गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती की पावन नगरी ...जहां शब्द बने 'हथियार' Prayagraj News

प्रयागराज का नाम हर क्षेत्र में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है जिसका आधार है यहां से प्रकाशित पत्र पत्रिकाएं। आजादी से पहले जहां पत्रिकाओं में शब्दों को पिरोकर जनांदोलन को गति दी गई। वहीं स्वतंत्रता के बाद साहित्यिक पत्रिकाओं को समाज की खामियां को उजागर करने का माध्यम बनाया गया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 05 Nov 2020 02:37 PM (IST) Updated:Thu, 05 Nov 2020 02:37 PM (IST)
गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती की पावन नगरी ...जहां शब्द बने 'हथियार' Prayagraj News
राष्ट्रहित में लेखक व प्रकाशक समाज की आंख बनकर काम करते रहे।

प्रयागराज,जेएनएन। गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन 'संगम ' तट पर बसे प्रयागराज की अपनी थाती रही है। देश को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराना हो या आजादी मिलने के बाद उसे साहित्यिक, राजनीतिक व कानूनी क्षेत्र में दिशा देना। प्रयागराज का नाम हर क्षेत्र में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है, जिसका आधार है यहां से प्रकाशित पत्र, पत्रिकाएं। आजादी से पहले जहां पत्रिकाओं में शब्दों को पिरोकर जनांदोलन को गति दी गई। वहीं स्वतंत्रता के बाद साहित्यिक पत्रिकाओं को समाज की खामियां व दिक्कतों को उजागर करने का सशक्त माध्यम बनाया गया। इस कार्य में लेखकों के साथ प्रकाशकों ने महती भूमिका निभाई। राष्ट्रहित में लेखक व प्रकाशक समाज की आंख बनकर काम करते रहे, जिससे प्रयागराज का इतिहास गौरवपूर्ण बना।

प्रकाशकों की बात करें तो इंडियन प्रेस के संस्थापक बाबू चिंतामणि घोष का नाम स्वर्णिम अक्षरों में आज भी दर्ज है। उन्होंने चार जून 1884 को उत्तर भारत का सबसे बड़े प्रिंटिंग प्रेस 'इंडियन प्रेस ' की प्रयागराज में स्थापना की। जहां से बांग्ला, अंग्रेजी, हिंदी व उर्दू भाषा में पत्रिकाएं छपती थी। यह वो दौर था जब अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की आवाज बुलंद हो रही थी, वहीं देश साहित्यिक विचारधारा भी वृहद स्वरूप लेने को आतुर थी। बाबू चिंतामणि ने सबको प्राश्रय दिया। कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि ' सहित सौ पुस्तकें इंडियन प्रेस से प्रकाशित हुईं। वहीं साहित्यिक क्षेत्र की सबसे चर्चित साहित्यिक पत्रिका सरस्वती, विज्ञान पर आधारित माधुरी, प्रवासी, मार्डन रिव्यू, बाल सखा सहित अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन इंडियन प्रेस से किया गया।  उस दौर में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, मुंशी प्रेमचंद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला ', महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, देवीदत्त शुक्ल, रमादत्त शुक्ल, ईश्वरी प्रसाद जैसे रचनाकारों का गढ़ हुआ करता था इंडियन प्रेस। जहां उनके विचारों को प्रकाशित करके जन-जन तक पहुंचाने के साथ आर्थिक मदद दी जाती थी।

देश जब आजादी के मुहाने पर खड़ा था तब क्षेतेंद्र मोहन मित्रा ने मित्र प्रकाशन की स्थापना की। सर्वप्रथम वह हस्त लिखित कहानी की किताबें ट्रेन में बेंचा करते थे। अपनी मेहनत के बल पर 17 वर्ष की आयु में 1925 में मित्र प्रकाशन की स्थापना करके 'माया पत्रिका ' निकाली। यह पत्रिका इतनी लोकप्रिय हुई कि क्षेतेंद्र मोहन को 'माया बाबू ' के नाम से जाना जाने लगा। मित्र प्रकाशन से माया के अलावा मनोहर कहानियां, सत्य कथा, मनोरमा व अंग्रेजी में प्रोब इंडिया नामक पत्रिका प्रकाशित हुईं। सारी पत्रिकाओं को ख्याति मिली। यहां से कथाकार अमरकांत, मार्कंडेय, सत्यव्रत सिन्हा, जवाहरलाल नेहरू के सलाहकार रहे राजेश्वर प्रसाद सिंह, महादेवी वर्मा, शिवानी, संस्कृत के विद्वान श्रीकृष्ण दास, बाल साहित्यकार सतीशचंद्र टंडन, भैरो प्रसाद गुप्त, रवींद्र कालिया, ममता कालिया, मृणाल पांडेय, मालती जोशी जैसे रचनाकार जुड़े रहे। वहीं उपेंद्रनाथ 'अश्क ' के नीलाभ प्रकाशन, लोकभारती प्रकाशन, सतीशचंद्र अग्रवाल के साहित्य भंडार, व्यास नारायण भट्ट के सरस्वती प्रकाशन मंदिर से छपी पत्रिकाओं व पुस्तकों ने समाज में जागृति पैदा की।

महामना ने छेड़ी क्रांति

भारतरत्न महामना मदनमोहन मालवीय ने अंग्रेजी हुकूमत से मोर्चा लेने के लिए समाचार पत्र को प्रमुख हथियार बनाया था। इसके लिए उन्होंने प्रतापगढ़ के कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर 1887 में हिंदोस्थान समाचार पत्र का संपादन शुरू किया। उन्होंने प्रभावी लेखों के जरिए आम जनमानस में देशभक्ति का बीजारोपण किया। इसके बाद प्रयागराज से 1907 में साप्ताहिक समाचार पत्र 'अभ्युदय ', फिर 1909 में लीडर निकाला। महामना ने 1910 में 'मर्यादा ' पत्रिका को प्रकाशित करके लोगों में क्रांति पैदा की।

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