डेढ़ बीघा में चार पसेरी अरहर

संजय कुशवाहा, इलाहाबाद : मौसम की बेरहम मार ने अन्नदाता को किस कदर लाचार बना दिया है, इसे नजदीक से दे

By Edited By: Publish:Tue, 21 Apr 2015 12:54 AM (IST) Updated:Tue, 21 Apr 2015 05:14 AM (IST)
डेढ़ बीघा में चार पसेरी अरहर

संजय कुशवाहा, इलाहाबाद : मौसम की बेरहम मार ने अन्नदाता को किस कदर लाचार बना दिया है, इसे नजदीक से देखना हो तो जनपद मुख्यालय से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर कोरांव चलें। रबी के जिस सीजन में गुजरे सालों में यहां रौनक रहा करती थी, इस बार मातम पसरा है। खलिहान उजाड़ दिख रहे हैं और किसान उदास।

कोरांव तहसील क्षेत्र की ख्याति धान के कटोरे के रूप में तो है ही, गेहूं भी यहां बड़े पैमाने पर पैदा होता है। कम लोग ही जानते हैं कि तहसील क्षेत्र का एक हिस्सा ऐसा भी है, जो दलहन की उपज के लिए ख्यात है। बेलन नदी पार करते ही देवघाट तक असिंचित क्षेत्र है। यहां सीवन रेगिस्तान का आभास कराते हैं। ऊबड़ खाबड़ बलुई मिट्टी में अरहर संग चने की भी खूब पैदावार होती है, लेकिन तब जब दैऊ मेहरबान हों। इस बार दैऊ क्या कोपे, अरमान खेतों में ही दफन हो गई। भगवान प्रसाद ने डेढ़ बीघा में अरहर बोई थी, लेकिन उपज मिली चार पसेरी। यह कहते हुए उनका गला भर आया कि न खाय लायक बचा और न बेचै लायक। पिछले साल इसी खेत से छह कुंतल अरहर हुई रही। देवघाट गांव में आबाद ज्यादातर लोगों की जिदंगी का सहारा खेती ही है, इस बार फसल बर्बाद क्या हुई, हर किसी सामने भयावह संकट है। कैसे आने वाले दिन कटेंगे, यही चिंता सबको खाए जा रही है। खलिहान में पिता प्रेमशंकर तिवारी के साथ अरहर के बोझ ढोने में लगी प्रीति ने इस बार हाईस्कूल की परीक्षा दी है। इंटरमीडिएट में पढ़ाई के लिए दूसरे स्कूल में दाखिला लेना है। प्रीति की मां गायत्री देवी को बेटी की पढ़ाई की चिंता सता रही है। बोलीं, बड़े अरमान पाल रखे थे, लगता है कि अब वह पूरे नहीं होंगे। आदिवासी संपता देवी उम्र के अस्सी बसंत देख चुकी हैं, इतना ही कहती हैं कि भगवान ने हमें न जाने किस पाप की सजा दी है।

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जिसकी मर्जी, वह फसल काट ले जाए

इलाहाबाद : देवघाट क्षेत्र में सैकड़ों किसान ऐसे हैं, जिन्होंने अरहर की फसल कटवाई ही नहीं। ढिंढोरी पिटवा दिया गया है, खेत में खड़ी फसल को जो चाहे काट ले जाए। यह बेबसी बताती है कि प्रकृति ने उन्हें किस तरह बर्बाद किया है। पौधे बड़े तो हुए, लेकिन फली लगने का समय आया तो दैऊ कोप गए। किसान कहते हैं कि खेतों में खड़ी फसल को कटवाने में जितना खर्चा आएगा, उतनी अरहर भी नहीं मिलेगी, लिहाजा उसे खेत में ही छोड़ दिया है। जिसकी मर्जी हो काट ले जाए।

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