जर्जर भवन में चल रहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इटवा का भवन जर्जर हो चुका है तथा ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में है। बावजूद इसके यह प्रक्रिया कई महीनों से पूरी नहीं की जा सकी है। खस्ताहाल भवन ऐसा है कि इसको देखकर डर लग जाए मगर इसी भवन में न केवल ओपीडी चलाई जाती है बल्कि यहीं पर जनरल कोविड व मस्तिष्क वार्ड भी संचालित किए जा रहे हैं।

सिद्धार्थनगर : सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इटवा का भवन जर्जर हो चुका है तथा ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में है। बावजूद इसके यह प्रक्रिया कई महीनों से पूरी नहीं की जा सकी है। खस्ताहाल भवन ऐसा है कि इसको देखकर डर लग जाए, मगर इसी भवन में न केवल ओपीडी चलाई जाती है, बल्कि यहीं पर जनरल, कोविड व मस्तिष्क वार्ड भी संचालित किए जा रहे हैं। एक्सरे द्वारा जांच के अलावा दवा का स्टोर रूम भी इसी भवन में चल रहा है। यहां काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मी हर समय सहमे रहते हैं।
अस्पताल के पुराने भवन का निर्माण वर्ष 1989 में हुआ। वर्तमान में इसकी स्थिति ये है कि दूसरे तल पर जाने वाली सीढ़ी के ऊपर से प्लास्टर उखड़ कर गिर रहा है। ईटें दिखाई दे रही हैं, कब कोई ईंट किसी के ऊपर गिर जाए तो कुछ कहा नहीं जा सकता है। सीएचसी में प्रतिदिन 200 से 250 मरीज आते हैं। पर्ची काटने के अलावा छह-छह डाक्टर का ओपीडी चलती है। चूंकि सारे महत्वपूर्ण वार्ड यहीं पर हैं, इसीलिए मरीजों के अलावा डाक्टरों, तीमारदारों व अन्य स्टाफ का आना-जाना लगा रहता है।
भवन की दयनीय स्थिति को देखते हुए करीब दो वर्ष पहले भवन के ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। विभाग प्रक्रिया पूरी करके सभी फाइलों को लखनऊ भेज चुका है, परंतु अभी इस पर कैबिनेट की मुहर लगनी बाकी है। पता चला कि कुछ आपत्ति थी, जिसके कारण फाइल वापस भेज दी गई। अस्पताल में अतिरिक्त स्थान नहीं है, इसलिए मजदूरी में अधिकांश स्वास्थ्य सेवाएं यही पर संचालित की जा रही हैं। अधीक्षक डा. बीके वैद्य ने कहा कि बिल्डिग वास्तव में दयनीय है। यहां कार्य करना खतरे से खाली नहीं है, परंतु मजबूरी है। मुख्य चिकित्साधिकारी डा. संदीप चौधरी ने बताया कि प्रक्रिया में तेजी लाई गई है। ध्वस्तीकरण फाइल सरकार के पास भेजी गई। दो-दो बार आपत्ति के कारण थोड़ी दिक्कत हुई। परंतु आपत्ति को दूर करते हुए पुन: फाइल भेजी गई है। जैसे सरकार की मंजूरी मिलती है, भवन को ध्वस्तीकरण कराना प्रारंभ कराया जाएगा। वैकल्पिक व्यवस्था के लिए भी रास्ते देखे जा रहे हैं।
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