ट्रेनों में शौचालय की कैसे हुई शुरूआत? प्रयागराज माघ मेले में लगी एक चिट्ठी बता रही यह

हुआ यह कि ओखिल चंद्र ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। अहमदपुर (छत्तीसगढ़ में) रेलवे स्टेशन पर ओखिल चंद शौच करने के लिए लोटा लेकर बाहर गए तभी ट्रेन ने हार्न दिया और चल पड़ी। ओखिल एक हाथ में धोती दूसरे में लोटा लेकर दाैड़े लेकिन गिर पड़े

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sat, 22 Jan 2022 03:18 PM (IST) Updated:Sat, 22 Jan 2022 11:01 PM (IST)
ट्रेनों में शौचालय की कैसे हुई शुरूआत? प्रयागराज माघ मेले में लगी एक चिट्ठी बता रही यह
भारतीय ट्रेनों में शुरूआत में शौचालय की व्यवस्था नहीं की गई थी

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आज भले ट्रेनों में तमाम तरह की सुविधाएं मिल रही हों लेकिन सच यह है कि शुरूआत में भारतीय ट्रेनों में टायलेट यानी शौचालय नहीं होता था। यात्रियों को शौच के लिए ट्रेन से उतरकर खुले में जाना पड़ता था। 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच पहली ट्रेन चली थी। 34 किमी ता सफर था और 400 यात्री थे। इस ट्रेन में भी शौचालय नहीं था। 1891 में केवल फ़र्स्ट क्लास के डिब्बों में शौचालय लगे, लेकिन अन्य श्रेणियों में नहीं। 56 साल तक ऐसी ही स्थिति बनी रही। लेकिन, साल 1909 में बंगाल के एक यात्री ओखिल चंद सेन के साथ ऐसी घटना हुई, जिसने ट्रेनों में शौचालय लगाने की शुरूआत की।

बंगाली बाबू लोटा लेकर बैठे तभी चल दी ट्रेन तो भागना पड़ा उठकर

हुआ कुछ ऐसा कि ओखिल चंद्र ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। अहमदपुर (छत्तीगढ़ में) रेलवे स्टेशन पर ओखिल चंद शौच करने के लिए लोटा लेकर बाहर गए थे, तभी ट्रेन ने हार्न दिया और ट्रेन चल पड़ी। ओखिल एक हाथ में धोती, दूसरे में लोटा लेकर दाैड़े, लेकिन गिर पड़े। यात्री ओखिल की इस स्थिति पर हस रहे थे। इसी घटना को लेकर ओखिल चंद्र ने धमकी भरे लहजे में साहेबगंज डिविजनल कार्यालय (वर्तमान झारखंड में) को एक पत्र भेजा।

ओखिल के इस पत्र के बाद रेलवे ने किया टायलेट सुविधा का फैसला

इस पत्र में लिखा कि मैं पैसेंजर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन पहुंचा। कटहल खाने से मेरे पेट में बहुत सूजन आ गई थी। शौच गया था तभी ट्रेन चल पड़ी। मुझे अहमदपुर स्टेशन पर छोड़ दिया गया। यह बहुत बुरा है। यदि यात्री शौच जाता है तो ट्रेन ते गार्ड उसके लिए पांच मिनट ट्रेन का इंतजार नहीं करता। इसलिए मैं आपसे सार्वजनिक रूप से उस गार्ड पर बड़ा जुर्माना लगाने के लिए प्रार्थना करता हूं। नहीं तो मैं अखबारों के लिए बड़ी रिपोर्ट बना रहा हूं। इसी पत्र को ब्रिटिश रेलवे ने सुझाव की तरह अमल लिया और प्रत्येक कोच में शौचालय लगाने की शुरूआत की। रेलवे इस पत्र की कापी माघ मेला में प्रदर्शनी में लगाई है। एनसीआर के सीपीआरओ डा. शिवम शर्मा ने बताया कि रेलवे यात्रियों के प्रत्येक सुझाव को अमल में लाता हैं और यह पत्र उसका उदाहरण है ।

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