The Day, 29 May 2020, 40 साल बाद लौटे हैं घर, संकल्प से तलाश लिया दिल्ली जैसी कमाई का विकल्प Gorakhpur News
Top Gorakhpur News Of The Day, 29 May 2020, 40 साल बाद लौटे हैं घर, संकल्प से तलाश लिया दिल्ली जैसी कमाई का विकल्प Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना वायरस ने कई परिवारों की रोजी-रोटी छीन ली है। वर्षों परदेस में रहने के बाद उन्हें पेट भरने के लिए अपने गांव लौटने को मजबूर होना पड़ रहा है। बाहर से आने वाले अधिकतर लोग जहां सरकार की ओर टकटकी लगाए निराश बैठे हैं, वहीं कुछ लोगों ने परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने की ठानी। और, गांव में ही कुछ करने का संकल्प लेकर उन्होंने दिल्ली में हो रही कमाई का विकल्प तलाश लिया।

लुधियाना की रेडीमेड कपड़ा फैक्ट्री में सूत-साइज की बारीकी पकडऩे वाले चौरीचौरा के रमाशंकर हों या नोएडा की केमिकल फैक्ट्री में संवेदनशील काम से जुड़े भरतपुर के सुग्रीव। अपने हुनर व अनुभव से रोजाना 500-700 रुपये कमाने वाले इनके जैसे हजारों कुशल कामगारों को मनरेगा की 200 रुपये वाली दिहाड़ी रास नहीं आ रही। तपती धूप में उड़ती धूल के बीच दिनभर पसीना बहाने के बाद मिलने वाली एक तिहाई मजदूरी उनका पेट भरने के लिए भी नाकाफी है। टेलर हों या कारपेंटर, प्लंबर या फिर मशीनों के तकनीकी जानकार, हर कामगार के लिए एक ही रोजगार उन्हें नहीं भा रहा।

गोरखपुर के शाहपुर इलाके में 10 साल पहले गिरफ्तार की गई नक्सली महिला के बारे में एटीएस ने जनपद पुलिस से जानकारी मांगी है। इस बाबत भेजे गए गोपनीय पत्र में एटीएस ने महिला के बारे में जानकारी मिलने से लेकर उसकी गतिविधियों और उससे जुड़े लोगों के बारे में सारी सूचनाएं उपलब्ध कराने को कहा है।

अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के बलबूते गोरखपुर ने देश में सर्वाधिक श्रमिक ट्रेनें और प्रवासियों को बुलाने का रिकार्ड बनाया है। अभी तक 242 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 2 लाख 57 हजार प्रवासियों को बुलाने वाला यह देश का पहला जिला बन गया है। अभी भी दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासियों के आने का क्रम लगातार जारी है।

आनलाइन पढ़ाई के दौरान कक्षा चार के छात्रों को समझाने के लिए पाकिस्तान का गुणगान करते हुए उदाहरण देने वाली जीएन नेशनल पब्लिक स्कूल की शिक्षिका शादाब खानम ने स्कूल प्रबंधन को नोटिस का जवाब दे दिया है। जवाब में शिक्षिका शादाब खानम ने अपनी सफाई भी दी है। उसने स्वीकार किया है कि संज्ञा का उदाहरण देने के लिए इंटरनेट से अध्ययन सामग्री कॉपी की थी। इसके लिए अभिभावकों से माफी भी मांग चुकी हूं। इसे मानवीय भूल समझकर क्षमा किया जाए।

दिल्‍ली से 40 साल बाद लौटे हैं घर, तलाश लिया कमाई का विकल्प

कोरोना वायरस ने कई परिवारों की रोजी-रोटी छीन ली है। वर्षों परदेस में रहने के बाद उन्हें पेट भरने के लिए अपने गांव लौटने को मजबूर होना पड़ रहा है। बाहर से आने वाले अधिकतर लोग जहां सरकार की ओर टकटकी लगाए निराश बैठे हैं, वहीं कुछ लोगों ने परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने की ठानी। और, गांव में ही कुछ करने का संकल्प लेकर उन्होंने दिल्ली में हो रही कमाई का विकल्प तलाश लिया। भटहट क्षेत्र के ग्राम जंगल हरपुर के अयोध्या प्रसाद भी ऐसे ही लोगों में हैं। लॉकडाउन के कारण दिल्ली ने जब 40 साल पुराना साथ छोड़ दिया तो गांव ने उनका हाथ थाम लिया। वह सब्जी बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं और अब बाहर न जाने का निर्णय ले चुके हैं। अयोध्या करीब 40 साल पहले 13 वर्ष की आयु में दिल्ली चले गए थे। संघर्षों ने उन्हें सोफा व पेंट पालिश के काम में माहिर बना दिया। काम अच्छा चलने लगा तो बेटे अरविंद को भी दिल्ली बुला लिया। पिता-पुत्र मिलकर हर महीने अच्छी-खासी कमाई कर लेते थे। पर, कोरोना महामारी के कारण उनका काम बंद हो गया। खाने व मकान के किराए का संकट हुआ तो दोनों जैसे-तैसे अप्रैल महीने की शुरूआत में ही गांव लौट आए। दिल्ली में जमा-जमाया काम छोड़कर आना आसान नहीं था लेकिन जब सबकुछ बंद हो गया तो वापस आना पड़ा। यहां आने के बाद पिता-पुत्र को 14 दिन तक क्वारंटाइन रहना पड़ा। बिना आय के लगातार खर्च होने से परिवार की आर्थिक हालत खराब होने लगी। कुछ सूझ नहीं रहा था। लेकिन, अयोध्या ने आर्थिक तंगी के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि उससे मुकाबला करने की ठान ली। घर पर पड़ी पुरानी साइकिल उठाई और किसानों से संपर्क कर खेत से ही सब्जी खरीदी और गांव-गांव फेरी लगाकर सब्जी बेचने लगे। अयोध्या प्रसाद सुबह पांच से छह बजे के बीच क्षेत्र के गांवों में ताजा सब्जी लेकर पहुंच जाते हैं। उनकी आवाज से ही कई लोगों की नींद भी टूटती है। दरवाजे पर ही उचित मूल्य पर सब्जी मिल जाने से गांव वालों को भी आसानी हो रही है। अयोध्या बताते हैं कि खेत से सीधे सब्जी लेने से बचत अच्छी हो जाती है। अच्छी आय होने लगी तो उन्होंने एक पुरानी साइकिल खरीदकर बेटे को भी इसी काम में लगा दिया। अब दोनों मिलकर दिल्ली की तुलना में अधिक आय अर्जित कर लेते हैं। वह कहते हैं, अब गांव छोडऩे की जरूरत नहीं पड़ेगी। केवल चार घंटे की मेहनत में अच्छी आय हो रही है।

अब गांवों से वापस जाने को मजबूर हो रहे हुनरमंद

लुधियाना की रेडीमेड कपड़ा फैक्ट्री में सूत-साइज की बारीकी पकडऩे वाले चौरीचौरा के रमाशंकर हों या नोएडा की केमिकल फैक्ट्री में संवेदनशील काम से जुड़े भरतपुर के सुग्रीव। अपने हुनर व अनुभव से रोजाना 500-700 रुपये कमाने वाले इनके जैसे हजारों कुशल कामगारों को मनरेगा की 200 रुपये वाली दिहाड़ी रास नहीं आ रही। तपती धूप में उड़ती धूल के बीच दिनभर पसीना बहाने के बाद मिलने वाली एक तिहाई मजदूरी उनका पेट भरने के लिए भी नाकाफी है। टेलर हों या कारपेंटर, प्लंबर या फिर मशीनों के तकनीकी जानकार, हर कामगार के लिए एक ही रोजगार उन्हें नहीं भा रहा।

लॉकडाउन की मजबूरी में घर लौटे ज्यादातर कामगार कोरोना खत्म होने का इंतजार करने लगे हैं। वह वापस वहीं जाना चाहते हैं, जहां से लौटकर आए थे। उनके पास इसकी तर्कसंगत वजहें भी हैं। रमाशंकर बताते हैं कि पत्नी अक्सर बीमार रहती है और दोनों बेटे बेरोजगार हैं। 20 हजार की कमाई में भी जब घर मुश्किल से चल पाता था तो मनरेगा के रुपये से क्या होगा। रमाशंकर की बात को सुग्रीव ने आगे बढ़ाया। कहा कि रोजगार के नाम पर यहां जो काम मिल रहा है, वह न तो मन और न ही हुनर के मुताबिक है। उस पर भी काम के बदले मिलने वाला दाम इतना कम है कि बच्चों की पढ़ाई, इलाज और जमीन-जायदाद का सपना कभी पूरा ही नहीं होगा।

मुंबई की मेडिकल उपकरण बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने वाले पिपराइच के राजकुमार मौर्य और कबाड़ हो चुके बड़े-बड़े जहाजों को सलीके से काटने वाले कर्बला टोला के विजय इस बात को लेकर चिंतित हैं कि महीनों की मेहनत के बाद जो हुनर उन्होंने सीखा था, उसका इस्तेमाल यहां कहां करेंगे। हैदराबाद में कारपेंटर कैंपियरगंज के पवन कुमार भी इसी चिंता में डूबे हैं। बताते हैं कि वहां हर महीने 15-20 हजार रुपये कमा लेते थे। यहां न तो उतनी मजदूरी मिलती है न ही काम। फिलहाल तो यहीं हैं, लेकिन हालात स्थिर होते ही वहीं जाएंगे। अलेनाबाद के राजकुमार को तो मुंबई में आठ घंटे टाइल्स लगाने के 800 रुपये मिल जाते हैं। यहां पर इतना मिलना उन्हें मुश्किल लग रहा है। फरीदाबाद की जूता कंपनी में आठ साल के अनुभवी सहजनवां के जोंहिया निवासी राम सिंह को 30 हजार रुपये महीना मिलता था। काम की तलाश में गीडा पहुंचे तो ज्यादातर जगह काम ही नहीं था। कुछ ने पेशकश भी की तो वेतन 10-12 हजार ही दे रहे थे। बांसगांव के फुलहर खुर्द निवासी कारपेंटर राजेन्द्र भी मनमुताबिक काम न मिलने से वापस मध्य प्रदेश जबकि मशीन प्रोडक्शन का काम करने वाले शहाबुदीन महाराष्ट्र लौटने का विचार बना रहे हैं।

गोला के वार्ड संख्या एक निवासी फिरदौस अहमद गोवा में पेटिंग के ठेकेदार हैं। उनके तीन भाई भी साथ रहते हैं। कारोबार बड़ा होने से रोजाना कम से कम दो-तीन हजार रुपये कमा लेते थे। फिरदौस बताते हैं कि यहां न तो काम मिल रहा न ही मनमुताबिक मजदूरी। ऐसे में बड़े परिवार का खर्च वापस गए बिना चलना मुश्किल है। मुंबई में ठेके पर कपड़े की सिलाई कराने वाले वार्ड नंबर नौ निवासी रईश अहमद को भी यहां काम नहीं मिल रहा। दो महीने बैठकी होने के चलते सारा रुपया खत्म हो गया है। मजबूरी के चलते निर्माणाधीन भवन में दो-तीन दिन काम किया, लेकिन वह मुझसे नहीं हो पाएगा। ऐसे में मुंबई ही जाउंगा।

दस साल पहले पकड़ी गई नक्सली महिला की एटीएस ने मांगी रिपोर्ट

शाहपुर इलाके में 10 साल पहले गिरफ्तार की गई नक्सली महिला के बारे में एटीएस ने जनपद पुलिस से जानकारी मांगी है। इस बाबत भेजे गए गोपनीय पत्र में एटीएस ने महिला के बारे में जानकारी मिलने से लेकर उसकी गतिविधियों और उससे जुड़े लोगों के बारे में सारी सूचनाएं उपलब्ध कराने को कहा है। पत्र मिलने के बाद महिला की गिरफ्तारी से जुड़े अभिलेख पुलिस ने खोजना शुरू कर दिया है। हालांकि मामला एक दशक पुराना होने की वजह से इसमें काफी मुश्किल पेश आ रही है।

शाहपुर पुलिस ने बड़ी मात्रा में नक्सली साहित्य के साथ एक महिला को रेलवे डेयरी कालोनी के पास से 7 फरवरी 2010 को गिरफ्तार किया था। उसकी पहचान छपरा, बिहार के एकमा थाना क्षेत्र में तिलकारा गांव निवासी आशा हीरमनी के रूप में हुई थी। आशा हीरामनी का बेटा शाहपुर इलाके के ही कृष्णानगर प्राइवेट कालोनी में किराये का कमरा लेकर रहता था। गिरफ्तारी के समय वह बेटे से मिलने उसके कमरे पर जा रही थी। रास्ते में डेयरी कालोनी से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था। बाद में पूछताछ में आशा हीरामनी के नक्सली गतिविधियों में लिप्त होने के साथ ही बिहार और छत्तीसगढ़ के नक्सली संगठनों के महिला ङ्क्षवग की अहम पदाधिकारी होने का पता चला था। आशा का पति बलराज उर्फ बच्चालाल उर्फ बिलार उर्फ अरङ्क्षवद के भी नक्सली गतिविधियों में लिप्त होने तथा बिहार के नक्सली संगठन में प्रमुख पद पर होने का पता चला  था।

आशा हीरामनी की गिरफ्तारी के कुछ माह बाद रेलवे स्टेशन रोड से उसके एक रिश्तेदार को भी नक्सल साहित्य के साथ गिरफ्तार किया गया था। बाद में आशा और उसके पति के संगठन से जुड़े कुछ लोग देवरिया जिले में भी गिरफ्तार किए गए थे। आशा हीरामनी के बारे में मांगी गई जानकारी के संबंध में भेजे गए पत्र में एटीएस ने पूछा है कि पुलिस को उसके नक्सली गतिविधियों में लिप्त होने का कैसे पता चला था? गोरखपुर के युवाओं को नक्सली संगठन से जोडऩे की उसकी कोशिशों के बारे में छानबीन की गई थी की नहीं? गोरखपुर में रहने वाले आशा हीरामनी के बेटे की नक्सल गतिविधियों में शामिल होने की छानबीन की गई थी कि नहीं? यदि छानबीन की गई थी तो क्या तथ्य सामने आए थे? इस तरह की और भी कई जानकारी एटीएस ने यहां की पुलिस से मांगी है। हालांकि यह नहीं स्पष्ट हो सका है कि आशा हीरमनी के बारे में जानकारी मांगने के पीछे एटीएस का उद्देश्य क्या है? गोपनीय पत्र भेजकर जानकारी मांगे जाने की वजह से कोई अफसर भी आधिकारिक तौर पर इस संबंध में कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

दो लाख से अधिक प्रवासी बुलाने वाला देश का पहला जिला बना गोरखपुर

अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के बलबूते गोरखपुर ने देश में सर्वाधिक श्रमिक ट्रेनें और प्रवासियों को बुलाने का रिकार्ड बनाया है। अभी तक 242 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 2 लाख 57 हजार प्रवासियों को बुलाने वाला यह देश का पहला जिला बन गया है। अभी भी दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासियों के आने का क्रम लगातार जारी है। गुरुवार को भी 16 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 11337 प्रवासी गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे। श्रमिक ट्रेनों के लिए प्लेटफार्म नंबर एक, दो और नौ खोल दिए गए हैं। थर्मल स्कैनिंग के बाद प्रवासियों को रोडवेज की बसों से सुरक्षित घर भेजा जा रहा है। प्रवासियों के सहयोग में रेलवे, आरपीएफ, जीआरपी, जिला प्रशासन, परिवहन निगम, परिवहन विभाग, स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग के अधिकारी और कर्मी सभी प्लेटफार्मों पर मुस्तैद हैं। रेलवे स्टेशन परिसर में रोडवेज की औसत 300 बसें 24 घंटे खड़ी रहती हैं। रेलवे प्रशासन के अनुसार छह श्रमिक ट्रेनों के पहुंचने की सूचना है। जिसमें वापी से दो तथा तिरुवल्लूर, चंडीगढ़, सूरत और श्रीमाता वैष्णवदेवी कटरा से एक-एक ट्रेनें आएंगी।

पाकिस्तान की गुणगान करने वाली शिक्षिका ने लगाई गुहार, कहा कर दें माफ

आनलाइन पढ़ाई के दौरान कक्षा चार के छात्रों को समझाने के लिए पाकिस्तान का गुणगान करते हुए उदाहरण देने वाली जीएन नेशनल पब्लिक स्कूल की शिक्षिका शादाब खानम ने स्कूल प्रबंधन को नोटिस का जवाब दे दिया है। जवाब में शिक्षिका शादाब खानम ने अपनी सफाई भी दी है। उसने स्वीकार किया है कि संज्ञा का उदाहरण देने के लिए इंटरनेट से अध्ययन सामग्री कॉपी की थी। इसके लिए अभिभावकों से माफी भी मांग चुकी हूं। इसे मानवीय भूल समझकर क्षमा किया जाए। शिक्षिका ने कहा है कि वह विद्यालय में 11 वर्ष से पढ़ा रही है। जिस स्कूल से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी छवि खराब करने के बारे में वह सोच भी नहीं सकती है। अभी तक उसके खिलाफ कोई गंभीर शिकायत भी नहीं मिली है। स्कूल प्रबंधन ने शिक्षिका के जवाब को आंतरिक जांच समिति भेज दिया है। स्कूल के प्रबंधक गोरक्ष प्रताप सिंह ने बताया कि आरोपित शिक्षिका ने नोटिस का लिखित जवाब दे दिया है। जांच कमेटी की की रिपोर्ट के आधार पर शिक्षिका के भविष्य पर फैसला होगा।

ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान 23 मई को कक्षा चार ए के वाट्सएप ग्रुप पर अंग्रेजी की शिक्षिका शादाब खानम ने संज्ञा को समझाने के लिए उदाहरण स्वरूप पाकिस्तान का महिमा मंडन किया था। शिक्षिका ने पाकिस्तान हमारी मातृभूमि, पाकिस्तानी पायलट की बहादुरी और पाकिस्तानी सेना में भर्ती होने जैसे शब्दों का प्रयोग किया था। शिक्षिका की इस करतूत से अभिभावक सन्‍न रह गए थे। भाजपा ने शिक्षिका के साथ स्‍कूल प्रबंधन पर भी ऐसी मानसिकता वाली महिलाओं को शिक्षक जैसे अति महत्‍वपूर्ण और गरिमा वाले पद पर नियुक्‍त करने का आरोप लगाया था। हर तरफ से शिक्षिका शादाब खानम और स्‍कूल प्रबंधन की आलोचना हो रही थी। उसी आलाचनाओं के बाद स्‍कूल प्रबंधन ने शाराब खानम को नोटिस जारी किया था। 

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