पराली जलाने से वातावरण पर पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव

विभिन्न ग्राम पंचायतों में चलाया गया जागरूकता अभियान किसानों को इससे लाभ-हानि के बारे में दी गई

By JagranEdited By: Publish:Mon, 09 Nov 2020 06:47 PM (IST) Updated:Mon, 09 Nov 2020 06:47 PM (IST)
पराली जलाने से वातावरण पर पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव
पराली जलाने से वातावरण पर पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव

विभिन्न ग्राम पंचायतों में चलाया गया जागरूकता अभियान

किसानों को इससे लाभ-हानि के बारे में दी गई जानकारी

जागरण संवाददाता, बूढ़नपुर (आजमगढ़) : सहायक विकास अधिकारी कृषि राधेश्याम यादव की अध्यक्षता में फसल अवशेष प्रबंधन व पराली न जलाने के लिए कोयलसा ब्लाक के सभी ग्राम पंचायतों में जागरूकता अभियान चलाया गया। किसानों को बताया गया कि खेत की पराली अथवा गन्ने की पत्ती ना जलाएं। पराली जलाने से वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मृदा के तापमान में बढ़ोतरी होने से खेत के मित्र कीट जलकर मर जाते हैं। ऐसे में भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।

कृषि अधिकारी ने बताया कि पराली जलाने से पशु के लिए चारा का संकट पैदा हो जाता है। धुएं से सांस की बीमारियां होती है। दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 24 व 26 के अंतर्गत खेत में फसल अवशेष जलाना एक दंडनीय अपराध है। कृषि भूमि के क्षेत्रफल दो एकड़ से कम होने की दशा में 2500 कृषि भूमि का क्षेत्रफल दो से पांच एकड़ तक होने की दशा में 5000 प्रति घटना कृषि भूमि का क्षेत्रफल पांच एकड़ से अधिक होने की दशा में 15000 प्रति घटना व अपराध की पुनरावृत्ति करने पर कारावास व अर्थदंड से दंडित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पराली जलाने की घटनाओं को सेटेलाइट से पकड़ा जा रहा है। किसान अपने फसलों के अवशेष खेत में मिला देने पर मृदा में कार्बनिक एवं अन्य तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। वेदव्यास सिंह, मुकेश सिंह, संतोष यादव, अरविद कुमार गुप्ता, अशोक कुमार आदि रहे।

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