पुल के नीचे झाड़ियों के बीच शिक्षा ग्रहण कर रहे मासूम

राप्ती नदी की कटान से ग्रामीणों को जितनी पीड़ा नही हुई थी उससे ज्यादे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर हो रही है। गांव के साथ ही विद्यालय भी नदी की धारा में विलीन होने पर खानाबदोश की जिदगी जीने वालों को आसरा तो किसी तरह मिल गया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 29 Nov 2019 11:42 PM (IST) Updated:Sat, 30 Nov 2019 06:06 AM (IST)
पुल के नीचे झाड़ियों के बीच शिक्षा ग्रहण कर रहे मासूम
पुल के नीचे झाड़ियों के बीच शिक्षा ग्रहण कर रहे मासूम

देवरिया: राप्ती नदी की कटान से ग्रामीणों को जितनी पीड़ा नही हुई थी उससे ज्यादे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर हो रही है। गांव के साथ ही विद्यालय भी नदी की धारा में विलीन होने पर खानाबदोश की जिदगी जीने वालों को आसरा तो किसी तरह मिल गया। लेकिन बच्चों को पढ़ाई के लिए सात वर्ष बाद भी कोई स्थान नही मिला। जिसकी वजह से पुल के नीचे झाड़ियों के बीच खुले आसमान तले संचालित विद्यालय में धूप, धूल के साथ ही मौसम की मार सह कर मासूम ककहरा सीखने को मजबूर हैं। जबकि जिम्मेदार कोरे आश्वासन के भरोसे काम चला रहे।

हम बात कर रहे राप्ती व सरयू नदी के संगम किनारे गोरखपुर जनपद की सीमा पर नदी में विलीन हुए ग्राम कोलखास की, जहां के लोग आज भी प्रशासनिक उदासीनता की मार झेल रहे है। कहने को तो ग्रामीणों को आवासीय भूमि उपलब्ध करा दिया गया लेकिन बच्चो की शिक्षा के लिए व्यवस्था करना जिम्मेदार भूल गए। जिसका खामियाजा मासूमों को भुगतना पड़ रहा है। कहीं सुनवाई नही होने पर मजबूर अध्यापक कपरवार के उग्रसेन सेतु के नीचे खाली जमीन को विद्यालय बना दिए। जहां झाड़ियों के बीच बैठे मासूम बच्चे आज भी प्रशासनिक उदासीनता की तपिश में झुलस कर खुले आसमान तले पढ़ने को मजबूर है। जहां धूल व तेज धूप उनके शरीर के साथ ही उनके सुनहरे भविष्य को जला रही है। जबकि जिम्मेदार बीते सात वर्षो में समस्या के समाधान की जगह सिर्फ दौरा कर अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन की कोरमपूर्ति में मशगूल रहे। दो अध्यापक व शिक्षामित्र की है तैनाती प्राथमिक विद्यालय कोलखास पर प्रधानाध्यापक रंजय कुमार सिंह, सहायक इंदू यादव के साथ शिक्षामित्र आशुतोष सिंह व ममता मिश्रा की नियुक्त है। रजिस्टर में करीब 70 से अधिक बच्चों का नामांकन भी है। लेकिन पढ़ने मुश्किल से दो दर्जन ही आते है। प्रधानाध्यापक का कहना है कि झाड़ियों के बीच कौन अपने बच्चों को भेजेगा। जहां हर पल उनकी जान जोखिम में रहती है। ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए शासन से धन मिला जिससे कुछ जमीन तो खरीदी गई लेकिन विद्यालय की बात सभी लोग भूल गए। पहले एक छप्पर डाला गया था लेकिन वह उखड़ गया। जिसके बाद टिनशेड की व्यवस्था की गई।

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शासन को भेजा गया है प्रस्ताव.

गांव के विद्यालय के बारे में जानकारी मिलते ही मौके का निरीक्षण कर खाली जमीन का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। प्रस्ताव स्वीकृत होने व धन निर्गत होते ही भूमि क्रय कर विद्यालय का निर्माण कराया जाएगा।

अरुण सिंह, एसडीएम गोला बाजार, गोरखपुर

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