पिया मासक लिया दा तहसील से, जाके साइकिल से ना..

जागरण संवाददाता खानपुर (गाजीपुर) सावन माह के रिमझिम फुहारों वाले सुहावने मौसम में झूल

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Jul 2020 06:59 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jul 2020 06:59 PM (IST)
पिया मासक लिया दा तहसील से, जाके साइकिल से ना..
पिया मासक लिया दा तहसील से, जाके साइकिल से ना..

जागरण संवाददाता, खानपुर (गाजीपुर): सावन माह के रिमझिम फुहारों वाले सुहावने मौसम में झूला, पूजा, बारिश और कजरी के गीतों में ननद-भाभी, पति-पत्नी के नोंकझोंक से माहौल पूरी तरह उत्सवमय हो जाता है। नागपंचमी के दिन ग्रामीण इलाकों में पेड़ों पर महिलाओं और युवाओं ने जमकर झूला का आनंद उठाया। नागपंचमी के दिन झूला झूलने का बड़ा महत्व होता है। कोरोना संक्रमण और शारीरिक दूरी की वजह से गांवों में लोग सामूहिक झूले का आनंद लेने से वंचित रह गए। झूलों पर दिनभर पुरुषों का कब्जा रहा और शाम होते ही महिलाओं और युवतियों ने कजरी गीत के साथ जमकर झूले की पेंग बढ़ाई। झूले के साथ चल रहे कजरी गीत को सुन लोगों के कदम बरबस ही ठिठक जा रहे थे। रसोइयां संगे जो हम झूला झूल जाई, कोरोना सौतन देख डूब मर जाई''। लोककवि विजय यादव कहते है कि कजरी ऋतु के गीत माधुर्य समाहित विरह वेदना, पति संग है तो श्रृंगार की भावना, ननद भौजाई संबंध के साथ ही भाई-बहन का प्रेम, देश काल की धार्मिक भावना और समाज सुधार हेतु संदेश के साथ प्रत्यक्ष सामाजिक भावना तथा निर्गुण आयाम को समेटे कजरी गायन करने की लोक परंपरा ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को मधुर बना दिया है।

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