पराली न जलाने की लिखिल करार पर ही खेतों में जाएगी कंबाइल मशीन, अन्‍यथा जेल

कृषि विभाग और तहसील के अधिकारी कर्मचारी पराली जलाने वालों के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज कराएंगे। साथ ही स्ट्रा रीपर विथ बाइंडर या स्ट्रा रीपर के बगैर कटाई करने वाली कंबाइन मशीन को जब्त भी कर लिया जाएगा।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Mon, 19 Oct 2020 05:52 PM (IST) Updated:Mon, 19 Oct 2020 05:52 PM (IST)
पराली न जलाने की लिखिल करार पर ही खेतों में जाएगी कंबाइल मशीन, अन्‍यथा जेल
खेत में जलती पराली का फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। फसल अवशेष को जलाने से रोकने के लिए जिला प्रशासन ने किसानों को समझाने के साथ ही सख्त रुख अख्तियार करने की भी तैयारी की है। फसल के अवशेष का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी किसान और कंबाइन संचालक पर होगी। कंबाइन हार्वेस्टिंग के साथ स्ट्रा रीपर विथ बाइंडर का प्रयोग अनिवार्य रूप से करना होगा। ऐसा न करने वाले किसानों और कंबाइन संचालकों से भारी जुर्माना वसूलने के साथ ही साथ उनके विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज होगा। इसके चलते उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।

फसल और खेत के आधार पर तय हुआ जुर्माना

दो एकड़ से कम जोत के किसानों को धान की फसल का अवशेष (पराली) जलाने पर 25 सौ रुपये तो दो एकड़ से लेकर पांच एकड़ तक की जोत के किसानों को 15 हजार रुपये जुर्माना अदा करना पड़ेगा। कृषि विभाग और तहसील के अधिकारी, कर्मचारी उनके विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज कराएंगे। साथ ही स्ट्रा रीपर विथ बाइंडर या स्ट्रा रीपर के बगैर कटाई करने वाली कंबाइन मशीन को जब्त भी कर लिया जाएगा। किसानों की सुविधा के लिए प्रदेश सरकार ने कंबाइन हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, स्ट्रा रीपर, स्टारेक एवं बेलर न होने पर अन्य वैकल्पिक यन्त्र जैसे मल्चर, पैडी स्ट्रा चापर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, रिवर्सिबल एमबी प्लाउ का प्रयोग करने की अनुमति दे दी है।

अवशेष प्रबंधन का भरोसा दिलाने पर ही कंबाइन संचालन की मिलेगी अनुमति

कंबाइन संचालन के लिए कृषि विभाग या जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होगी। इस दौरान कंबाइन संचालक को फसल अवशेष का प्रबंधन करने का सक्षम अधिकारी को भरोसा दिलाना होगा। शपथ पत्र और अन्य दस्तावेजों के माध्यम से उन्हें विश्वास दिलाना होगा कि वह फसल अवशेष का प्रबंधन करेंगे।

पर्यावरण व मृदा स्वास्थ्य पर पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव

जिला कृषि रक्षा अधिकारी संजय यादव ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण को तो गंभीर नुकसान पहुंचता ही है, इसका मृदा स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मिट्टी के पोषक तत्वों की अत्यधिक क्षति एवं भौतिक स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित होता है। इसकी वजह से उपज कम हो जाती है। साथ ही लाभदायक मित्र कीट जल कर मर जाते हैं।

गठित की गई हैं कमेटियां

पराली जलाने से रोकने के लिए विकास खण्ड एवं तहसील स्तर पर उडऩ दस्ता गठित किया गया है। तहसील स्तरीय सचल दस्ता में तहसीलदार, उप सम्भागीय कृषि अधिकारी और थानाध्यक्ष शामिल हैं। उप जिलाधिकारी इस सचल दस्ते का पर्यवेक्षण करेंगे। विकास खण्ड स्तरीय सचल दस्ते में नायब तहसीलदार, कानूनगो, सहायक विकास अधिकारी (कृषि) और थानाध्यक्ष को रखा गया है। इसका पर्यवेक्षण खंड विकास अधिकारी करेंगे।

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