Yoga Guru Anand Giri की महत्वाकांक्षा व संपत्ति विवाद बना अखाड़े से निष्कासन की वजह Prayagraj News
सन 2014 में आनंद गिरि ने खुद को नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी के रूप में प्रचारित करना शुरू किया तो उसका व्यापक विरोध हुआ। तब नरेंद्र गिरि स्वयं कहा था कि आनंद गिरि उनके उत्तराधिकारी नहीं हैं बल्कि शिष्य हैं।
प्रयागराज,जेएनएन। धन व वैभव से नाता तोड़कर धर्म के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की भावना से संन्यास ग्रहण करने की परंपरा है। लेकिन, अधिकतर मामलों में देखा जाता है कि संपत्ति का विवाद ही गुरु-शिष्य के बीच दूरी बढ़ाता है। स्वामी आनंद गिरि के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। महात्वकांक्षा व संपत्ति के विवाद से उनकी गुरु से लगातार दूरी बनती गई। मनमुटाव इतना अधिक बढ़ा कि उन्हें निरंजनी अखाड़ा से निष्कासित कर दिया गया। गुरु नरेंद्र गिरि ने भी मठ बाघंबरी गद्दी व बड़े हनुमान मंदिर से उन्हें अलग कर दिया। मठ से जुड़े लोग इसके पीछे आनंद गिरि की महत्वकांक्षा को प्रमुख कारण बता रहे हैं।
म्ूालतः राजस्थान के भीलवाड़ा जिला के आसिन तहसील के अंतर्गत आने वाले ब्राह्मण की सरेरी गांव के निवासी आनंद गिरि स्वामी नरेंद्र गिरि के संपर्क में करीब 18 साल पहले आए थे। इन्होंने काफी कम आयु में संन्यास ले लिया। नरेंद्र गिरि के सान्निध्य में रहकर संस्कृत, वेद व योग की शिक्षा ग्रहण किया। मठ के अन्य शिष्यों से खुद की अलग पहचान बनाने के लिए आनंद गिरि ने अंग्रेजी की पढ़ाई भी की। साथ ही गुरु के करीब रहकर मठ व बड़े हनुमान मंदिर का काम देखने लगे। मंदिर में सक्रिय रहने व वाकपटु होने के कारण नेताओं, अधिकारियों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ गई। इससे वो सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय होने लगे। आनंद गिरि के बढ़ते कद के कारण मठ में रहने वाले दूसरे शिष्य उनसे अंदर ही अंदर वैर भी रखने लगेे। लेकिन, गुरु का चेहेता होने के कारण कोई खुलकर बोल नहीं पाता था। सन 2014 में आनंद गिरि ने खुद को नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी के रूप में प्रचारित करना शुरू किया तो उसका व्यापक विरोध हुआ। तब नरेंद्र गिरि स्वयं कहा था कि आनंद गिरि उनके उत्तराधिकारी नहीं हैं, बल्कि शिष्य हैं। उन्होंने आनंद गिरि को दीक्षा दिया है, लेकिन उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाया है। इसके बाद मामला शांत हुआ था।
गंगा सेना का किया गठन
आनंद गिरि ने कुछ साल पहले गंगा सेना नामक संगठन बना लिया। गंगा सेना के बैनर तले वो समाज के विशिष्टजनों को जोड़कर बड़े-बड़े कार्यक्रम भी कराने लगे। माघ मेला व कुंभ मेला में गंगा सेना का शिविर लगाना शुरू कर दिया। यह शिविर आनंद गिरि खुद लगाते थे, इसमें मठ बाघंबरी गद्दी व नरेंद्र गिरि से कोई संबंध नहीं होता था। शिविर में देश-विदेश के अपने शिष्यों को बुलाकर रुकवाते थे। यह भी नरेंद्र गिरि के अन्य शिष्यों को नहीं भाता था।
हरिद्वार में खरीदी जमीन
आनंद गिरि ने कुछ साल पहले हरिद्वार में अपना निजी आश्रम बनवाने के लिए जमीन खरीद लिया। उस जमीन में इधर आश्रम बनाने का काम भी चल रहा था। मठ से जुड़े दूसरे शिष्यों व स्वयं नरेंद्र गिरि को यह नहीं भाया। उनका कहना था कि आनंद गिरि मंदिर व मठ के पैसे से खुद का निजी आश्रम बनवा रहे हैं, जो अनुचित है। आपसी खटास बढ़ने का यह भी बड़ा कारण बना।
नोएडा की संपत्ति का दुरुपयोग का आरोप
आनंद गिरि को करीब आठ माह पहले निरंजनी अखाड़ा के नोएडा स्थित आश्रम का प्रभारी बनाया गया था। आरोप है कि प्रभारी बनने के बाद उन्होंने आश्रम की संपत्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। वहां की संपत्ति से हरिद्वार में अपने आश्रम का निर्माण करवा रहे थे। इसकी शिकायत निरंजनी अखाड़ा के पंचपरमेश्वर से की गई, जिसके बाद उनके खिलाफ जांच भी बैठी थी।