बचपन को बेड़ियों से मुक्त करातीं हैं ममता

जागरण संवाददता, बागपत: ममता शर्मा..! यह वह नाम है, जिन्होंने शादी के बाद संघर्ष कर पढ़ाई

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Jan 2019 09:44 PM (IST) Updated:Fri, 25 Jan 2019 09:44 PM (IST)
बचपन को बेड़ियों से मुक्त करातीं हैं ममता
बचपन को बेड़ियों से मुक्त करातीं हैं ममता

जागरण संवाददता, बागपत:

ममता शर्मा..! यह वह नाम है, जिन्होंने शादी के बाद संघर्ष कर पढ़ाई पूरी की और अफसर बनीं। वह पैरों में पड़ी बेड़ियां काटकर बचपन को मुक्त कराकर सही रास्ते पर लाने में जुटी हैं। बालगृहों में कैद बाल अपचारियों का पक्ष अदालत में मजबूती से रखती हैं। उन कारणों को ढूंढ़ती हैं, जिससे बच्चों ने अपराध की

राह पकड़ी है ,ताकि समस्या की जड़ पर सटीक चोट की जा सके।

ममता शर्मा मेरठ के कस्तला शमशेर नगर गांव के गरीब किसान परिवार से हैं। इंटरमीडिएट पास करने के बाद मेरठ कालेज में बीए में दाखिला लिया तो पड़ोसन बोलीं कि बिटिया को आगे पढ़ाने की जरूरत क्या है? बेटी की जिद पर पिता राकेश कुमार ने पड़ोसी की सलाह पर ध्यान नहीं दिया। बीए पास की तो परिजनों ने साल 2009 में शादी कर दी, लेकिन उच्च पढ़ाई का जज्बा कम नहीं हुआ। पति और बाकी ससुरालीजनों ने भी उनकी इच्चा का सम्मान कर आगे पढ़ाई जारी रखने की सहमति दे दी। पहले एमए किया और फिर बीएड। दो बच्चों को जन्म दिया, लेकिन उनके लालन-पालन के साथ सपनों के करियर को उड़ान देने को संघर्ष जारी रखा। वर्ष 2016 में महिला एवं बाल कल्याण विभाग में विधि सह परिवीक्षा अधिकारी बनीं। शुरूआत में लगा कि कहां फंस गई? लेकिन कुछ समय बाद एक ऐसे बच्चे की पैरवी करनी पड़ी, जिसे हालात ने अपराध की राह पर धकेल दिया था। उस बच्चे की मां प्रेमी संग चली गई, जिससे उसका पिता मानसिक बीमार हो गया। संभालने वाला कोई था नहीं। खाने-पीने और बाकी जरुरतें पूरी करने को उसने चोरी शुरू कर दी। पुलिस ने पकड़ा तो अदालत ने बाल गृह मेरठ भेज दिया। ममता ने उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन कर अदालत में पक्ष रखा और वह बच्चा मुक्त हो गया। बस! यहीं से ममता बचपन के लिए काम में रम गईं। वह अब तक 70 बच्चे बालगृह से मुक्त कराने में सफल रही हैं।

पेश की मिसाल

बागपत: विकास कुमार भी काफी संघर्ष के बाद पढ़कर अफसर बने हैं। ग्रेजुएट के बाद परिजनों ने सलाह दी कि आगे पढ़कर क्या करोंगे, अब कुछ काम करो, लेकिन उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। परिजनों ने शादी कर दी, लेकिन संघर्ष जारी रखा। साल 2014 में यूपीएससी की परीक्षा पास कर सहकारिता विभाग में सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक बने। वह 36 में 14 समितियों का लेन-देन ऑनलाइन कराने, नौ समितियों पर पतंजलि उत्पाद बिक्री कराने, दस हजार नये किसान सहकारिता से जोड़ने व वसूली में सूबे नंबर वन में सफलता पाने की मिसाल पेश की।

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