Lockdown in Gorakhpur : दिल्ली से पैदल नहीं आते तो भूखों मर जाते, वहां किसी तरह की व्यवस्था नहीं Gorakhpur News
आधा दर्जन युवकों ने लाकडाउन के बीच निकलने की ऐसी व्यथा सुनाई की टीवी चैनलों पर नेताओ के भाषण थोथे साबित हो गए। सभी दिल्ली से सिद्धार्थनगर तक पैदल ही आए।
गोरखपुर, जेएनएन। दिल्ली से सिद्धार्थनगर पहुंचे डुमरियागंज क्षेत्र के केवटली नानकार गांव निवासी आधा दर्जन युवकों ने लाकडाउन के बीच निकलने की ऐसी व्यथा सुनाई की टीवी चैनलों पर नेताओ के भाषण थोथे साबित हो गए।
तीन दिनों तक नहीं मिला भोजन
डुमरियागंज के बेवां चौराहे पर अचानक हुई मुलाकात में किसी ने कहा तीन दिनों तक खाना नहीं मिला तो किसी ने कहा कि मालिक मोबाईल ही नहीं उठाता था। ऐसे में घर निकलने के सिवा और कोई चारा नही बचा। नहीं आते तो भूखों मरने के सिवा और कोई चारा नहीं था।
मालिक ने नहीं उठाया फोन
उक्त गांव निवासी लट्टू ने बताया कि साड़ी में लगने वाले लैस के दुकान पर काम करते थे, लाकडाउन की घोषणा के बाद मालिक घर गया तो फिर फोन नहीं उठाया, खाने पीने के लिए कुछ पैसे थे। वह भी खत्म हो गए। स्थिति यह थी कि तीन दिनों तक भूखे रहना पड़ा।
बिक्री नहीं तो तनख्वाह किस बात की
मिठाई लाल बटन की दुकान पर हेल्पर का काम करता था। बताया कि 22 मार्च से पहले दुकान बंद घर मालिक घर चला गया और ख़र्चे देने के लिए हाथ खड़े कर लिए। पैसा मांगने पर कहा कि जब बिक्री नहीं तो तनख्वाह कैसे दें।
कुछ नहीं कर रही दिल्ली की सरकार
जरी का काम करने वाले राम सुमेर ने दुखी होकर कहा कि चार दिनों तक भूखे रहने के बाद घर न आता तो क्या करता। ऐसा लग रहा था कि यहां पर रुके तो मरना तय है। दिल्ली सरकार गरीबों के लिए कुछ नही कर रही है। ऐसे में वहां रहकर लाकडाउन का पालन कैसे करता।
दिल्ली सरकार के दावे खोखले
पप्पू ट्रक चलाते थे। उनका कहना है कि जब लाकडाउन की घोषणा हुई तो मालिक ने गाड़ी खड़ी करवाकर वेतन देने से इन्कार कर दिया। सरकार के दावे खोखले हैं। दिल्ली में यूपी व बिहार के हजारों लोग फंसे हैं। अगर व्यवस्था नहीं हुई तो कोरोना नहीं भूख से पहले मौत हो जाएगी।