जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट कर घर ना आए
अजय सक्सेना लोनी 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद देशवासियों के हृदय में भारतीय सेना के लिए स
अजय सक्सेना, लोनी: 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद देशवासियों के हृदय में भारतीय सेना के लिए सम्मान और बढ़ गया। जब लोगों को पता चला कि चीन की ओर से युद्ध में 80 हजार सैनिक लड़े थे। जबकि भारत के महज 10 से 12 हजार सैनिकों ने ही दुश्मन को मुंहतोड़ जबाव दिया था। युद्ध में भारत के 1383 सैनिक शहीद हुए थे। 21 अक्टूबर को आतंकी हमले में शहीद दस भारतीय सैनिकों के शव भी अधिकारियों को नहीं मिल सके। उन शहीदों में लोनी जिला गाजियाबाद के शहीद मलखान सिंह भी शामिल थे। शहीद जवान के महज कपड़े ही उनके घर पहुंचे थे। खड़खड़ी निवासी बलवीर सिंह की पत्नी लच्छो ने जुलाई 1926 को बेटे को जन्म दिया था। स्वजनों ने उनका नाम मलखान सिंह रखा। मलखान सिंह में देशप्रेम कूट-कूट का भरा हुआ था। 14 साल की उम्र से ही वह फौज में जाने की जिद करने लग थे। 16 साल की उम्र में वह फौज में भर्ती होने के लिए परीक्षा देने गए। जहां राजपूत रेजिमेंट में उनकी बतौर हवलदार नियुक्ति हुई। इकलौता पुत्र होने के नाते पिता ने उनसे फौज में न जाने को कहा। लेकिन मातृ भूमि की रक्षा का ख्वाब दिल में सजाए मलखान सिंह नौकरी पर चले गए। 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में मैकमोहन रेखा पार करने के बाद हमले शुरू किए। भारतीय सैनिकों ने चीन के हमले का जवाब दिया। 21 अक्टूबर 1962 को हुए हमले में दस लोग गुम हो गए। इनमें मलखान सिंह भी शामिल थे। भारतीय सेना ने उन्हें पांच मेडल देकर सम्मानित किया है। शहीद का परिवार पालने को मामा ने नहीं की शादी: जब मलखान सिंह शहीद हुए तो उनके बेटे ब्रह्म सिंह की उम्र दो वर्ष थी। परिवार में बंटवारा होने के बाद उनकी पत्नी जगमाली और बेटे के हिस्से में 16 बीघा भूमि आई थी। मगर दोनों को जीवन यापन करने में भी परेशानी होने लगी। तो जगमाली के भाई प्रहलाद सिंह खड़खड़ी आकर रहने लगे। उन्होंने अपनी बहन और भांजे की परवरिश की। बहन और भांजे की परवरिश में कमी न आए इसके चलते प्रहलाद सिंह ने शादी भी नहीं की। नहीं मिल सकी सुविधाएं: ब्रह्म सिंह बताते हैं कि वह छोटे थे। उनके मामा प्रहलाद सिंह को अधिक जानकारी नहीं थीं। जिसके चलते उन्हें शहीद परिवार को मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिल सकी। शहीद का परिवार खेतीबाड़ी से ही अपना जीवन यापन करता आ रहा है। मलखान सिंह के शहीद होने के बाद उनके हिस्से में 16 बीघा भूमि आई थी। मामा ने मेहनत कर 14 बीघा भूमि और खरीद ली। फिलहाल उनके पास तीस बीघा भूमि है। जिससे उनके परिवार की आजीविका चलती है। मूर्ति का हुआ अनावरण: शहीद मलखान सिंह के स्वजनों ने खेत के एक कोने में उनकी मूर्ति स्थापित कराई हुई है। मूर्ति का आठ दिसंबर 2002 को परिवार के लोगों ने अनावरण कराया। अनावरण ले. जनरल जेएम गर्ग, ब्रिगेडियर विरेंद्र सिंह चैधरी, कर्नल तेजेंद्र पाल त्यागी ने किया। उनके नाम से गांव में सरकारी स्कूल की भी स्थापना की गई है। उनके पोते देवेंद्र, रविद्र और हरेंद्र अपने दादा पर गर्व करते हैं। उनका कहना है कि उनके दादा ने मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर किए हैं। वह शहीद होकर अमर हो गए हैं।