दिल्ली और आगरा समेत दूसरे राज्यों में पेठा के रूप में मिठास घोल रहा है कौशांबी का सफेद कद्दू

उनकी किस्मत तब पलटी जब करीब 10 साल पहले एक रिश्तेदार ने नसीम अहमद को सफेद कद्दू की खेती करने की सलाह दी। रिश्तेदार के साथ कानपुर से बीज लाकर पहली बार 2010 में नसीम ने पांच बीघा खेत झुरिया पर लेकर सफेद कद्दू की खेती शुरू की।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 06:50 AM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 06:50 AM (IST)
दिल्ली और आगरा समेत दूसरे राज्यों में पेठा के रूप में मिठास घोल रहा है कौशांबी का सफेद कद्दू
- चायल तहसील के दर्जनों किसानों ने पारंपरिक फसलों से हटकर शुरू की खेती

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। उत्तर प्रदेश में कौशांबी एक कृषि प्रधान जनपद है। यहां की 80 फीसद आबादी कृषि पर आधारित हैं। वैसे तो गेहूं व धान यहां की मुख्य खेती है। लेकिन चायल तहसील क्षेत्र के दर्जनों किसानों ने अपनी आय को बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से हटकर सब्जियों की पैदावार शुरू की है। इधर कुछ अरसा से तमाम किसान सफेद कद्दू की खेती कर रहे हैं। इस सीजन में भी 200 बीघा से ज्यादा पर सफेद कद्दू की खेती हो रही है। खेतो में फल लगने शुरू भी हो गए हैं। यहां से सफेद कददू यूपी के आगरा, कानपुर, दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में सप्लाई हो रहे हैं। आगरा और अन्य राज्यों में इस कद्दू का पेठा बनाकर लोगों का मुंह किया जा रहा है।

रिश्तेदार की सलाह ने बदल दी तकदीर

कौशांबी जनपद के चायल तहसील क्षेत्र के बूंदा गांव निवासी नसीम अहमद के पास महज दो बीघा अपनी निजी खेती है। खेती किसानी से रुपये कमाने की जिद में वे गांव के लोगों से झुरिया पर खेत लेकर धान और गेंहू की खेती करते थे। इससे अधिक मेहनत और लागत के बाद रोजी रोटी चलाने लायक ही कमाई हो पाती थी। उनकी किस्मत तब पलटी जब करीब 10 साल पहले सराय अकिल थाना क्षेत्र के दिया छेकवा (कनैली) निवासी एक रिश्तेदार ने नसीम अहमद को सफेद कद्दू की खेती करने की सलाह दी। रिश्तेदार के साथ कानपुर से बीज लाकर पहली बार 2010 में नसीम ने पांच बीघा खेत झुरिया पर लेकर सफेद कद्दू की खेती शुरू की। पांच बीघा में 25 टन कद्दू की पैदावार हुई जिसे आगरा में 400 रुपये कुंटल के हिसाब से बेचा। पहली बार में ही नसीम को अच्छी खासी कमाई हुई। फिर उनका भाई मुस्तकीम भी कद्दू की खेती करने में शामिल हो गया। दोनों ने मिलकर बीस बीघा खेत झुरिया पर लेकर कद्दू की खेती की। फिर तो नसीम की बदलती तकदीर और खेती की कमाई देख गांव के दूसरे किसान भी गेहूं और धान की खेती कम कर सफेद कद्दू की पैदावार में जुट गए। इस बार नसीम और मुस्तकीम समेत गांव के दो दर्जन किसानों ने सौ बीघा से अधिक पर सफेद कद्दू की खेती कर रखी है। अक्तूबर में फलों को किसान खुद अथवा व्यापारियों के माध्यम से आगरा, दिल्ली छत्तीसगढ़, लाहोर, कटनी, जबलपुर, पलवर आदि स्थानों पर बेचते हैं। उसके बाद खेत की मिट्टी को गेहूं के लिए तैयार कर नवंबर माह में उसी खेत में गेंहू की बुआई करते हैं। जिससे दो चक्राक्रम फसलों का मुनाफा किसानों को मिल रहा है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ रही है।

बुआई की विधि और समय 

किसान नसीम अहमद व मुस्तकीम के मुताबिक जून माह के शुरुआत में ही खेतों का पलेवा कराकर उसकी अच्छी तरह से जुताई करा लें। खेत से खरपतवार निकाल लेना चाहिए। बुआई के लिए मिट्टी तैयार कर दो-दो मीटर के फासले पर बरमा से एक मीटर गहरे गड्ढे खोदकर उसमें गोबर की खाद और मिट्टी डालकर बंद कर दें। जून माह के अंत में बीजों की बुआई शुरू करते हुए बीजों को भिगोकर कपड़े व बोरे से ढक कर रखें दो। तीन दिनों में बीच अंकुरित होने के बाद गोबर की खाद से बंद पड़े गड्ढे में दो-दो बीज की बुआई कर दे। अब इसका खरपतवार समय-समय पर निकलवाते रहें। पौधा बड़ा होने पर उसके चारों ओर मिट्टी से ढेर लगाकर (कूड़ी) बांध दें । समय समय पर पानी का भी ध्यान रखें। किसानों के मुताबिक बारिश के फुहारें सफेद कद्दू की खेती के लिए बेहद लाभकारी होता है। चार माह पूरा होने पर यानी अक्टूबर माह के पहले हफ्ते से फल आने शुरू हो जाते हैं। माह के अंतिम तक पूरी तरह से फल लग जाते हैं। और पौधे भी फल देने के बाद सूख जाते हैं।

कम लागत और बेहतर आय

चायल तहसील के बूंदा गांव निवासी किसान नसीम अहमद के मुताबिक खेतों की जुताई, खाद बीज व निराई सिंचाई में छह हजार रुपये प्रति बीघा लागत आती है। अगर अच्छी पैदावार हुई तो पचास से साठ कुंटल (पांच से छह टन) कद्दू की पैदावार होती है। बाजार में जिसकी कीमत चार सौ रुपये कुंटल से पांच सौ रुपये कुंटल तक रहती है। लागत मूल्य घटाने के बाद किसानों को प्रति बीघा फसल से 20 से 25 हजार रुपये तक का मुनाफा होता है। 11 हजार रुपये वार्षिक झुरिया पर खेत मिलने और बारिश नहीं होने की वजह से किसानों को ज्यादा मुनाफा होने की संभावना नहीं है।

इस बार बारिश के अभाव में नुकसान

विकास खंड नेवादा के बूंदा गांव निवासी किसान कुल्लन, मंगरू, इरफान, पप्पू, लाला, माजित, भुल्ली आदि किसानों ने बताया कि इस बार की खेती राम भरोसे है। किसानों ने कहा कि इस वर्ष अभी बारिश नहीं हो रही है। गांव में लगा सार्वजनिक नलकूप भी आठ सालों से ठप पड़ा है। काफी दूरी और अधिक रुपये खर्च कर निजी नलकूपों से एक दो सिंचाई कर ली गई है। यदि अब बारिश ना हुई तो सारी खेती चौपट हो जाएगी।

chat bot
आपका साथी