आरएसएस के स्थापना दिवस आयोजन में स्वयंसेवकों ने उत्साह से की भागीदारी

परिचर्चा के दौरान पत्रकारिता एवं जन संचार के शोधार्थी डॉ. नीरेन उपाध्याय ने बताया कि डॉ. केशव राव हेडगेवार का जन्म एक अप्रैल अट्ठारह सौ नवासी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत 1946 को नागपुर में हुआ था। इनके पिता बलिराम हेडगेवार तथा माता रेवती बाई थी। केशव जन्मजात देश भक्त थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 01:57 PM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 01:57 PM (IST)
आरएसएस के स्थापना दिवस आयोजन में स्वयंसेवकों ने उत्साह से की भागीदारी
प्रयागराज में आरएसएस की रीति व नीति को लेकर वेबिनार का आयोजन किया गया।

प्रयागराज, जेएनएन। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रीति व नीति को लेकर वेबिनार का आयोजन किया गया। संगठन के स्थापना दिवस पर हुए आयोजन में स्वयंसेवकों ने उत्साह के साथ हिस्सा लिया। इस मौके पर सह प्रांत प्रचार प्रमुख अंबरीश ने कहा कि संघ ने अपने सिद्धांतों को जन समान्य तक पहुंचाने का प्रयास किया। संगठन में 12 से 15 वर्ष की आयु के किशोरों को साथ लेकर ऊर्जा के साथ सभी कार्य संपादित किए गए। नागपुर में संघ की पहली शाखा प्रारंभ होने के बाद हर स्वयंसेवक से डॉक्टर हेडगेवार का संपर्क रहता था। संघ में आने वाले स्वयंसेवकों को शारीरिक शिक्षा देने का प्रबंध किया गया था। आज जहां संघ का केंद्रीय कार्यालय हेडगेवार भवन खड़ा है उसी स्थान पर सालू बाई मोहिते का पुराना बाड़ा होता था। संगठन का बीज वपन वहीं पर हुआ।

जाने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को

परिचर्चा के दौरान पत्रकारिता एवं जन संचार के शोधार्थी डॉ. नीरेन उपाध्याय ने बताया कि डॉ. केशव राव हेडगेवार का जन्म एक अप्रैल अट्ठारह सौ नवासी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत 1946 को नागपुर में हुआ था। इनके पिता बलिराम हेडगेवार तथा माता रेवती बाई थी। केशव जन्मजात देश भक्त थे। बचपन से ही उन्हेंं नगर में घूमने का शौक था। उनको अंग्रेज सैनिक, अंग्रेजों का झंडा यूनियन जैक तथा विद्यालय में गाया जाने वाला गीत गॉड सेव द किंग बहुत बुरा लगता था। उन्होंने एक बार सुरंग खोदकर उस झंडे को उतारने की योजना भी बनाई परंतु बालपन की यह योजना सफल नहीं हो पाई। वह सोचते थे इतने बड़े देश पर पहले मुगलों ने फिर सात समुंदर पार से आए अंग्रेजों ने अधिकार कैसे कर लिया। अपने अध्यापकों और अन्य बड़े लोगों से प्रश्न पूछा करते थे। बहुत दिनों बाद उनकी समझ में आया कि भारत में रहने वाले हिंदू असंगठित हैं। वे जाति, प्रांत, भाषा, वर्ग आदि के नाम पर तो एकत्र हो जाते हैं पर हिंदू के नाम पर नहीं। भारत के राजाओं और जमीदारों में अपने वंश तथा राज्य का दूर अभिमान तो है पर देश का अभिमान नहीं। इसी कारण विदेशी आकर भारत को लूटते रहे।

कांग्रेस के साथ भी जुड़े थे डॉ. हेडगेवार

 विभाग प्रचार प्रमुख डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि उन दिनों देश की आजादी के लिए सब लोग संघर्षरत थे। स्वाधीनता के प्रेमी केशव राव भी उस जंग में कूद पड़े। उन्होंने कोलकाता में मेडिकल की पढ़ाई करते समय क्रांतिकारियों के साथ अनुशीलन समिति के माध्यम से देश की स्वाधीनता के लिए कार्य किया। वहां से नागपुर लौटकर कांग्रेस के साथ जुड़े एवं सक्रिय रहकर कार्य किया। बाद में उन्होंने अपनी और परिवार की सुख सुविधाओं से मन मोड़ लिया और तत्कालीन कांग्रेस द्वारा संचालित स्वराज्य के जन आंदोलन से नाता जोड़ लिया। दो बार जेल भी गए और कठिन कारावास भोगा। अपने ओजस्वी भाषणों के लिए विख्यात डॉ. केशव राव को 1921 में एक सार्वजनिक भाषण के लिए उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाया गया। उन्होंने अपने बचाव में न्यायालय में तीखा विद्रोहात्मक वक्तव्य दिया। उसे सुनकर जज ने निर्णय लिया कि बचाव के लिए तुम्हारा वक्तव्य तुम्हारे भाषण से भी अधिक राजद्रोहात्मक है। उन्हेंं एक वर्ष के कठोर कारावास का दंड सुना दिया। इसी कारावास के दौरान उन्होंने बंदी गृह में रहकर इस समय का उपयोग चिंतन और विचार विमर्श के लिए किया।

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