कंचन के आगे कांच बन गई बेड़ियां

अमेठी दशक भर पहले तक जामो का नाम आते ही जेहन में दो बातें आती थी। पहली बात-बात में

By JagranEdited By: Publish:Fri, 17 Jan 2020 10:50 PM (IST) Updated:Sat, 18 Jan 2020 06:05 AM (IST)
कंचन के आगे कांच बन गई बेड़ियां
कंचन के आगे कांच बन गई बेड़ियां

अमेठी : दशक भर पहले तक जामो का नाम आते ही जेहन में दो बातें आती थी। पहली, बात-बात में बंदूक लहराकर सियासत चौचक करते लोग और दूसरी गीत-संगीत, घुंघरू, ढोल के सहारे लोगों को अपनी ओर खींचता खुन्ना का ताल। इसी गांव में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता विमला देवी के घर जन्मी कंचन राणा ने गांव के पिछड़ेपन के साथ ही रूढि़वादी समाज की कुरीतियों की बेड़ियों को तोड़ दिया। 2019 पीसीएस परीक्षा में 22वीं रैंक के साथ एसडीएम के पद पर चयनित होकर यह दिखा दिया कि हौसला हो तो कुरीतियों की बेड़ियां भी कांच सी कमजोर साबित होती हैं।

शैक्षिक रूप से पिछड़े जिले के जामो ब्लॉक के रामपुर चौधरी के एक छोटा सा पुरवा खुन्ना ताल में पली-बढ़ी कंचन राणा के पास ऐसे कोई संसाधन नहीं थे कि वह आला अफसर बन सके। कंचन की मां गांव विमला देवी ने भी पढ़ाई-लिखाई में अव्वल देख बिटियां को अफसर बनाने का सपना संजो लिया था।

बढ़े कदम, सफलता की लिखते गए कहानी

जामो के ही सर्वोदय इंटर कॉलेज से हाईस्कूल व इंटर अच्छे अंकों से पास करने के बाद कंचन इलाहाबाद विवि पहुंच गई। यहां से स्नातक करने के बाद अगला पड़ाव था जेएनयू। जेएनयू से हिदी साहित्य में परास्नातक फिर एमफिल तथा पीएचडी करने के बाद कंचन का चयन भीमराव अंबेडकर विवि बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हो गया। सबसे बड़ी खुशी 2019 में आई, जब यूपीपीसीएस परीक्षा में कंचन ने 22 वां स्थान लाते हुए एसडीएम का पद अपने नाम कर लिया। कंचन की सफलता से परिवार तो गदगद है ही आस-पास के गांवों की बेटियों में भी उम्मीद का एक दिया जला है।

मां के विश्वास ने दी ताकत

कंचन राणा कहती हैं कि मेरी सफलता में मेरी मां का सबसे बड़ा रोल है। उन्होंने नौकरी करके मुझे पढ़ाया-लिखाया। मेरी सफलता शैक्षिक रूप से पिछड़े गांव की हर लड़की की सफलता है। मेरे गांव में उस समय लड़कियों को पढ़ाने की सोच नहीं थी। ऐसे समय में मेरे मा ने ना सिर्फ पढ़ाया बल्कि इस काबिल बनाया। हर मां बाप को अपनी बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

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