रिश्वत नहीं दी तो कम हो गई पेंशन, 17 साल की लड़ाई के बाद मिला हक

रिटायर होने के बाद शिक्षक ने कलर्क को रिश्‍वत नहीं दी तो उसकी पेंशन कम कर दी गई। 17 साल की लंबी लड़ाई के बाद शिक्षक को उसका हक मिला।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 20 Dec 2018 10:51 AM (IST) Updated:Fri, 21 Dec 2018 10:25 AM (IST)
रिश्वत नहीं दी तो कम हो गई पेंशन, 17 साल की लड़ाई के बाद मिला हक
रिश्वत नहीं दी तो कम हो गई पेंशन, 17 साल की लड़ाई के बाद मिला हक

गोरखपुर, उमेश पाठक। वेद प्रकाश लाल श्रीवास्तव ने अपने पूरे कार्यकाल में बच्‍चों को ईमानदारी, कठिन परिश्रम व सत्य के रास्ते पर चलने की सीख दी। उनको पूरा विश्वास था कि सत्य हमेशा जीतता है, लेकिन सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें तंत्र के भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे होने का भान हुआ। अपना अधिकार पाने के लिए उन्हीं के विभाग में उनसे रिश्वत की मांग की जा रही थी। अनैतिक मांग के लिए इस बुजुर्ग शिक्षक को खूब दौड़ाया गया। पर, यह मानसिक प्रताडऩा उन्हें तोड़ नहीं सकी और 17 साल की लंबी लड़ाई के बाद उन्होंने अपना हक जीत ही लिया। इस जीत के बाद शिक्षक अब जिम्मेदारों पर कार्रवाई के लिए भी लड़ेंगे।

धैर्य से लड़ते रहे लड़ाई

वेद प्रकाश 1971 में सिद्धार्थनगर जनपद के शिवपति इंटर कालेज, शोहरतगढ़ में नागरिक शास्त्र के प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुए थे। 30 साल की सेवा के बाद वह 2001 में सेवानिवृत्त हो गए। विद्यालय से सभी कागजात सही भेजे जाने के बाद उनकी पेंशन कम बनाई गई। संबंधित कर्मचारी से पूछा तो यह बात स्पष्ट रूप से कही गई कि पैसा न देने के कारण पेंशन कम बनी है। पूरा जीवन छात्रों को सही राह दिखाने में लगा चुके इस शिक्षक के लिए यह सुनना आसान नहीं था, फिर भी उन्होंने धैर्य रखा और अगले चार सालों तक पेंशन ठीक कराने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाते रहे। शिक्षा निदेशक माध्यमिक, लखनऊ को भी पत्र लिखकर जानकारी दी। वहां से बस्ती कार्यालय को पेंशन ठीक करने का निर्देश भी मिला लेकिन 'कुछ' पाने की चाह में बैठे कर्मचारियों ने इन निर्देशों को भी नहीं माना। 2005 में शिक्षक ने सिद्धार्थनगर के उपभोक्ता फोरम में वाद दाखिल किया, वहां से भी पेंशन ठीक करने का आदेश दिया गया। पर, कोई सुनवाई नहीं हुई। तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने भी उनके मामले में सुधार के निर्देश दिए लेकिन धरातल पर स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ।

जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों के दर से निराश लौटने के बाद उन्होंने 2010 में उच्‍च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ में याचिका दाखिल की। वहां से तीन बार डाइरेक्शन मिला लेकिन विभाग ने बार-बार प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया। इतना कुछ होने के बावजूद वेद प्रकाश का धैर्य बना रहा और अंतत: उनकी जीत हुई। 30 जुलाई 2018 को उ'च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ ने आठ फीसद ब्याज के साथ अवशेष भुगतान करने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद विभाग को उनका अधिकार देना पड़ा।

जिम्मेदारों पर कार्रवाई भी हो

वेद प्रकाश लाल श्रीवास्तव अपनी जीत से खुश तो हैं लेकिन उनका कहना है कि भ्रष्टाचार को कम करने के लिए भ्रष्टाचार के जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। जब तक वे कार्रवाई से बचते रहेंगे, भ्रष्टाचार करते रहेंगे।

गोरखनाथ से मिली सत्‍य के रास्‍ते पर चलने की सीख

वेद प्रकाश लाल श्रीवास्तव ने कहा कि मैं अपने पिता के समय से गोरखनाथ मंदिर से जुड़ा रहा। मुझे सत्य के रास्ते पर चलने की सीख वहीं से मिली। विभाग ने मुझे काफी परेशान किया लेकिन धैर्य पूर्वक मैंने लड़ाई जारी रखी और जीत हासिल हुई।

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