पुलवामा हमले में शहीद जवानों के परिजनों का छलका दर्द, कहीं ये बात

शहीद पंकज त्रिपाठी के परिजन बोले- कहकर लौटा था कि इस बार आऊंगा तो आप और माताजी को चार धाम की यात्रा करा दूंगा। हमें क्या पता था कि अरमान सिर्फ अरमान ही बन कर रह जाएंगे।

By Abhishek PandeyEdited By: Publish:Mon, 25 Mar 2019 11:23 AM (IST) Updated:Mon, 25 Mar 2019 11:23 AM (IST)
पुलवामा हमले में शहीद जवानों के परिजनों का छलका दर्द, कहीं ये बात
पुलवामा हमले में शहीद जवानों के परिजनों का छलका दर्द, कहीं ये बात

 जेएनएन, बरेली : छुट्टियों पर घर आया था। कहकर लौटा कि इस बार आऊंगा तो आप और माताजी को चार धाम की यात्रा करा दूंगा। हमें क्या पता था कि उसके साथ चार धाम की यात्रा करने का अरमान सिर्फ अरमान ही बन कर रह जाएंगे। वो देश पर मिटा मगर, याद का क्या करें। भुलाई नहीं जा रही। 

यह पीड़ा है पुलवामा हमले में शहीद हुए पंकज त्रिपाठी के परिजनों की। महाराजगंज से आए शहीद के पिता ओम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि पंकज परिवार का एक मात्र आर्थिक सहारा था। पंकज की तरह प्रदेश अन्य शहरों से आए शहीद परिवारों ने दैनिक जागरण से अपना दर्द साझा किया। ये सभी आइएमए बरेली की ओर से आयोजित शौर्य गाथा युद्ध वीरों की विषय पर आयोजित कवि सम्मेलन में पहुंचे थे। इस दौरान सभी को आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराई गई। जानें, शहीद के परिजनों के दिल का दर्द...। 

डूब गए कर्ज में

बनारस से आए शहीद रमेश यादव के पिता श्याम नारायण यादव ने बताया कि जमीन गिरवी रखकर कर्जा लिया था। बैंक के क्रेडिट कार्ड से भी लोन लिया था। रमेश के जाने के बाद सब अधूरा ही रह गया। अब उसके भाई को नौकरी मिलने पर ही घर की आर्थिक स्थिति में सुधर सकेगी।

बेटियों को डॉक्टर बनाने की थी हसरत

उन्नाव से आए शहीद अजीत कुमार के पिता प्यारे लाल ने बताया कि अजीत की इच्छा अपनी बेटियों ईशा व श्रेया को मेडिकल लाइन में भेजने की थी। यह हसरत दिल में लिए ही वह दुनिया से रुखसत हो गया। अब तो बस उसका यही ख्वाब पूरा करने की ही तमन्ना है।

बेटे से मिलने की हसरत अधूरी रह गई

आगरा से शहीद कौशल कुमार रावत की पत्नी ममता रावत का कहना है कि वे बेटे अभिषेक रावत से एक वर्ष से नहीं मिल पाए थे। अभिषेक रूस में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है। जिस कारण से मिलना नहीं हो पाया। बेटी अपूर्वा के साथ फ्लाइट में यात्रा करने का ख्वाब दिल में ही लिए इस दुनियां से चले गए।

बेटे की घर वापसी सर्फ सपना

कन्नौज से आए शहीद प्रदीप सिंह के पिता अमर सिंह का कहना है कि होली पर घर आने की बात कह गया था। होली निकल गई लेकिन, प्रदीप नहीं आया। अब तो उसकी घर वापसी सिर्फ सपना ही रह गई।

हर होली रुलाएगी

श्यामली से आए शहीद प्रदीप कुमार के पिता जगदीश ने बताया कि प्रदीप दिल्ली में मेडिकल का प्रशिक्षण कर रहे थे। जिसके बाद उन्हें घर आना था। दिल्ली में अपने भतीजे से मिलकर गए थे। होली पर अब हमेशा ही प्रदीप के वापस आने का इंतजार रहेगा।

नहीं कर पाया बहन के हाथ पीले

प्रयागराज से आए शहीद महेश कुमार के पिता राजकुमार का कहना है कि उसे अपने भाई-बहन की शादी की जिम्मेदारी उठानी थी। बहन की शादी धूमधाम से करने का अरमान था। यह सपना अपने साथ लिए ही दुनिया से विदा हो गया।

मकान की चाहत रही अधूरी

मैनपुरी से आए शहीद राम वकील के भाई मुनेश बाबू का कहना था कि तीन छोटे छोटे बच्चे है। राम वकील को अपना मकान बनवाना था। काम भी शुरू कराया था। लेकिन अब उसके मकान बनवाने की यह चाहत अधूरी ही रह गई।

बच्चों के साथ नहीं रह पाए

कानपुर देहात के रैगुंवा से आए शहीद श्याम बाबू के भाई कमलेश ने बताया कि दो बच्चे हैैं- आयुषी व आरुष। दोनों के साथ श्याम बाबू वक्त बिताना चाहते थे। कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। कुछ ही दिनों साथ रह कर वापस ड्यूटी पर लौटे थे और मनहूस खबर आई।  

chat bot
आपका साथी