भइया .. कहां हैं गंगा मइया

इलाहाबाद : कीडगंज निवासी 65 वर्षीय व्यापारी मन्नू केसरवानी 30 वर्षो से निरंतर गंगा स्नान करते आ रहे

By Edited By: Publish:Mon, 02 May 2016 01:13 AM (IST) Updated:Mon, 02 May 2016 01:13 AM (IST)
भइया .. कहां हैं गंगा मइया

इलाहाबाद : कीडगंज निवासी 65 वर्षीय व्यापारी मन्नू केसरवानी 30 वर्षो से निरंतर गंगा स्नान करते आ रहे हैं। इन दिनों वह व्यथित हैं। कहते हैं 'गंगा मइया में अबकी न घाट है न जल, हमें नाले के पानी में स्नान करना पड़ रहा है'। कुछ ऐसी ही पीड़ा लूकरगंज निवासी संतकुमार दुबे की है। 15 साल पहले पुलिस से रिटायर होने के बाद उनके जीवन का एक ही ध्येय हो गया, गंगा स्नान व भजन-पूजन। गंगा में जल की कमी को देख वह कहते हैं 'बचपन व जवानी गंगा तट पर ही बीता है। गंगा की इतनी खराब दशा उन्होंने कभी नहीं देखी, आज लग रहा है कि गंगा में ही पानी का अकाल पड़ गया है'। इलाहाबाद में गंगा की दशा इन दिनों उनके भक्तों के लिए गहरी चिंता का सबब बनी हैं। छतनाग, फाफामऊ व शास्त्री पुल के पास पतित पावनी ऐसी सिकुड़ गई हैं कि पूछिए नहीं। तपिश ने इन्हें लगभग-लगभग सुखा दिया है। जनवरी माह में माघ मेले के दौरान नरौरा से चार हजार क्यूसेक पानी गंगा में छोड़ा जा रहा था। तब श्रद्धालुओं को भरपूर पानी मिल रहा था। मेला बीतते ही नरौरा से पानी छोड़ा जाना बंद कर दिया गया। नतीजा गंगा की धारा पटरी से उतर गई। हैरत की बात यह रही कि इस बार अप्रैल में ही गंगा की सूरत बिगड़ गई। फाफामऊ से लेकर झूंसी छतनाग तक गंगा की धारा को ढूंढना पड़ रहा है। शास्त्री पुल से निहारने पर गंगा सिर्फ नाले के रूप में नजर आती हैं। श्रद्धालु चिंतित हैं तो अधिकारी हतप्रभ। प्रयाग धर्मसंघ के अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल कहते हैं कि गंगा की निर्मलता व अविरलता को लेकर जो जज्बा, समर्पण व रणनीति होनी चाहिए वह न सत्ता में बैठे लोगों में नजर आती है, न ही नौकरशाहों में। यही कारण है कि मोक्षदायिनी गंगा का अस्तित्व आज समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। सिंचाई विभाग बाढ़ प्रखंड के अधिशाषी अभियंता मनोज सिंह बताते हैं कि दो सालों से बरसात न होने के कारण गंगा यमुना की दशा तेजी से बिगड़ी है। इस बार भी अगर बारिश ने दगा दिया तो मुश्किल बढ़ जाएगी।

गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान के संयोजक स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि गंगा को बचाने की कोशिश योजनाओं, भाषणों तक सिमटी है। प्रयाग में तो स्थिति काफी बिगड़ चुकी है। गंगा जल न होने से कई घाटों के नामोनिशान मिट चुके हैं।

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