शाहजहांपुर के युवा की कहानी, जिसने गरीबी को मात देने के लिए यू टयूब का लिया सहारा

हौसला हिम्मत के साथ यदि दूसरों की मदद का जुनून व जज्बा हो तो गुरबत की स्याह ङ्क्षजदगी की खुशहाली के लिए उम्मीद की रोशनी मिल जाती है। निगोही विकास क्षेत्र के भटियुरा पृथ्वीपुर निवासी विकास इसकी मिसाल है।

By Ravi MishraEdited By: Publish:Sun, 23 Jan 2022 09:39 AM (IST) Updated:Sun, 23 Jan 2022 09:39 AM (IST)
शाहजहांपुर के युवा की कहानी, जिसने गरीबी को मात देने के लिए यू टयूब का लिया सहारा
शाहजहांपुर में एल ई डी बल्‍व बनाते युवा, अपने परिवार केे सााथ।

जेएनएन, शाहजहांपुर : हौसला, हिम्मत के साथ यदि दूसरों की मदद का जुनून व जज्बा हो तो गुरबत की स्याह ङ्क्षजदगी की खुशहाली के लिए उम्मीद की रोशनी मिल जाती है। निगोही विकास क्षेत्र के भटियुरा पृथ्वीपुर निवासी विकास इसकी मिसाल है। पिता की मौत के बाद अभाव व दुश्वारियों से जूझ रहे नौजवान ने किसी के सामने बेचारगी नहीं जताई। यू ट््यूब एप पर एलईडी बल्ब बनाने के वीडियो देखकर घर में कारखाना शुरू कर दिया। खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ अब विकास दूसरों की भी ङ्क्षजदगी को भी प्रकाशवान बना रहे है।

विकास के पिता वीरपाल के नाम मात्र ढाई बीघा जमीन है। वह भ_े पर मजदूरी करके चार बच्चों समेत छह सदस्यों का परिवार पाल रहे थे। सात वष उनकी मौत हो गई। उस समय विकास की उम्र 16 साल की थी। मां रामवती का हाथ बंटाने के लिए विकास ने भ_े पर काम शुरू कर दिया। सीमित आय से दो भाइयों व बहन की पढ़ाई के साथ खर्चा चलाना मुश्किल था।

इस तरह बढ़ाए प्रगति के कदम

एलईडी बल्ब बनाने का वीडियो पर पता लिखा देख विकास, दिल्ली के आनंद बिहार पहुंच गए। उन्होंने वहां गली नंबर तीन स्थित एक प्रतिष्ठान में एलईडी बल्ब बनाने का दो दिन प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वहां से बल्ब बनाने की मशीन व अन्य सामान खरीद कर घर आ गए। यहां उन्होंने नौ वाट का बल्ब बनाना शुरू कर दिया। इससे उनकी सैकड़ों की कमाई हजारों में पहुंच गई। पत्नी सरोजा, भाई मिथुन समेत अन्य लोग भी हाथ बंटाने लगे। विकास ने पत्नी सरोजा देवी तथा बहन रीना देवी समेत महिलाओं को जोड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया। समूह को अब तक 1.10 लाख का सामुदायिक सहभागिता निवेश तथा 15 हजार रुपये चक्रीय निधि के रूप में मिल चुके। इससे सरोजा देवी ने पति के कारोबार को विस्तार दिया।

एक घंटे में 20 से 22 बल्ब का निर्माण

समूह के लोग औसतन तीन मिनट में एक बल्ब तैयार कर लेते हैं। डाई की मदद से बल्ब में होल्डर व ढक्कर लगाकर टांका लगा दिया जाता है। फुटकर में यह बल्ब लागत से दोगुनी कीमत में बिकता है, थोक में 15 से 20 फीसद के लाभ पर बिक्री हो जाती है। विकास ने चार्जेबल बल्ब को इन्वर्टर के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। करीब तीन घंटे तक यह बल्ब बिना लाइन के जलता है।

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