यहां हिंदू भी बनाते हैं ताजिया, मोहर्रम जुलूस में शामिल होते हैं हिंदू युवक

गोरखपुर, बस्‍ती मंडल में कई स्‍थानों पर हिंदू भी ताजिया बनाते हैं। बस्‍ती में ताजिया जुलूस में जलपान की व्‍यवस्‍था हिंदू युवक करते हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 19 Sep 2018 01:33 PM (IST) Updated:Wed, 19 Sep 2018 05:07 PM (IST)
यहां हिंदू भी बनाते हैं ताजिया, मोहर्रम जुलूस में शामिल होते हैं हिंदू युवक
यहां हिंदू भी बनाते हैं ताजिया, मोहर्रम जुलूस में शामिल होते हैं हिंदू युवक

गोरखपुर (जेएनएन)। मोहर्रम इमाम हुसैन और इमाम-ए-हसन को याद करने का त्योहार है। चांद की पहली तारीख को इस त्योहार का आगाज होता है। दसवीं तक मनाया जाता है। ताजिया रखने की पुरानी परंपरा है। किस्म-किस्म की सजावट से रचे गए ताजिए चमक-दमक बिखेरते हैं। हुसैन की याद में कहीं गम तो कहीं नियाज और फातिया पढ़ा जाता है। चौथी से आठवीं तक दिन में अलम का जुलूस तो रात में अखाड़ा और नगाड़ा साथ-साथ चलता है। गोरखपुर-बस्‍ती  मंडल के अधिकांश जिलों में हिंदू और मुसलमान दोनो मिलकर ताजिया उठाते हैं, कुछ क्षेत्रों में ताे हिंदू समाज के लोग भी ताजिया बनाते हैं। मोहर्रम के जुलूस में हिंदू युवक भी शामिल होते हैं। यहां हिंदू और मुसलमान साम्‍प्रादायिक सौहार्द की मिसाल पेश कर रहे हैं।

हिंदू युवक करते हैं जलपान की व्‍यवस्‍था
बस्‍ती जिले में दोनों समुदाय के लोग अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार हुसैन की दीवानगी में डूबे रहते हैं। मोहर्रम के सातवीं अलम के जुलूस के दिन पुरानी बस्ती में हिंदू जलपान की व्यवस्था करते हैं। मातृ शक्ति सेवा मंडल की ओर से मंगल बाजार में रूआफ्जा व पानी का इंतजाम किया जाता है। राघवेंद्र मिश्र उर्फ पट्टू बताते हैं कि हम सभी मिलकर यह त्योहार मनाते हैं। किसी तरह का कोई तनाव नहीं होने पाता है। जुलूस में चलने वाले अकीदतमंदों की सेवा में हिंदू युवक खड़े रहते हैं।

छोटी ताजिया खुद करते हैं तैयार
लोग अपनी क्षमता के अनुसार ताजिया खरीदते हैं। बड़े आकार की ताजिया लोग खुद गोरखपुर या सीतापुर से खरीद कर ला रहे है।  200 से 3000 रुपये कीमत की ताजिया बाजार में भी बिक रही है। कुछ स्‍थानों पर हिंदू भी ताजिया बनाते हैं।

मानवता के कल्याण के लिए हुसैन के शौर्य प्रदर्शन का प्रतीक बनता है अखाड़ा
जहां अकीदतमंदों के बीच लाठियां चटकती हैं। साथ नगाड़े पर पड़ने वाला एक-एक थाप हुसैन के अनुयायियों में और जोश भरता है।

मिलजुल कर करते हैं पूरी व्‍यवस्‍था
ताजिया रखना इबादत है। इमाम हुसैन की याद में सजे-धजे ताजिए दफन करते है। इसमें जितना भी खर्च आए वह कम है। पैसे का कोई महत्व नहीं है। हुसैन की राह में सबकुछ समर्पित है। वह बरकत भी देते हैं। अब्दुल हमीद बताते हैं कि होश संभालने के बाद से ही हम ताजिया बैठाना शुरू कर दिए थे। अपना खुद का चौक भी है। तमाम हिंदू साथी भी मनौती पूरी होने पर ताजिया बैठाते हैं। ताजिएदार समीउल्लाह कहते हैं कि कई पीढ़ियों से घर में मोहर्रम मनाया जाता है। मेरे वालिद (पिता) अखाड़ा के उस्ताद हुआ करते थे। उस्तादी तो हम नहीं ले पाए लेकिन त्योहार में पूरी शिद्दत से शरीक होते हैं। लोगों के साथ मिलकर जुलूस में शामिल अकीदतमंदों की सेवा करते हैं। उनके लिए जलपान आदि की व्यवस्था कराई जाती है। मोहर्रम के सातवीं अलम के जुलूस के दिन हिंदू जलपान की व्यवस्था करते हैं।

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