विकास नहीं संबंधों को तरजीह

जागरण संवाददाता, एटा: पंचायत चुनाव में अभी देरी है, मगर प्रचार की जंग दिन पर दिन तेज हो रही है। चुना

By Edited By: Publish:Thu, 27 Aug 2015 07:14 PM (IST) Updated:Thu, 27 Aug 2015 07:14 PM (IST)
विकास नहीं संबंधों को तरजीह

जागरण संवाददाता, एटा: पंचायत चुनाव में अभी देरी है, मगर प्रचार की जंग दिन पर दिन तेज हो रही है। चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले ही पंचायतों में कबीलाई राजनीति देखने को मिल रही है, इसका आधार जातीयता से लवरेज है।

ग्राम पंचायतों में प्रधानी के चुनाव की तैयारियों में जुटे दावेदार जातीय गुणा-भाग कर रहे हैं। पंचायतों की स्थिति यह है कि हर गांव में पार्टी बंदी तो है ही साथ में धड़ेबाजी भी हावी है, जिसमें सेंध लगाने की कोशिशें हो रही हैं। यहां विकास की बात कोई नहीं करता, न ही मतदाता यह आंकलन कर रहे कि मौजूदा प्रधान ने कितना विकास कराया। विकास से ज्यादा तरजीह संबंधों को दी जा रही है।

सजातीय वोटों को ज्यादा से ज्यादा अपने पाले में करने की चुनौती --------

एटा जिले में 2001 की जनगणना के मुताबिक 17.34 फीसद आबादी एससी की थी। यह आबादी तीन लाख 36 हजार 963 थी। 2011 में यह तीन लाख 98 हजार 264 हो गई। जाहिर है यह लोग किसी भी ग्राम पंचायत में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यही वजह है कि अटकलों के चलते गुटों में बंटे लोगों को अपने-अपने पाले में करने की मुहिम तेजी पकड़ रही है। जो सीटें आरक्षित होंगी, उनमें एससी कोटे की सीटों पर ज्यादा मारामारी रहेगी। इसका कारण यह है कि एससी सीट पर हर प्रत्याशी को अपने सजातीय वोटों को ज्यादा से ज्यादा अपने पाले में करने की चुनौती होगी। इन स्थानों पर अन्य जातियों में जो ज्यादा सेंध लगाएगा वहीं पंचायत चुनाव में मजबूत स्थिति में रहेगा।

दिन-रात जुटे सदस्य पद के दावेदार

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इन दिनों जिला पंचायत सदस्य पद के तमाम दावेदार समर्थन हासिल करने की मुहिम छेड़े हुए हैं। हर एक दावेदार गाडि़यों का काफिला लेकर सुबह से शाम तक क्षेत्र में दौड़ रहे हैं। जिले में स्थिति यह है कि इन दावेदारों को प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्रधानी के ऐसे दावेदारों की तलाश है, जिन्हें मजबूत माना जा रहा है।

बड़े-छोटे वोटों का हिसाब

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ग्राम पंचायतों में समर्थन की राजनीति कुछ इस तरह भी है कि बड़े-छोटे वोट का सौदा भी किया जा रहा है। जिला पंचायत सदस्य पद के दावेदार हालांकि अभी खुलकर प्रधानी के दावेदार का समर्थन करते नजर नहीं आ रहे, मगर बड़े-छोटे वोट पर निगाह जमाए हुए हैं। बड़े वोट का मतलब जिला पंचायत सदस्य के वोट से है, जबकि छोटे वोट का मतलब प्रधानी के वोट से है।

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