ऐसा कोई चुनाव नहीं, जिसनें इन्होंने नहीं किया हो मताधिकार

अर्पित अवस्थी औरैया देश आजाद होने के बाद आधी दुनिया नींद के आगोश में थी तब 30 वर्षीय कस्ब

By JagranEdited By: Publish:Mon, 29 Apr 2019 11:50 PM (IST) Updated:Mon, 29 Apr 2019 11:50 PM (IST)
ऐसा कोई चुनाव नहीं, जिसनें इन्होंने नहीं किया हो मताधिकार
ऐसा कोई चुनाव नहीं, जिसनें इन्होंने नहीं किया हो मताधिकार

अर्पित अवस्थी, औरैया : देश आजाद होने के बाद आधी दुनिया नींद के आगोश में थी, तब 30 वर्षीय कस्बा खानपुर निवासी शम्मी डाईवर जाग रहे थे। देश के आजाद होने की खुशी से उनका चेहरा चमक रहा था। जब देश की सरकार चुनने का मौका आया तो उन्होंने सबसे पहले पहुंचकर अपने का प्रयोग किया। आजादी और वोट की कीमत का मोल भला उनसे बेहतर कौन जान सकता है। इस 101 साल के दौरान उन्होंने सभी चुनावों में मतदान किया। उनकी बूढ़ी आंखों में आज भी अपने देश को दुनिया का सिरमौर बनने की चाह जिदा है। यही वजह है कि उम्र के 101 पड़ाव पर भी वे देश के उज्जवल भविष्य को उसी अंदाज में अपनी पत्नी बिलकीस के साथ रिक्शे पर बैठकर मतदान स्थल की ओर निकल पड़े। जिस तरह पहले आम चुनाव में सरकार चुनने को पहली बार मतदान किया था।

खानपुर के 95 वर्षीय शहीद सुबह छह बजे चारपाई छोड़ दी और अपने बेटे से वोट डलवाने के लिए बोले। बेटे की थोड़ी आनाकानी की तो वह खुद लोकतंत्र के महापर्व में आहुति डालने के लिए लाठी का सहारा लेकर मतदान केंद्र पर पहुंच गए। उन्होंने बताया कि बताया कि बात 1954 की है। जब क्षेत्र में डकैतों का फरमान चलता था। फिर भी वह मतदान करने के लिए गए थे। उन्होंने पहली बार प्रधानी के चुनाव में मताधिकार का प्रयोग किया था। उन्होंने पहली बार मतदान किया था। तब लेकिन अब ऐसा कोई चुनाव नहीं होता है, जिसमें वह अपनी सहभागिता न निभाएं। मतदान करने के बाद वह घर आए और अपने तीन बेटों को सब काम छोड़कर पहले मतदान करने जाने की बात कही।

2011 में एक हादसे में शाम मोहम्मद पैरों से विकलांग हो गए थे। दो साल तक तो उन्होंने चलने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन तबियत में सुधार होने के बाद वह परचून की दुकान लगाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने परिवार वालों से मतदान करवाने के लिए कहा। लेकिन घर वालों की ओर से दिलचस्पी न लिए जाने से वह मतदान करने से वंचित रह गए थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान करने की उन्होंने पहले से ही ठान ली थी। उन्होंने सोमवार को विकलांगता को पीछे छोड़ते हुए बगैर घर वालों को बताए वह मतदान स्थल पहुंच गए और उन्होंने अपने मत का प्रयोग किया। महापर्व में भागीदार बनने के बाद उनके चेहरे में अलग ही मुस्कान दिखाई पड़ी।

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