दुर्गा पंडालों में श्रद्धा की जगह मनोरंजन, उत्सवी रंग में बदलती गई श्रद्धा

शारदीय नवरात्र को पर्व के रूप में मनाने का इतिहास सात दशक से भी अधिक पुराना हो चुका है। जिला अस्पताल के परिसर से मां की प्रतिमा स्थापित करने से शुरू हुआ पर्व को मनाने का सफर आज शहर की गली-गली तक पहुंच चुका है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 05 Oct 2021 06:40 PM (IST) Updated:Tue, 05 Oct 2021 06:40 PM (IST)
दुर्गा पंडालों में श्रद्धा की जगह मनोरंजन, उत्सवी रंग में बदलती गई श्रद्धा
दुर्गा पंडालों में दिख रहे मनोरंजन के साधन। प्रतीकात्मक तस्वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता : शहर में शारदीय नवरात्र को पर्व के रूप में मनाने का इतिहास सात दशक से भी अधिक पुराना हो चुका है। जिला अस्पताल के परिसर से मां की प्रतिमा स्थापित करने से शुरू हुआ पर्व को मनाने का सफर आज शहर की गली-गली तक पहुंच चुका है। जाहिर है कि शुरुआती दौर में पर्व मनाने का स्वरूप वैसा नहीं रहा होगा, जैसा आज दिखता है। इसी बदलाव को जानने के लिए जब जागरण ने शहर के कुछ बुजुर्गों से बात की तो उन्होंने इस बात पर तो प्रसन्नता जाहिर की कि पर्व का दायरा काफी बढ़ गया है, लेकिन इस पहलू पर दुखी नजर आए कि उत्साह और उमंग में पर्व के दौरान मां दुर्गा के पंडालों में श्रद्धा की जगह मनोरंजन को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है।

यहां के दुर्गा पूजा के आयोजन पर भी पड़ी बदलाव की मार

बीते सात दशक से गोरखपुर में मनाई जानी वाली दुर्गा पूजा के साक्षी साहित्यकार रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी का मानना है कि समय के मुताबिक बदलाव की मार यहां दुर्गा पूजा के आयोजनों पर भी पड़ी है। श्रद्धा और भक्ति से यहां शुरू हुआ दुर्गा पूजा का सिलसिला अब इस कदर उत्सवी रूप ले चुका है कि कई बार श्रद्धा किनारे खड़ी दिखती हैं। यह सही है दशक-दर-दशक शहर में दुर्गा पूजा की धूम बढ़ी है लेकिन कहीं न कहीं पूजा की पद्धति का ह्रास हुआ है। लोग से इससे जुड़ते तो हैं लेकिन उसमें श्रद्धा का भाव कम मनोरंजन का भाव ज्यादा होता है, जो पर्व की मूल भावना के लिए ठीक नहीं।

फैशन का रूप ले लिया है दुर्गा पूजा ने

दुर्गाबाड़ी से बीते सात दशक से जुड़े तमाल आचार्य का कहना है कि गोरखपुर दुर्गा पूजा ने फैशन का रूप ले लिया है। यही वजह है कि बीते कुछ दशकों में इसमें श्रद्धा से ज्यादा दिखावे पर जोर रहता है। ऐसे में मेरी नजर में गोरखपुर में दुर्गा पूजा का स्वरूप थोड़ा भटक गया है। पूजा-अर्चना से किसी भी तरह का समझौता इस पर्व के महत्व को प्रभावित करता है, क्योंकि इस पर्व को मनाने का मकसद मां की आराधना है न कि उसके बहाने मनोरंजन। चूंकि मैं इस बदलाव का साक्षी हूं, इसलिए कभी-कभी बहुत तकलीफ होती है। इसके लिए मैं उत्साही युवाओं को सचेत भी करता रहता हूं।

अब हर गली मां की प्रतिमाओं के लिए सज रहे पंडाल

राज्य व्यापारी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष और दीवान बाजार दुर्गा पूजा समिति के गहरे जुड़े पुष्पदंत जैन का कहना है कि उन्होंने वह दौर भी देखा है, जब पूरे शहर में 100 से भी कम प्रतिमाएं सजती थीं और वह दौर में देख रहे हैं जब हर गली-मोहल्ले में मां की प्रतिमाओं की स्थापना के लिए पंडाल सजते हैं। यह प्रसार तो अच्छा है लेकिन पूजा-अर्चना से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। मुझे कई पूजा पंडालों में ऐसा देखने को मिलता है कि युवा इतने उत्साहित हो जाते हैं कि कई बार पर्व की गरिमा भी प्रभावित होती है। दीवान बाजार में सजने वाली प्रतिमा के साथ आज भी ऐसा नहीं होने देता।

पूजा में दिखावा कम और आस्था ज्यादा होनी चाहिए

शेषपुर के रहने वाले 82 वर्षीय शिवजी वर्मा बताते है कि उन्होंने वह दौर भी देखा है, जब शहर में कुछ प्रमुख स्थानों पर ही दुर्गा प्रतिमाएं सजती थीं और उससे पूरा शहर जुड़ता था। आज तो हर गली में पंडाल सज जाते हैं। इससे यह बदलाव तो आया है कि नवरात्र में पूरे नौ दिन पूरा शहर मां के गीतों और जयकारों से गूंजता रहता है लेकिन उसमें श्रद्धाभाव का पर्व का उत्साह ज्यादा दिखता है। हालांकि कुछ पूजा पंडालों ने अपनी गरिमा कायम रखी है लेकिन ज्यादातर लोग बिखर जाते हैं। दरअसल पूजा ऐसा विषय है, जिसमें दिखावा कम और आस्था ज्यादा होनी चाहिए। आस्था पर दिखावा भारी नहीं पड़ना चाहिए।

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