बाढ़ से तबाह हो रहे राप्ती किनारे के गांव, उफान से हर वर्ष यहां आता है तूफान

राप्ती नदी के किनारे बसे गांव उजड़ रहे हैं। बाढ़ की तबाही में घर गिर रहे हैं। ग्रामीण दूसरे स्थानों और बांधों पर शरण ले रहे हैं। इस सरकार में भी कोई इंतजाम नहीं हो पा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 05 Sep 2018 11:40 AM (IST) Updated:Wed, 05 Sep 2018 11:40 AM (IST)
बाढ़ से तबाह हो रहे राप्ती किनारे के गांव, उफान से हर वर्ष यहां आता है तूफान
बाढ़ से तबाह हो रहे राप्ती किनारे के गांव, उफान से हर वर्ष यहां आता है तूफान

गोरखपुर : राप्ती नदी की बाढ़ ने दर्जनों परिवारों को शरणार्थी बना दिया है। हर बार बाढ़ के समय यही होता है, इस साल भी गांव के लोग दूसरे गांव और बांध पर शरण ले लिए हैं।

यह कहानी सिद्धार्थनगर जिले के बांसी-डुमरियागंज के मध्य राप्ती नदी व तटबंध के बीच स्थित गांवों की है। बरसात के मौसम में राप्ती नदी के उफान से यहां के दर्जन भर गांव में हर साल तूफान आना तय है। जैसे ही बारिश अपना तांडव मचाना शुरू करती है, इन गांव के लोग सहम जाते हैं। आने वाले त्रासद भरे समय से निपटने के लिए अपने आप को तैयार करने में जुट जाते हैं। ऐसा प्रतिवर्ष होने के बावजूद जिम्मेदार सिर्फ बाढ़ के समय पहुंच कर चना-चबेना आदि बांटकर संतोष दिला देते हैं। उसके बाद सुधि लेने वाला कोई नहीं है। त्रासदी के स्थाई समाधान का ग्रामीणों को अभी तक इंतजार है।

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बाढ़ से प्रभावित गांव

राप्ती नदी की बाढ़ से प्रभावित बनकटा, सेहरी घाट, बघिनी घाट, खदरी, फुलवापुर व हरिद्वार गांव हैं। यहां के लोग आषाढ़ मास के प्रारंभ होते ही नदी के तांडव को सोचकर भयाक्रांत हो जाते हैं। गिरींद्र ¨सह कहते हैं की पिछले साल हमारे गांव में पानी घुस गया था, कुछ दिन तो हम लोगों को नाव के सहारे गांव से आना-जाना पड़ा था। उसके बाद सप्ताह भर कमर तक पानी में होकर बंधे तक पहुंचते थे। खाद्य पदार्थ संकट जैसी स्थिति बन गई थी। कीर्ति कुमार ने बताया की बाढ़ आने के बाद संक्रामक बीमारी सबसे बड़ी मुसीबत बन जाती है। इसके अलावा गांव में कभी-कभी लोग इस विभीषिका के शिकार भी हो जाते हैं। बब्बू पाठक ने बताया की एक पखवारे तक पानी में घुसकर ही हम लोग गांव से बाहर आते-जाते हैं। चंद्रभान पांडेय ने दर्द बयां करते हुए कहा कि गांव तक पहुंचने के लिए अभी तक कच्चा मार्ग ही सहारा है। बाढ़ के समय का मंजर सोच कर शरीर कांप उठती है। इसी प्रकार कई ग्रामीणों ने अपना बयां किया। कुछ लोगों ने बताया कि समस्या जब विकराल रूप धारण कर लेती है, तो सरकार के कुछ कर्मचारी दवा वगैरह लेकर पहुंचते हैं। पर वह भी ऊंट के मुंह में जीरा के समान होता है।

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सैकड़ों बीघा जमीन हो चुकी है विलीन दर्जनों छोड़ चुके हैं गांव

नदी के तांडव से प्रभावित गांवों की सैकड़ों बीघा कृषि योग्य भूमि जलप्लावित हो चुकी है। गांव छोड़कर लोग आसपास के पथरा बाजार मिठवल बाजार आदि चौराहों या फिर तटबंध के उस पार अपना आशियाना बना रहे हैं। जिन लोगों के पास कोई आमदनी का जरिया नहीं है, वह विवश होकर इस त्रासदी को झेलने को मजबूर हैं। इसी प्रकार शिवमूर्ति पाठक, रामजी मिश्रा आदि ने भी गांव की जमीन नदी में चले जाने की बात कही।

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आश्वासन के अलावा कुछ न दे सके जिम्मेदार

बनकटा के ग्राम प्रधान कुबेर ने बताया की नेताओं व अधिकारियों के आने पर हम गांव के लोग अपनी समस्या रखते हैं, सभी लोग दूर करने का आश्वासन तो देते हैं, पर अभी तक परेशानी जस की तस बनी हुई है। इसी प्रकार बघिनी नानकार के ग्राम प्रधान हरिश्चंद्र साहनी ने कहा कि हमारे गांव को राप्ती नदी तेजी से काटती हुई दक्षिणापथ की ओर बढ़ रही है, अनेक घर पानी में जा चुके हैं, कई लोग तटबंध के उस पार गांव छोड़कर आशियाना बना चुके हैं। हम लोग अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से नदी में ठोकर लगवाने की मांग कर चुके हैं, पर अभी तक कुछ नहीं हो सका है।

इस संबंध में उपजिलाधिकारी प्रबुद्ध सिंह ने कहा कि हम ¨सचाई विभाग के साथ जिलाधिकारी महोदय को इस समस्या से अवगत कराएंगे, पहले से भी इस पर गंभीरता से विचार चल रहा है। फिलहाल हम समस्या से प्रभावित लोगों को हर सम्भव सहायता के लिए कटिबद्ध हैं।

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