खेत-खलिहान तक पहुंचे घुसपैठिए, बढ़ी किसानों की मुसीबत

विदेश से आया गाजर घास देश के तीन चौथाई हिस्सों में फैल चुकी -रेलवे लाइन के किनारे देखे जा सकते हैं घुसपैठिए पौधे

By JagranEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 04:12 AM (IST) Updated:Sat, 04 Jul 2020 06:03 AM (IST)
खेत-खलिहान तक पहुंचे घुसपैठिए, बढ़ी किसानों की मुसीबत
खेत-खलिहान तक पहुंचे घुसपैठिए, बढ़ी किसानों की मुसीबत

देवरिया : जिले में हरियाली के बीच घुसपैठिए पौधे, अन्य पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह खेत-खलिहानों तक पहुंच चुके हैं। इसके चलते किसानों की मुसीबत बढ़ गई है। कई घुसपैठिए पौधे पौधारोपण अभियान में भी शामिल हैं। विदेश से आया गाजर घास देश के तीन चौथाई हिस्सों में फैल चुकी है। खेत-खलिहानों में पनपने के साथ ही फसलों को नुकसान पहुंचा रही है। यह घुसपैठिए पौधे रेलवे लाइन व सड़कों के किनारे देखे जा सकते हैं। यह दूसरे पौधों को बढ़ने से रोकता है। गाजर घास मानव सेहत के लिए भी नुकसानदायक है। जिन लोगों को अस्थमा या एलर्जी है। उनकी तकलीफ बढ़ाता है। इसी तरह लैटाना भी घुसपैठिया पौधा है। डीएफओ पीके गुप्ता के मुताबिक, दूसरी जगह से आकर जो पौधे यहां आकर बस गए हैं। वे घुसपैठिए पौधे हैं। वे जहां भी रहते हैं, अपनी कालोनी बना लेते हैं। जिससे स्थानीय पौधों को बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता। उदाहरण के रूप में पेड़ को लें तो यूकेलिप्टस व सागौन एक तरह से घुसपैठिए हैं, हालांकि यह दोनों पौधे प्राकृतिक रूप से यहां आए हैं। वाणिज्यिक पौधों को मिल रहा महत्व बीआरडीपीजी कालेज वनस्पति विज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डा.चंद्रशेखर मिश्र ने बताया कि हमारे पुरखों ने पारंपरिक पेड़ महुआ, आम, शीशम, जामुन आदि को महत्व दिया। इन पौधों को लगाने के पीछे एक पारंपरिक सोच थी। आज वाणिज्यिक सोच को बढ़ावा मिल रहा है। आधुनिक वाणिज्यिक पौधों में सागौन, यूकेलिप्टस, पापुलर को महत्व दिया गया। अब महोगनी को महत्व दिया जा रहा है। जिले के कई हिस्से में लोगों ने इसका रोपण किया है। व्यापारिक रूप से कीमती वृक्ष है। महोगनी के पेड़ के लगभग सभी भागों का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी लकड़ी का इस्तेमाल जहाज, फर्नीचर, प्लाईवुड, सजावट की चीजें और मूíतयों को बनाने में किया जाता है। बीज व फूलों का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवाइयों को बनाने में किया जाता है।

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