रामनगरी के लिए कठिन होती जा रही कोरोना से लड़ाई

मार्च के तीसरे सप्ताह से ही श्रद्धालुओं की राह बाधित होने से टूटने लगे नगरी के आर्थिक तंत्र के तार. आय की स्थायी व्यवस्था वाले चुनिदा मंदिरों को छोड़ कर श्रद्धालुओं के भरोसे रहने वाले अधिकांश मंदिर कर रहे चुनौतियों का सामना.

By JagranEdited By: Publish:Fri, 10 Jul 2020 11:43 PM (IST) Updated:Fri, 10 Jul 2020 11:43 PM (IST)
रामनगरी के लिए कठिन होती जा रही कोरोना से लड़ाई
रामनगरी के लिए कठिन होती जा रही कोरोना से लड़ाई

अयोध्या : रामनगरी की कोरोना से लड़ाई कठिन होती जा रही है। श्रद्धालु और तीर्थयात्री मोक्षदायिनी नगरी की धड़कन रहे हैं, पर मार्च महीने में कोरोना के विरुद्ध संघर्ष का शंखनाद होने के साथ श्रद्धालुओं के आगमन की राह रोक दी गई। 22 मार्च को जनता क‌र्फ्यू लागू होने और 25 मार्च से लॉकडाउन को रामनगरी ने कोरोना को पस्त करने के पूरे हौसले से स्वीकार किया। श्रद्धालुओं का आवागमन बाधित होने और स्थानीय नागरिकों के घरों में कैद हो जाने के चलते रामनगरी की अपनी दुनिया कहीं खो सी गयी। लॉकडाउन के प्रथम चरण के साथ ही वासंतिक नवरात्र और रामनवमी मेला का आगाज होना था, पर नगरी ने आपदकालीन परिस्थितियों को बखूबी समझा और इन दोनों उत्सवों को स्थगित कर स्वयं को कोरोना के खात्मे की जंग के लिए समर्पित किया। वासंतिक नवरात्र के ही उत्तरार्ध में रामनवमी मेला के मौके पर रामनगरी में 25 से 30 लाख श्रद्धालु जुटते हैं और उनकी आमद मंदिरों की अर्थ व्यवस्था के साथ स्थानीय व्यापारियों के लिए संजीवनी साबित होती है, पर नगरी ने कोरोना को मात देने के लिए अपने अर्थ तंत्र को दांव पर लगाना मुनासिब समझा। दो अप्रैल को राम जन्मोत्सव के बाद आठ अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा एवं दो मई को जानकी प्राकट्योत्सव भी कोरोना के खात्मे की लड़ाई की भेंट चढ़ा। लोगों को उम्मीद थी कि सावन के साथ रामनगरी की रौनक लौटेगी। इस बीच आठ जून को प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए मंदिरों के द्वार खोले जाने की इजाजत तो दे दी, पर श्रद्धालुओं का आगमन प्रतिबंधित होने से उम्मीदें धराशायी हो रही हैं। इसी महीने की पांच तारीख को गुरुपूर्णिमा और अगले दिन सावन की शुरुआत से श्रद्धालुओं का थोक के भाव में आगमन अपेक्षित था, पर कोरोना के चलते प्रशासन ने श्रद्धालुओं का आगमन निषिद्ध कर दिया। कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए आशंका व्यक्त की जा रही है कि सावन ही नहीं आगामी कार्तिक मेला भी कोरोना से जंग की भेंट चढ़ सकता है और इसी के साथ ही मंदिरों की अर्थ व्यवस्था को लेकर संतों के माथे पर चिता की रेखाएं उभरने लगी हैं। हालांकि ऐसे सौ से अधिक मंदिर होंगे, जिनसे समुचित भूमि और आय देने वाली अन्यान्य परिसंपत्तियां संबद्ध हैं, पर अधिकांश मंदिरों की व्यवस्था श्रद्धालुओं पर टिकी है और उनका आगमन बाधित होने से मंदिरों के आर्थिक तंत्र के तार टूटने लगे हैं। विशेष राहत पैकेज मिले : रामदास

नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास के अनुसार संकट से जूझ रहे मंदिरों के संचालकों और महंतों के लिए सरकार को राहत का विशेष पैकेज देना चाहिए। मंदिरों के साथ बड़ी संख्या में संतों, ब्रह्मचारियों, विद्यार्थियों और गोवंश का जीवन जुड़ा होता है। जाहिर है कि मंदिरों की अर्थ व्यवस्था बाधित होने से इन तबकों की कठिनाई बढ़ती जा रही है। ऐसे में सरकार को राहत पैकेज के साथ उनका बिजली का बिल, नगर निगम का टैक्स आदि बुनियादी करारोपण से कुछ वर्षों के लिए मुक्त करना चाहिए।

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