Lockdown Update: प्रवासी बोले- मंजिल की आस में न भूख समझ आ रही, न प्यास Bareilly News
पैरों में छाले और खाने के लिए लाई-चने कोई तीन दिन से भूखा तो कोई पानी के सहारे....सबकी आंखें नम हैं और उनमें है तो बस मंजिल की आस।
बरेली, जेएनएन। पैरों में छाले और खाने के लिए लाई-चने कोई तीन दिन से भूखा तो कोई पानी के सहारे....सबकी आंखें नम हैं और उनमें है तो बस मंजिल की आस। घर पहुंचने की उम्मीद में न भूख समझ आ रही, न प्यास। यह आंखों देखी उन प्रवासियों की है, जो चार पैसे कमाने के लिए घर- परिवार गांव में छोड़ दूर शहरों में जा बसे थे। लॉकडाउन में कंपनियां, फैक्ट्री और कारखाने बंद हुए तो यह भी बेबस हो गए। जब सब्र ने दम तोड़ दिया तो पैदल ही अपने घरौंदों की ओर चल दिए।
छांव दिखी तो आगे नहीं बढे कदम : परिवार के भरण पोषण और बहनों की शादी की जिम्मेदारी श्याम बली के सिर पर है। वह बलिया के रहने वाले हैं और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए हरियाणा की स्टील प्लांट में वेल्डिंग का काम करते हैं। उनके साथ गांव के राजेश यादव, विक्रम और राजकिशोर भी उसी प्लांट में काम करते हैं। लॉक डाउन में प्लांट बंद हो गया और आने जाने का कोई साधन नहीं था। ऐसे में वह 50 दिनों तक हरियाणा में ही किसी तरह रहे। लेकिन अब न पैसे बचे थे और ना ही कोई मदद करने वाला।
बची थी तो हिम्मत और उम्मीद। रविवार को हरियाणा से पैदल चल पड़े। बरेली तक पहुंचने के दौरान दो जगह पुलिस वालों ने रोका और गाड़ी में बैठाया लेकिन ट्रकों के चालक रास्ते में ही उतार देते थे। बरेली के सीबीगंज हाईवे पर छांव में बैठे यह सभी भूखे थे। खाने के लिए कुछ नहीं था, किसी ने लाई-चने दिए थे, उसे ही खाकर पानी पी रहे थे। जैसे उनसे बात की तो सबसे पहले वह यही बोले पानी पीकर जी रहे हैं, भैया कोई नहीं सुनने वाला है। अब घर पहुंच जाएं तभी चैन आए।
उम्मीद टूटी तो पानीपत से पैदल चल दिए मामा भांजे
हरियाणा पानीपत में एक धागा बनाने वाली फैक्ट्री मैं काम करने वाले सुरेश और वेदपाल मामा भांजे हैं। आपस में मामा भांजे हैं। भांजा सुरेश फ्रेम काटने का काम करता है जबकि मामा पल्लेदार ई करता है लॉक डाउन के बाद से फैक्ट्री बंद चल रही है काफी दिनों से घर जाने की सोच रहे थे लेकिन पुलिस निकलने नहीं दे रही थी सोमवार को दोनों ने निकलने की ठान ली इसके बाद पुलिस को चकमा देते हुए खेतों से होते हुए सड़क तक पहुंचे।
इसके बाद हाईवे से होते हुए बरेली तक पहुंचे, बताया कि रामपुर के पास पुलिस ने एक लोडर में बैठा दिया था मैं लखनऊ जा रहा था हमने उस से शाहजहांपुर तक छोड़ने को कहा लेकिन उसने कह दिया है कि वह यहीं तक जाएगा लोडर चालक उन्हें झुमका तिराहा सीबीगंज पर ही छोड़कर चला गया। यहां पुलिस ने उनके लिए भोजन का इंतजाम किया और बाद में एक लोडर में बैठा कर आगे रवाना कर दिया।
घर तक जाने को पंजाब से बाइक से निकले प्रवासी
पंजाब में काम करने वाले संजीत चौहान अपने छह साथियों के साथ तीन बाइकों से पंजाब से बरेली पहुंचे थे। रास्ता भटक जाने के चलते वह सीबीगंज कस्बे में आ गए थे। पूछताछ करने पर बताया कि संजीत चौहान, अरुण कुमार, विनोद और धीरज गोरखपुर के रहने वाले हैं। जबकि बल्लू और उमेश कुशवाहा कुशीनगर के हैं।
पंजाब के अलग-अलग कंपनियों से उनका कांटेक्ट रहता है। वह पेंट और पुट्टी का काम करते हैं। लॉक डाउन के बाद से परिजनों के कहने पर यहां रुके थे। अब परिजन भी इस बात से परेशान थे की लॉक डाउन कब खुलेगा। बुधवार को सभी ने एक साथ निर्णय लिया और बाइकें लेकर निकल आए। रास्ते में जहां भी पुलिस ने रोका पूरी बात बता कर निकल आए।
प्रवासियों को रोकने और ठहराने के बाद जिला प्रशासन की मदद लेकर उन्हें गंतव्य तक पहुंचाया जाना है इसके लिए सभी जिलों की पुलिस को निर्देश दिए गए हैं अगर बरेली में ऐसा नहीं हो रहा है तो इसका संज्ञान लेकर जांच कराई जाएगी संबंधित पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई भी होगी। अविनाश चंद्र, एडीजी