रोजे में अल्लाह के संग लोकतंत्र की भी इबादत

रमजान के महीने में अल्लाह की इबादत के साथ लोकतंत्र में भागीदारी की। वोट देकर लोगों ने रोजे में अल्लाह के साथ लोकतंत्र की इबादत जरूरी है।

By Edited By: Publish:Sun, 12 May 2019 08:57 PM (IST) Updated:Sun, 12 May 2019 08:58 PM (IST)
रोजे में अल्लाह के संग लोकतंत्र की भी इबादत
रोजे में अल्लाह के संग लोकतंत्र की भी इबादत
प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]  : कहते हैं राष्ट्र है तो हम हैं। हम हैं तो धर्म है। जब राष्ट्र ही सुरक्षित नहीं रहेगा तो व्यक्ति और धर्म कैसे बचेगा। यह विचार पोलिंग बूथों पर साक्षात रूप में जीवंत हुए। जहां भूख-प्यास को दरकिनार कर कड़ी धूम में रोजेदार वोट डालने पहुंचे। पुरुष के साथ महिला रोजेदारों में भी कुछ ऐसा ही उत्साह रहा। अल्लाह की इबादत व घर के काम से समय मिला तो आराम करने के बजाय सीधे पोलिंग बूथ पहुंचीं।  लोकतंत्र के उत्सव में भागीदार बनने के लिए भीषण गर्मी में लाइन में खड़ी रहीं, फिर अपनी बारी आने पर वोट डालकर बाहर आई। मतदान करने बाद बाहर निकलीं रोजेदार सारा बानो की खुशी देखते ही बनी। चेहरा खिला, मन उत्साहित था। खुशी का कारण पूछने पर बोलीं, धर्म के लिए मैंने रोजा रखा है और राष्ट्रहित में मतदान किया। मेरी खुशी का यही कारण है। रोजा की तरह वोट करना भी मेरे लिए इबादत है, जिसे सफलता पूर्वक पूरा कर लिया। कुछ ऐसा ही विचार रोजेदार मारिया का रहा।
  नगर पंचायत मऊआइमा के पोलिंग बूथ पर वोटिंग करने आई मारिया कहती हैं कि धर्म की तरह राष्ट्रहित मेरे लिए सर्वोपरि है। राष्ट्र तभी सुरक्षित होगा जब वोट करेंगे, इसलिए इबादत से समय मिला तो आराम करने के बजाय पोलिंग बूथ पर आ गई। रोजेदार साहिया कहती हैं कि रोजा रखकर वोट डालना ज्यादा सुखद अनुभूति दे रहा है। मेरा वोट राष्ट्र को समर्पित है, जो राष्ट्रहित में निर्णायक होगा। रोजेदार कुलसोम का मानना है कि राष्ट्रहित के लिए हमें वोट करना चाहिए। मो. याकूब व रेहान ने सुबह साढ़े सात बजे वोट डाल दिया। इसके बाद दूसरे वोटरों को बाहर निकालने के लिए सक्रिय रहे।

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