बढ़ते प्रदूषण के कारण डॉल्फिन ने बदले अपने ठिकाने, अन्य जीव-जंतुओं पर भी मंडरा रहा खतरा
गंगा यमुना समेत सहायक नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में डॉल्फिन ने अपने ठिकाने बदल दिए हैं।
इलाहाबाद [विमल पांडेय]। गंगा यमुना समेत सहायक नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में डॉल्फिन ने अपने ठिकाने बदल दिए हैं। देहरादून की वन्य जीव संस्थान की सर्वे टीम के आकलन में वर्ष 2017 से 2018 के मध्य डॉल्फिन के ठिकाने बदलने की बात सामने आई है। यह शुभ संकेत नहीं है। ठिकाने बदलने से जहां एक ओर डॉल्फिन की बेहतर गणना कराना चुनौती है वहीं बार-बार ऐसा होने से उनके भोजन आदि की भी समस्या आड़े आती है।
यह रहस्योद्घाटन करने वाली देहरादून की वन्य जीव संस्थान की टीम इन दिनों गंगा यमुना में डॉल्फिन का सर्वे करने निकली है। उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में सर्वे कर रही इस टीम का अंतिम पड़ाव बलिया जिला होगा। टीम के सदस्य आफताब आलम के अनुसार, प्रदूषण का प्रभाव कानपुर गंगा बैराज से फतेहपुर और प्रतापगढ़ जनपदों में सर्वाधिक है।
कानपुर गंगा बैराज में डॉल्फिन गंगा के अंदर वर्ष 2017 में देखी गई थी, लेकिन इस वर्ष के सर्वे में यह एकाएक लापता हो गई है। सर्वे टीम के अनुसार, जब प्रदूषण काफी बढ़ जाता है तो डाल्फिन अपना ठिकाना बदल देती है। पहले सर्वे में गंगा बैराज में यह सर्वाधिक पाई जाती थीं, लेकिन नए सर्वे में यह कानपुर से फतेहपुर की ओर सरसौल और डोमनपुर में पाई जाती हैं।
लगभग 70 किलोमीटर के सर्वे में करीब 55 डाल्फिन भिटौरा, फतेहपुर में गंगा में उछलकूद करती हुई दिखीं। इसी प्रकार फतेहपुर के एकडला यमुना घाट में डॉल्फिन ने अपना नया ठिकाना बनाया है। यहां ग्रामीणों ने डाल्फिन दर्शन केंद्र की स्थापना भी की है। टीम के अनुसार, प्रतापगढ़ में प्रदूषण के कारण डॉल्फिन सर्वे में मामूली अंतर पाया गया है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान नरोरा से कानपुर के बीच प्रदूषण के चलते गंगा में इसके विलुप्त होने पर चिंता जताई गई है। आफताब आलम ने बताया कि कानपुर में गंगा प्रदूषण चिंता का विषय है। इस प्रदूषण के कारण केवल डॉल्फिन ही नहीं, बल्कि अन्य जीव- जंतुओं पर भी खतरा मंडरा रहा है।