Death Anniversary: और फिर बापू के उन चंद शब्दों ने बदल दी महादेवी वर्मा की राह

पुण्यतिथि पर विशेष फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 को जन्मीं महादेवी ने जीवन का अधिकांश समय प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में बिताया। स्वरूप नारायण वर्मा से 1916 में महादेवी जी का विवाह हुआ था लेकिन वह जीवन भर अविवाहित की भांति रही। श्वेत वस्त्र धारण किया तख्त पर सोईं।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sat, 11 Sep 2021 08:00 AM (IST) Updated:Sat, 11 Sep 2021 06:30 PM (IST)
Death Anniversary: और फिर बापू के उन चंद शब्दों ने बदल दी महादेवी वर्मा की राह
कंपनीबाग के पास नीम के नीचे बालिकाओं को पढ़ाया, महिला उत्थान को समर्पित किया जीवन

 पुण्यतिथि पर विशेष

जन्म-26 मार्च 1907

निधन-11 सितंबर 1987

शरद द्विवेदी, प्रयागराज। 'अंग्रेजों के खिलाफ हमारी लड़ाई चल रही है, और तू विदेश अंग्रेजी पढऩे जाएगी? अपनी मातृभाषा पर गर्व करो। मातृभाषा में दूसरी बहनों को शिक्षा दो...। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इन चंद वाक्यों ने महादेवी वर्मा के जीवन की राह बदल दी। उन्होंने 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए किया था। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति स्वीकृत हुई थी। विदेश जाएं अथवा नहीं इसे लेकर मन में असमंजस था। सलाह लेने के लिए बापू से मिलने अहमदाबाद गईं। गांधी जी की सलाह पर वापस आईं और कंपनीबाग के पास नीम के पेड़ के नीचे कुछ बालिकाओं को एकत्र कर पढ़ाना शुरू किया।

विवाह किया लेकिन आजीवन अविवाहितों की तरह रहीं

महादेवी की मुंहबोली पौत्री आरती मालवीय बताती हैं कि दादी मां ने प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य के रूप में लड़कियों के पाठ्यक्रम में सबसे पहले गृह विज्ञान पाठ्यक्रम शामिल कराया। 'चांद पत्रिका में वह निरंतर नारी उत्थान, उनकी समस्याओं, समाधान के बारे में लिखती थीं। स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं को शामिल करने में अहम भूमिका निभाई। नशाखोरी के खिलाफ आंदोलन में अग्रणी रही। शायर और गजलकार मंजू पांडेय उर्फ महक जौनपुरी बताती हैं कि फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 को जन्मीं महादेवी ने जीवन का अधिकांश समय प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में बिताया। स्वरूप नारायण वर्मा से 1916 में महादेवी जी का विवाह हुआ था, लेकिन वह जीवन भर अविवाहित की भांति रही। श्वेत वस्त्र धारण किया, तख्त पर सोईं। विवाह के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। प्रयाग में 11 सितंबर 1987 को अंतिम सांस ली।

बनाई थी साहित्यकार संसद

शहर के रसूलाबाद में इलाचंद्र जोशी के सहयोग से वर्ष 1955 में साहित्यकार संसद की स्थापना कर महादेवी वर्मा ने साहित्यिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया। वरिष्ठ और उदीयमान रचनाकारों को जोड़ा। उन्होंने नीहार, रश्मि, नीरजा तथा सांध्यगीत नामक काव्य संग्रह से ख्याति बटोरी थी।

आर्थिक तंगी से टूटा रहा सपना

छायावादी युग की प्रमुख स्तंभ महादेवी वर्मा ने 1985 में साहित्य सहकार न्यास की स्थापना की। हालांकि इसकी स्थापना के दो साल बाद ही उनका निधन हो गया। आमदनी का स्रोत नही होने से न्यास आर्थिक तंगी से जूझने लगा। इसलिए महादेवी की इच्छा के अनुरूप लाइब्रेरी बनाने, प्रकाशन करने की योजना फलीभूत नहीं हो सकी। न्यास के सचिव बृजेश कुमार पांडेय बताते हैं कि हिंदी संस्थान लखनऊ को पत्र भेज आर्थिक मदद मांगी गई है, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। प्रकाशक रायल्टी भी नहीं दे रहे हैं। वह बताते हैं कि महादेवी के अंतिम संस्कार में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह शामिल हुए थे। उन्होंने न्यास को 10 लाख रुपये देने का आश्वासन दिया था, पर यह भी कोरा ही है अब तक।

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