मायावती के इस्तीफे के बाद मांझी ने पार लगाई सपा की नाव

By Edited By: Publish:Thu, 17 Apr 2014 12:38 AM (IST) Updated:Thu, 17 Apr 2014 12:38 AM (IST)
मायावती के इस्तीफे के बाद मांझी ने पार लगाई सपा की नाव

अंबेडकरनगर: चौदहवीं लोकसभा चुनाव में बसपा ने अकबरपुर के साथ-साथ फैजाबाद संसदीय सीट पर कब्जा कर लिया। यह बात दीगर है कि अकबरपुर सीट से निर्वाचित बसपा सुप्रीमो मायावती के इस्तीफे के बाद यहां हुए उपचुनाव में सपा ने बाजी मार ली थी। 2004 में हुए चौदहवीं लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट से बसपा प्रत्याशी मित्रसेन यादव दो लाख सात हजार मत पाकर निर्वाचित घोषित हुए थे जबकि दूसरे नंबर पर भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह रहे। इन्हें एक लाख 73 हजार मत मिले थे। अकबरपुर संसदीय सीट से बसपा सुप्रीमो मायावती तीन लाख 25 हजार मत पाकर विजयी रहीं। उन्होंने सपा उम्मीदवार शंखलाल मांझी को पराजित किया था। मांझी को दो लाख 66 हजार मत हासिल हो पाए थे। चुनाव में जीत मिलने के बाद मायावती ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए उप चुनाव में शंखलाल मांझी ने जीत दर्ज कर आम चुनाव में मिली शिकस्त का बदला लिया। इस बार भी शंखलाल समाजवादी साइकिल पर सवार थे। वर्ष 2009 में हुए पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में अकबरपुर संसदीय सीट सामान्य हो गयी। इस कारण दलित वर्ग के अलावा अन्य जातियों के भी प्रत्याशियों ने किस्मत आजमायी। इस चुनाव में बसपा के राकेश पांडेय दो लाख 59 हजार मत पाकर विजयी रहे। दूसरे स्थान पर सपा के शंखलाल मांझी को दो लाख 36 हजार वोट मिले थे। भाजपा प्रत्याशी विनय कटियार दो लाख 26 हजार मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे।

तीन बार विधायक रहे कांग्रेस नेता प्रियदर्शी जेतली का कहना है कि पहले राष्ट्रीय नेता ही खुली जीप या कार से चुनाव प्रचार करते थे। कार्यकर्ता पैदल अथवा साइकिलों के जरिए गांव-गांव घूमकर प्रचार करते थे। ईमानदार व स्वच्छ छवि के लोगों को तरजीह दी जाती थी। अब स्थितियां बिल्कुल विपरीत हो गयी हैं।

भाजपा से जुड़े शिव प्रसाद गुप्त कहते हैं कि पूर्व में लोग जीप, पैदल व मोटर साइकिलों से प्रचार करते थे। नुक्कड़ सभाओं में गीत के जरिए पार्टी की रीति-नीति और उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करते थे। ईमानदार व कर्मठ लोगों का चुनाव जनता करती थी।

नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष हाजी मोहम्मद हफीज का कहना है कि रिक्शा-तांगा प्रचार के साधन थे। डुग्गी और नाटक एवं सभाओं के जरिए प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार होता था। लोग चुनावों में स्थानीय नेताओं को तरजीह देते थे। अब चंद दिनों के नेता करोड़ों के मालिक बन जाते हैं जो उनकी हकीकत बयां करने को काफी है।

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